कर्नल सोफिया पर बयान, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की कामयाबी और सियासी साज़िशों की स्याह हकीकत
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मुस्लिम नाउ विशेष
जब पहलगाम हमले में शहीदों के बाद देश शोक में डूबा था और आतंकवादी ठिकानों पर किए गए भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता की घोषणा के लिए कर्नल सोफिया कुरैशी जैसे अधिकारी राष्ट्र और दुनिया के सामने आए — तो लगा कि शायद अब शहादत की पीड़ा पर हिंदू-मुस्लिम सियासत का खेल नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राष्ट्र को संबोधित करते हुए बेहद संतुलित और मर्यादित भाषा में सेना की कार्रवाई को सराहा। पर अफसोस, जो उम्मीद की गई थी, वह जल्द ही चकनाचूर हो गई।
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सैनिक को सियासत में घसीटना: शर्मनाक मिसाल
मध्य प्रदेश सरकार के एक मंत्री कुंवर विजय शाह ने जिस तरह कर्नल सोफिया कुरैशी का नाम लेकर उन्हें एक आतंकवादी के “समाज की बहन” कह डाला, वह न केवल सेना का अपमान है, बल्कि महिलाओं और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ गहरी नफरत की अभिव्यक्ति भी है। बाद में उन्होंने सफाई दी कि “जोश में आकर मुंह से निकल गया।” लेकिन यह देश को बांटने वाली उस मानसिकता का नंगा प्रदर्शन था, जिसे अब आम कर दिया गया है।
गुजरात में गिरफ़्तारी, मंत्री पर खामोशी — दोहरा मापदंड क्यों?
गुजरात के बोटाद में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर एक पोस्ट करने पर पंचायत विभाग के कर्मचारी कृपाल पटेल को गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस का कहना है कि वह पोस्ट राष्ट्रीय एकता के लिए “हानिकारक” थी। तो सवाल यह उठता है कि जब एक निचले दर्जे के सरकारी कर्मचारी को गिरफ़्तार किया जा सकता है, तो एक मंत्री को छूट क्यों?
ऑनलाइन गालियाँ, ट्रोलिंग और सरकारी चुप्पी
विवेक मिसरी, जो कश्मीरी पंडित हैं और वरिष्ठ राजनयिक हैं, उन्हें ट्रोल किया गया, गालियाँ दी गईं, धमकियाँ मिलीं — लेकिन केंद्र या राज्य सरकार की ओर से एक भी ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई। इसी तरह हिमांशी नरवाल और एथलीट नीरज चोपड़ा को भी ऑनलाइन गाली दी गई, लेकिन सरकार और सुरक्षा एजेंसियां मूकदर्शक बनी रहीं।
राजनीतिक लाभ की फिर कोशिश — तिरंगा यात्रा के बहाने
ऐसा प्रतीत होता है कि एक राजनीतिक दल ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और पहलगाम की त्रासदी को भी वोट की फसल में बदलना चाहता है। पुलवामा के समय इसी तरह के आरोप लगे थे। अब तिरंगा यात्रा के नाम पर सेना के पराक्रम का राजनीतिकरण शुरू हो चुका है।
कुछ ज़रूरी सवाल, जो अनुत्तरित हैं:
- पहलगाम में मारे गए 26 सैलानियों के हत्यारे अब तक पकड़े क्यों नहीं गए?
- जब आतंकवादियों के नौ ठिकाने नष्ट किए गए और 100 से अधिक को मारने का दावा किया गया, तो पहलगाम के दोषी क्यों बचे हुए हैं?
- पाकिस्तान से संघर्षविराम की शर्तों में भारत ने क्या स्पष्ट किया? क्या कोई पूर्व-शर्त रखी गई थी?
- जब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से पहले विपक्ष को विश्वास में लिया गया, तो सीजफायर पर उन्हें क्यों दरकिनार कर दिया गया?
- डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से पहले सीजफायर की घोषणा कैसे कर दी? उनकी भूमिका क्या थी?
विचार का अंत नहीं, शुरुआत है यह
कर्नल सोफिया कुरैशी को “आतंकवादियों की बहन” कह देना या सोशल मीडिया पर किसी अधिकारी को गिरफ़्तार कर देना इन गंभीर सवालों को छिपाने की सस्ती कोशिश है। परंतु इस बार लोग चुप नहीं बैठने वाले। सेना के बलिदान को राजनीतिक स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करने वालों को इस बार जवाब देना होगा।
जिस तरह पुलवामा का दाग अब तक पीछा कर रहा है, उसी तरह पहलगाम और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सच्चाई भी हर मंच पर उठेगी — चाहे उसके लिए वाहाबिज्म बनाम सूफिज्म का नया नैरेटिव ही क्यों न रचा जाए।