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ऑपरेशन सिंदूर पर प्रोफेसर गिरफ्तार, BJP मंत्रियों पर चुप्पी: क्या मोदी सरकार दोहरे मापदंड अपना रही है?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो | नई दिल्ली

हरियाणा के एक प्रोफेसर को ऑपरेशन सिंदूर पर “विचारशील” टिप्पणी करने के आरोप में गिरफ्तार किए जाने और इसके उलट मध्य प्रदेश में भाजपा नेताओं द्वारा सेना और कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ की गई कथित आपत्तिजनक टिप्पणियों पर अब तक कोई कानूनी कार्रवाई न होने से देश की सियासत में नया भूचाल आ गया है। विपक्ष इसे मोदी सरकार की “दोहरे मानदंडों” वाली राजनीति करार दे रहा है।

हरियाणा के प्रोफेसर गिरफ्तार, मध्यप्रदेश के मंत्री सुरक्षित

अशोका विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रो. अली खान महमूदाबाद को उनके फेसबुक पोस्ट के आधार पर हरियाणा पुलिस ने शनिवार को गिरफ्तार किया। उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर एक वैचारिक आलोचना प्रस्तुत की थी जिसमें उन्होंने हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाई थी और राष्ट्रवाद की आड़ में हो रहे सैन्य अभियानों की नैतिक समीक्षा की थी।

प्रोफेसर महमूदाबाद की गिरफ्तारी को लेकर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों में भारी नाराज़गी है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा,

“प्रोफेसर की एकमात्र गलती यह है कि उन्होंने सत्ताधारी दल के सामने सच बोलने की हिम्मत की। उनकी दूसरी गलती उनका नाम है।”

कर्नल सोफिया कुरैशी पर बयान देने वाले नेताओं पर कार्रवाई क्यों नहीं?

पवन खेड़ा ने यह भी सवाल उठाया कि मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री विजय शाह और उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा, जिन्होंने सार्वजनिक रूप से सेना की महिला अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां की थीं, उनके खिलाफ अब तक न तो कोई एफआईआर दर्ज हुई है और न ही कोई गिरफ्तारी हुई।

खेड़ा ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा:

“भाजपा के मंत्री खुलेआम सशस्त्र बलों का अपमान करते हैं, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। दूसरी ओर, एक इतिहासकार को महज इसलिए गिरफ्तार कर लिया जाता है क्योंकि उन्होंने हिंसा के खिलाफ लिखा।”

विपक्ष का आरोप: सरकार चुनिंदा कार्रवाई कर रही है

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का आरोप है कि मोदी सरकार सिर्फ मुस्लिम नामों और विचारशील आलोचकों को निशाना बना रही है, जबकि भाजपा नेताओं की सैन्य प्रतिष्ठानों के खिलाफ टिप्पणियों को नजरअंदाज कर रही है।

आरएसएस-भाजपा की चुप्पी पर भी सवाल

प्रोफेसर की गिरफ्तारी को लेकर जहां सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, वहीं आरएसएस और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अब तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। इस चुप्पी को विपक्ष “राजनीतिक सहमति” करार दे रहा है।

क्या है ऑपरेशन सिंदूर?

‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर सत्ताधारी दल की तरफ से इसे राष्ट्रवादी गौरव का प्रतीक बताया जा रहा है, जबकि आलोचकों का कहना है कि इसे राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक और सैन्य भावनाओं का उपयोग कर भुनाया जा रहा है। कर्नल सोफिया कुरैशी की भूमिका को लेकर भी कुछ राजनेताओं द्वारा टिप्पणी की गई थी, जिसे सेना और अदालतों ने गंभीरता से लिया है।


निष्कर्ष:
एक ओर, एक शिक्षाविद को विचार प्रकट करने के लिए जेल भेज दिया जाता है, दूसरी ओर सत्ता पक्ष के मंत्रियों को सेना के अपमान के बावजूद संरक्षण दिया जाता है। यह मुद्दा अब केवल ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की नैतिकता का नहीं, बल्कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, न्यायिक निष्पक्षता और राजनीतिक जवाबदेही का बन गया है।

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