ऑपरेशन सिंदूर पर सियासत: संसद से सोशल मीडिया तक गरमाई बहस, विपक्ष की भूमिका पर सवाल
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
भारत के लिए यह कोई नई बात नहीं कि जब कोई राष्ट्रीय आपदा या आतंकी हमला होता है, तब राजनीतिक दल उसे जनभावनाओं की सीढ़ी बनाकर सियासी लाभ उठाने लगते हैं। पुलवामा से लेकर अब पहलगांव आतंकी हमले तक, हमले की गंभीरता, सुरक्षा व्यवस्था में खामी या दुश्मन देश को करारा जवाब देने के बजाय, चर्चा का केंद्र बन गया है – ‘किसने ज्यादा राष्ट्रवाद दिखाया और किसे इसका क्रेडिट मिला।’
ऑपरेशन सिंदूर, जो कि सैन्य कार्रवाई का हिस्सा था और देश की संप्रभुता व सुरक्षा के लिहाज से एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है, अब राजनीतिक रस्साकशी का मैदान बन चुका है। हाल ही में रेलवे की आईआरसीटीसी वेबसाइट पर इस ऑपरेशन की तस्वीरें और वीडियो प्रदर्शित कर प्रधानमंत्री मोदी को “क्रेडिट” देने की कोशिश की गई, जिससे न सिर्फ इस अभियान की गोपनीयता और गरिमा प्रभावित हुई, बल्कि विपक्ष के तीखे सवालों को भी हवा मिली।
सोशल मीडिया बना राजनीतिक अखाड़ा, सेना को भी नहीं छोड़ा गया
पहलगांव हमले के बाद सोशल मीडिया पर जिस तरह की राजनीतिक बयानबाजी देखने को मिली, उसने देश की जनता को हतप्रभ कर दिया। राजनीतिक पार्टियां अब सीधे सेना, विशेष रूप से कर्नल सोफिया तक को अपने आरोपों और जवाबी बयानों में घसीट रही हैं। ऐसा लगता है जैसे दुश्मन देश को जवाब देने की प्राथमिकता अब ट्रेंडिंग हैशटैग्स और रीलों से बदल दी गई है।
राजू पारुलेकर का पत्र: विपक्ष को आईना दिखाता सवालों से भरा चेतावनीनामा
प्रख्यात लेखक, राजनीतिक विश्लेषक और ब्लॉगर राजू पारुलेकर ने इस मुद्दे पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, कनिमोझी, सुप्रिया सुले और शशि थरूर सहित कई विपक्षी नेताओं को संबोधित करते हुए एक खुला संदेश जारी किया है। इस संदेश में उन्होंने न केवल मोदी सरकार की विदेश नीति और ऑपरेशन सिंदूर के प्रचार को लेकर तीखा हमला बोला, बल्कि यह भी कहा कि विपक्ष अपने जनादेश से भटक गया है।
पारुलेकर ने आरोप लगाया कि—
- प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सामने भारत की संप्रभुता को समर्पित किया था।
- विदेश मंत्री द्वारा पाकिस्तान को अग्रिम युद्ध जानकारी देने की बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार की गई, लेकिन विपक्ष ने इसे सदन में मुद्दा नहीं बनाया।
- विपक्ष के कई नेता सरकार प्रायोजित विदेश दौरों में हिस्सा ले रहे हैं, जिससे उनकी निष्पक्षता और प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
- गृह मंत्री अमित शाह ने आज तक यह स्पष्ट नहीं किया कि पुलवामा हमले में इस्तेमाल हुआ RDX कहां से आया और हमलावरों के नेटवर्क तक कैसे नहीं पहुंचा गया।
क्या ‘ब्रांड मोदी’ देश की संप्रभुता से बड़ा हो गया है?
राजू पारुलेकर ने कहा कि “ब्रांड मोदी कोई वैचारिक दर्शन नहीं, बल्कि एक अत्यधिक महंगी विज्ञापन रणनीति है।” उन्होंने आरोप लगाया कि यह प्रचार तंत्र पिछले दो दशकों से देशवासियों को राष्ट्रवाद और आत्मसम्मान के नाम पर गुमराह करता आया है।
उन्होंने विपक्ष को चेताते हुए कहा कि—
“यदि आपने ऑपरेशन सिंदूर जैसे मुद्दों पर संसद में सरकार को जवाबदेह नहीं बनाया, तो आने वाले समय में यह आपके लिए उसी तरह का जाल साबित होगा जैसा ईवीएम पर लड़ने का फैसला बना।”
संसद ही एकमात्र मंच है जवाबदेही का
पारुलेकर का सबसे बड़ा आग्रह यही था कि विपक्ष को चाहिए कि वो सरकार को सदन में घसीटे, एक संयुक्त सत्र की मांग करे और ऑपरेशन सिंदूर, पुलवामा, और पहलगांव हमले जैसे मुद्दों पर राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता और जवाबदेही की बहस संसद में शुरू करे।
उन्होंने राहुल गांधी से कहा—
“एक बार फिर समय आ गया है, जब देश को उत्पीड़न की दलदल से निकालने के लिए एक गांधी की जरूरत है। भारत से प्रेम करने वाले भाजपा कार्यकर्ता भी अब कांग्रेस से उम्मीद लगाए बैठे हैं।”

Dear Countrymen,
— Raju Parulekar (@rajuparulekar) May 19, 2025
To,
Dear @RahulGandhi ji, LOP,
Lok Sabha,
CC: @KanimozhiDMK @priyankac19 @supriya_sule @ShashiTharoor
I am compelled to bring the following issues to your immediate Notice in the interest of the Nation.
▪️Despite PM Modi surrendering India’s sovereignty… pic.twitter.com/B9MFOuPPdv
निष्कर्ष: राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम सियासी रणनीति
आज का भारत, जहां एक तरफ आतंकवाद के खिलाफ लड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर देश की राजनीति इस लड़ाई को भी वोटों की रणनीति में तब्दील कर रही है। आम नागरिक इस दोहरी मार से पीड़ित है— एक तरफ दुश्मन की गोली, दूसरी तरफ सियासी चालबाजियाँ।
क्या विपक्ष अपने कर्तव्य को समझेगा?
क्या सरकार राष्ट्रवाद के नाम पर प्रचार की सीमा पार कर रही है?
और सबसे अहम – क्या संसद में इन प्रश्नों पर जवाबदेही तय होगी?
ये सवाल आज हर जागरूक भारतीय के मन में गूंज रहे हैं।