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“फील्ड मार्शल मुनीर” : पाकिस्तान की सैन्य विफलता पर पाँच सितारा ढोंग या सैनिक तानाशाही की वापसी का संकेत ?

पाकिस्तान एक बार फिर उसी मोड़ पर खड़ा दिखाई दे रहा है, जहाँ से उसने इतिहास में सबसे कड़वे दौर की शुरुआत की थी — जब सेना ने लोकतंत्र को बूटों तले रौंदकर सत्ता की बागडोर अपने हाथों में ले ली थी। और अब, जनरल सैयद आसिफ मुनीर को ‘फील्ड मार्शल’ का रैंक देकर पाकिस्तान एक बार फिर उसी पुराने नक्शे कदम पर लौटता दिख रहा है, जिसपर कभी जनरल अय्यूब खान चला था।

लेकिन फर्क ये है कि अय्यूब खान ने भारत से जंग लड़ी थी, भले हार मिले, पर एक सैन्य विज़न था, एक स्पष्ट उद्देश्य था। मगर जनरल मुनीर के खाते में ऐसा कोई युद्ध कौशल या सैन्य नेतृत्व की गौरवशाली गाथा दर्ज नहीं। बल्कि उनके कार्यकाल को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे शर्मनाक सैन्य अपमान और राजनीतिक अस्थिरता के प्रतीक के तौर पर याद किया जा रहा है।

क्या है “ऑपरेशन सिंदूर” और क्यों फजीहत बनी जनरल मुनीर की पहचान?

हाल ही में भारत द्वारा की गई एक गोपनीय लेकिन सटीक सैन्य कार्रवाई — ऑपरेशन सिंदूर — ने पाकिस्तान की सैन्य प्रतिष्ठा की धज्जियाँ उड़ा दीं। भारतीय रक्षा सूत्रों के अनुसार, इस ऑपरेशन में:

  • 9 आतंकी ठिकाने पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दिए गए,
  • 12 एयरबेस पर बमबारी हुई,
  • पाकिस्तानी वायु सुरक्षा प्रणाली पंगु हो गई,
  • चीनी हार्डवेयर को भारी नुकसान हुआ,
  • 5.7 जेट विमान, 100+ ड्रोन, और 70 सैनिक मारे गए,
  • कई चौकियाँ तबाह कर दी गईं,
  • पाकिस्तान को युद्धविराम की याचना करनी पड़ी।

इन घटनाओं के बीच एक सवाल बार-बार उठ रहा है — क्या यही वह “वीरता” है जिसकी वजह से जनरल मुनीर को फील्ड मार्शल बनाया गया है?

फील्ड मार्शल का तमगा, लेकिन हकीकत में ‘पदावनति’!

जनरल मुनीर की यह पदोन्नति कोई सैन्य गरिमा की पहचान नहीं, बल्कि राजनीतिक छवि निर्माण का भौंडा प्रयास प्रतीत होती है। यह स्थिति तब और हास्यास्पद हो जाती है जब यह मालूम चलता है कि इस रैंक के साथ न तो वेतन बढ़ा है, न अधिकार। यानी मुनीर अब भी वही काम कर रहे हैं जो एक साधारण चार-स्टार जनरल करता है — फर्क बस इतना है कि अब उनके कंधे पर पाँच सितारे टंगे हैं, और आलोचना की मात्रा उससे कहीं ज्यादा बढ़ गई है।

इसी का मज़ाक उड़ाते हुए मशहूर सिंगर अदनान सामी ने एक व्यंग्यात्मक वीडियो पोस्ट किया जिसमें गधों के बीच एक आदमी भाषण देता दिखता है। सामी ने कैप्शन में लिखा:

“जनरल मुनीर का पाकिस्तान सरकार को संबोधित स्वीकृति भाषण, जो उन्होंने फील्ड मार्शल बनने के बाद अपने श्रोताओं के रूप में दिया!!”

यह पोस्ट पाकिस्तान की जनता के गुस्से और निराशा की अभिव्यक्ति बन गई है।

क्या पाकिस्तान अय्यूब युग की ओर लौट रहा है?

यह सवाल अब केवल अटकल नहीं रह गया है। 1958 में जनरल अय्यूब खान ने भी ठीक इसी तरह फील्ड मार्शल का रैंक ग्रहण किया था — फिर चुनी हुई सरकार का तख्तापलट कर सत्ता अपने हाथों में ले ली थी। वर्तमान आर्थिक, राजनीतिक और कूटनीतिक हालात देखें तो पाकिस्तान लगभग उसी स्थिति में पहुँच चुका है:

  • अर्थव्यवस्था रसातल में,
  • विदेश नीति दिशाहीन,
  • भारत और अफगानिस्तान से तनाव चरम पर,
  • जनता सड़कों पर,
  • और सरकार कठपुतली बन चुकी है

ऐसे में, क्या यह पांच सितारा रैंक पाकिस्तानी सेना की वापसी की आहट है?

जनता की नाराज़गी और गृह युद्ध का भय

जनरल मुनीर के सैन्य प्रदर्शन से बुरी तरह खफा जनता, अब प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सरकार से भी बेहद नाराज़ है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह कहकर आर्थिक मदद मांगी कि “भारत के हमलों ने पाकिस्तान को तबाह कर दिया है।” लेकिन जब इस बयान पर देश में ही भारी आलोचना हुई, तो सरकार पलटी मारते हुए इसे “फर्जी खबर” घोषित कर बैठी।

यह असमंजस और आत्मविरोधी कूटनीति बताती है कि पाकिस्तान के शासकों के पास न कोई दिशा है, न नीति — सिर्फ सेना की गोद में गिरने की मजबूरी है।

जनरल अय्यूब खान की परछाईं में मुनीर

अय्यूब खान पाकिस्तान के पहले फील्ड मार्शल थे। उन्होंने 1958 में राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्ज़ा का तख्तापलट कर सत्ता संभाली और 1965 तक पाकिस्तान पर शासन किया। वे भी ब्रिटिश सेना से प्रशिक्षित थे, अलीगढ़ यूनिवर्सिटी और सैंडहर्स्ट के छात्र रहे। उन्होंने भारत से युद्ध लड़ा और संयुक्त राज्य अमेरिका तथा चीन के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए, लेकिन अंततः बांग्लादेश संकट और आंतरिक असंतोष ने उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया।

क्या अब वही कहानी दोहराई जा रही है? क्या मुनीर “अय्यूब 2.0” बनने की कोशिश कर रहे हैं?


निष्कर्ष: पाकिस्तान की राजनीति में सेना की पुनः चढ़ाई

जनरल आसिफ मुनीर को फील्ड मार्शल बनाना एक प्रतीक है — न सैन्य सफलता का, न रणनीतिक दूरदर्शिता का, बल्कि लोकतंत्र के विघटन और सेना की सत्ता में वापसी का।
जब एक जनरल युद्ध हारने के बाद भी तरक्की पाता है, तो यह सिर्फ एक देश का मज़ाक नहीं, बल्कि उस देश की जनतांत्रिक असफलता का एलान होता है।

“जनरल मुनीर पाँच सितारे पहन सकते हैं, लेकिन अपने पीछे वे पाकिस्तान की पाँच सबसे बड़ी समस्याएँ छोड़ते हैं: सैन्य अपमान, राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक दिवालियापन, अंतरराष्ट्रीय अलगाव और जनविरोध।”

और अब, जो सबसे डरावना सवाल है —
क्या पाकिस्तान की आवाम अगली सुबह सैनिक बूटों की धमक में उठेगी?


Muslim Now पर ऐसे विश्लेषण पढ़ते रहें।
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