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तेल-अवीव पर ईरानी मिसाइलों की बौछार, महिला की मौत,60 से अधिक घायल; मोसाद मुख्यालय भी निशाने पर

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, तेहरान

ईरान और इज़रायल के बीच तेज़ी से बढ़ते सैन्य तनाव ने शुक्रवार रात एक नए और खतरनाक मोड़ पर कदम रखा। तेहरान ने बैलिस्टिक मिसाइलों की एक सुनियोजित बौछार के साथ इज़रायल पर जवाबी हमला किया, जिसमें तेल-अवीव समेत कई इलाकों में भारी क्षति हुई। इज़रायली अधिकारियों ने एक महिला की मौत और करीब सौ नागरिकों के घायल होने की पुष्टि की है। इस हमले में इज़रायल की जानीमानी खुफिया एजेंसी मोसाद के मुख्यालय को भी नुकसान पहुंचा है।

इस हमले के बाद नई बहस छिड़ गई है — क्या मोसाद का मुख्यालय जानबूझकर आबादी वाले क्षेत्र में स्थित है?

इज़रायली प्रशासन का आरोप है कि ईरान ने आम नागरिकों को निशाना बनाया है। जबकि ईरान का तर्क है कि मोसाद का मुख्यालय जानबूझकर घनी आबादी के बीच स्थापित किया गया है, ताकि उसे मानवीय ढाल की आड़ मिले — यही वजह है कि नागरिक भी हमले की चपेट में आ गए।
विश्लेषक कह रहे हैं कि यही दलील इज़रायल वर्षों से ग़ाज़ा में देता रहा है, जब वह हमास पर आरोप लगाता है कि उसके सैन्य अड्डे सार्वजनिक इमारतों में छिपे होते हैं। अब जब मोसाद पर हमला हुआ है, तो सोशल मीडिया पर इस ‘दोहरी सोच’ की जमकर आलोचना हो रही है।

मिसाइलों से दहली तेल-अवीव की रात

शुक्रवार रात ईरान ने इज़रायल की ओर 60 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं, जिससे आसमान में आग के गोले और इंटरसेप्टर मिसाइलों की चमक फैल गई। सायरनों की गूंज और बम शेल्टर्स की ओर भागते लोग — पूरा देश एक युद्धकालीन भय के साए में आ गया।

मैगन डेविड एडोम ने बताया कि 60 से अधिक लोग घायल हुए, जिनमें से एक महिला गंभीर रूप से घायल होकर बाद में चल बसी। कुछ अन्य नागरिकों को तनाव और घबराहट की शिकायतें भी हुईं।

इज़रायल के रक्षा मंत्री योआव गैलेंट ने बयान दिया कि “ईरान ने नागरिकों को लक्ष्य बनाकर लाल रेखा पार कर दी है।” साथ ही चेतावनी दी गई कि ईरान को इसकी “बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।”

एक वरिष्ठ इज़रायली अधिकारी ने चैनल 12 को बताया, “हम जानते हैं कि हमने ईरान में क्या मारा, और क्या नहीं मारा। अगला चरण तय हो चुका है।” यह कथन इस ओर इशारा करता है कि इज़रायल ईरान के ऊर्जा और सैन्य ढांचों पर जवाबी हमले की योजना बना रहा है।

अयातुल्ला खामेनेई का पलटवार: “ज़ायोनी शासन भुगतेगा कड़वा अंजाम”

ईरानी सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने कहा, “इज़रायल ने हमारे आवासीय इलाकों को निशाना बनाकर अपने दुष्ट चेहरे को उजागर कर दिया है। अब ज़ायोनी शासन को कड़वा और दर्दनाक अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए।”

ईरान ने यह भी स्पष्ट किया कि अब वह अपनी यूरेनियम संवर्धन और मिसाइल क्षमताओं को और तेज़ी से विकसित करेगा। सरकारी बयान में कहा गया, “दुनिया को अब यह समझ में आ जाना चाहिए कि ईरान जैसे राष्ट्र को सिर्फ शक्ति की भाषा में ही जवाब देना चाहिए।”

अमेरिका पर भी तीखा आरोप

ईरान ने सीधे तौर पर अमेरिका पर भी आरोप लगाए कि इज़रायल की सैन्य कार्रवाई वॉशिंगटन की सहमति और समन्वय के बिना संभव नहीं थी। ईरानी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता अबोलफज़ल शेखरची ने सरकारी टीवी पर कहा, “संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़रायल — दोनों को इस जघन्य हमले की भारी कीमत चुकानी होगी।”

अमेरिका ने हालांकि तुरंत सफाई दी कि उसने इस ऑपरेशन में कोई भूमिका नहीं निभाई और ईरान को चेतावनी दी कि वह अमेरिकी ठिकानों या हितों को निशाना न बनाए।

“घनी आबादी में मोसाद मुख्यालय? अब क्या यही ‘मानव ढाल’ है?”

तेहरान में विश्लेषकों का कहना है कि मोसाद का तेल-अवीव स्थित मुख्यालय जानबूझकर घनी आबादी में रखा गया है, ताकि हमलों से बचा जा सके — और जब उसपर हमला होता है, तो नागरिकों की मौत का दोष ईरान पर मढ़ा जा सके।

ग़ाज़ा युद्ध में ठीक यही तर्क इज़रायल हमास के खिलाफ देता रहा है — कि “जनसंख्या में छिपा दुश्मन वैध लक्ष्य है।” अब जब मोसाद पर इसी तरह हमला हुआ, तो सोशल मीडिया पर टिप्पणी की जा रही है: “पागलपन की हद है! क्या अब तेल-अवीव की हर गली ‘वैध लक्ष्य’ बन गई?”


यह संघर्ष अब केवल युद्ध नहीं, बल्कि तर्क और नैतिकता की लड़ाई भी बन चुका है। जब हम ग़ाज़ा के बच्चों के आँसू और तेल-अवीव के डर को एक ही तस्वीर में देखते हैं, तो सवाल उठता है — क्या वास्तव में कोई ‘वैध लक्ष्य’ होता है?

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