ईरान पर हमला और ‘मानवता’ की दुहाई: क्या इज़रायल अब नया वैश्विक खतरा है?
मुस्लिम नाउ विशेष
भारत के बिहार राज्य में एक कहावत है – “….लगी फटने, खैरात लगी बटने।” यानी संकट के समय जो चुप रहता है, वह बाद में झूठी दानवीरता का नाटक करता है। आज यही हालत इज़रायल की है। ईरान के हालिया जवाबी मिसाइल और ड्रोन हमलों के बाद इज़रायल पूरी दुनिया के सामने यह कहता घूम रहा है कि उसने तो सिर्फ ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया, वो भी मानवता की रक्षा के नाम पर। लेकिन असलियत यह है कि उसके “मानवतावादी” हमले में ईरान के रिहायशी इलाके तबाह हो गए, वैज्ञानिकों की हत्या कर दी गई, और आम नागरिकों की जानें चली गईं।

इज़रायल की यह दलील कितनी खोखली है, इसे समझने के लिए किसी विशेषज्ञ की ज़रूरत नहीं। जिसने ईरान के सिर्फ परमाणु केंद्र ही नहीं, वहां के वैज्ञानिकों, नागरिकों और सेना के अधिकारियों को भी निशाना बनाया — यहां तक कि एक नवजात शिशु तक को नहीं बख्शा गया, जिसकी तस्वीरें अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं — वह देश किस मुंह से मानवता की बात कर सकता है?
इज़रायल क्या यह मान बैठा है कि पूरी दुनिया बेवकूफ है? क्या वह यही “मानव सेवा” गाज़ा में कर रहा था, जब उसने पूरी पट्टी को मलबे में बदल दिया? 70,000 से अधिक जानें ली गईं, और अब भी लोगों को भोजन और दवाइयों तक नहीं मिल रही हैं — और रसद की राह में सबसे बड़ा रोड़ा खुद इज़रायल बना हुआ है।
बिल्कुल स्पष्ट है कि 7 अक्टूबर 2023 को जब हमास ने इज़रायल के सरहदी क्षेत्रों में हमला कर 1,200 लोगों को मार डाला और 300 को बंधक बनाया, वह एक निंदनीय और खतरनाक कार्रवाई थी। लेकिन इसका जवाब क्या पूरी गाज़ा पट्टी को खंडहर बनाकर देना उचित था? क्या लाखों निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतार देना किसी भी सभ्य राष्ट्र के “संयमित प्रतिघात” का उदाहरण हो सकता है?
इज़रायल ने तब यह तर्क दिया था कि हमास के लड़ाके अस्पतालों और स्कूलों में छिपे हैं, इसलिए उन्हें निशाना बनाना मजबूरी थी। लेकिन अब जब ईरान ने उसके सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया है, और वही इज़रायल यह कहकर रोता है कि यह तो “रिहायशी इलाके” हैं — तब सवाल उठता है: क्या इज़रायल वही कर रहा है, जिसका आरोप वह दूसरों पर लगाता है?
इज़रायल ने एक नई परंपरा भी स्थापित कर दी है — जो उसके खिलाफ बोले, उसे ‘आतंकवादी’ घोषित कर दो। इस थ्योरी में अमेरिका, यूरोप और कुछ मुस्लिम देश भी उसके साथ खड़े नज़र आते हैं। क्योंकि इज़रायल इन देशों का बड़ा हथियार खरीदार है, या फिर उन पर कर्जदार। यही वजह है कि कोई खुलकर इसके खिलाफ नहीं बोलता।
मगर अब यह साजिश पूरी दुनिया समझने लगी है। जब इज़रायल खुलेआम संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को खारिज करता है, फ्रांस जैसे देशों की चेतावनियों को नजरअंदाज़ करता है, और इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस की सुनवाई को मज़ाक समझता है — तब दुनिया को सचेत होना ही पड़ेगा।
आज इज़रायल के पास ऐसी तकनीकें हैं जिनसे वह दूर बैठे-बैठे दूसरे देशों के मोबाइल, वॉकी-टॉकी, या रेडियो फ्रीक्वेंसी में बम विस्फोट कर सकता है। इससे अंतरराष्ट्रीय भरोसा डगमगाने लगा है। सोचिए, अगर कोई देश – जैसे चीन – भारत में खिलौनों के ज़रिए टाइमर बम भेजे, या बांग्लादेश अपने रेडीमेड गारमेंट्स में विस्फोटक चिप्स लगाकर अमेरिका को सप्लाई करे, तो क्या हो?
इसीलिए इज़रायल को नियंत्रित करना अब सिर्फ मानवता नहीं, बल्कि वैश्विक विश्वास और सुरक्षा का सवाल बन गया है। जिस तरह से उसने हाल ही में ईरान पर हमला किया, वह यह भी दर्शाता है कि अब उसकी निगाहें खुद को दुनिया का नया चौधरी बनाने पर हैं। अमेरिका की वैल्यू अब उसके लिए गौण हो चुकी है — तभी तो पहले बाइडेन और अब ट्रंप दोनों ही कह चुके हैं कि इज़रायल अब उनकी नहीं सुनता।

निष्कर्ष:
इज़रायल अब मानवता के नाम पर जो कर रहा है, वह न सिर्फ दोहरे मापदंड का उदाहरण है, बल्कि वैश्विक शांति के लिए एक बड़ा खतरा भी। अगर समय रहते उसे कूटनीतिक रूप से नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह संकट भविष्य में और विकराल रूप ले सकता है।