बंगालः 42 मुस्लिम उम्मीदवारों के जीतने से क्यों हो रहा एक वर्ग के पेट में दर्द
पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में 42 मुस्लिम उम्मीदवारों के चुनाव जीतने से देश के एक खास वर्ग के पेट में दर्द शुरू हो गया है. देश में नफरत का माहौल बनाने वाले इसे लेकर कुछ इस कदर परेशान हैं कि चुनाव बाद के हिंसा को भी इससे जोड़ने की कोशिश की जा रही है. माहौल खराब करने को यहां तक कहा जा रहा है कि लुंगी पहनने वालों ने एकजुट होकर ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को वोट दिया ताकि किसी भी सूरत में भाजपा सत्ता में न आए.
हालांकि, चाहे जितना और जैसे दावे किए जाएं, पर हकीकत यह है कि फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के लिए पश्चिम बंगाल उपजाउ जमीन नहीं है. पिछले पांच वर्षों से भाजपा बंगाल में अपने लिए जमीन तैयार करने में लगी थी. बावजूद इसके सौ सीटों का भी आंकड़ा पार नहीं कर पाई. यहां तक कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का भी उसे विशेष लाभ नहीं मिला. मौजूदा समय में पश्चिम बंगाल में जैसा हिंसक माहौल है, टीएमसी का आरोप है कि यह उसकी बनाई हुई जमीन का परिणाम है.
बहरहाल, मुसलमानों की जीत को कमतर साबित करने के लिए तरह-तरह की बातंें कही जा रही हैं. नफरती गैंग का बुद्धिजीवी तबका इसे कुछ दूसरे ढंग से आंक रहा है. उसके मुताबिक, 2011 की जनगणना के अनुसार. पश्चि बंगाल में मुसलमानों की आबादी 27 प्रतिशत से ज्यादा है.
इस हिसाब से मुस्लिम उम्मीदवारों को कम से कम 100 सीटों पर जीत दर्ज करना चाहिए था. मगर यह तबका यह नहीं बता रहा कि पिछले पांच वर्षों में धर्म के नाम पर पश्चिम बंगाल में ध्रुवीकरण का जिस तरह का खेल चला, क्या ऐसे माहौल में मुस्लिम उम्मीदवारों का जीता का आंकड़ा 100 के पार करना संभव था ? जाहिर है जवाब होगा नहीं होगा.
इस मामले में तो हमें पश्चिम बंगाल के मुसलमानों की दाद देनी चाहिए कि उन्होंने वाम दलों, कांग्रेस को दरकिनार कर एकजुट होकर टीएमसी को वोट दिया. अन्यथा वाम दलों, कांग्रेस और दूसरे मुस्लिम संगठनों का रवैया ऐसा था कि उन्होंने भाजपा को थाली में सत्ता परोसने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. ममता बनर्जी ने चुनाव से पहले भाजपा को हाशिया पर धकेलने के लिए सभी सेक्युलर पार्टियों को एकजुट होकर चुनाव लड़ने की दावत दी थी.
मगर प्रदेश में बदतर स्थिति होने के बावजूद सेक्युलर पार्टियों ने टीएमसी के खिलाफ मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ा. सेक्युलर पार्टियों का ढपोरशंखी का ही नतीजा है कि भारतीय जनता पार्टी केंद्र में दूसरी बार सत्ता में है. यदि सारी सेक्युलर पार्टियां एकजुट होकर चुनाव लड़ें तो क्या भाजपा सत्ता में आ सकती है ? यदि भाजपा से छुटकारा पाना है तो आज नहीं तो कल ऐसा करना ही होगा अन्यथा उसे सत्ता से बाहर किसी और तरीके से नहीं किया जा सकता.
पश्चिम बंगाल में मतदाताओं ने भाजपा के विरूद्ध जैसी एकजुटता दिखाई है, उससे एक वर्ग बुरी तरह बौखलाया हुआ है. उसे लगता है कि ऐसे ही तरीके हर जगह अपनाए गए तो उसे सत्ता में बने रहने में मुश्किल होगी. तथाकथित चुनावी पंडित भी मानते हैं कि इस बार पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में सूबे के मुस्लिमों ने तृणमूल कांग्रेस के पीछे गोलबंद होकर वोटिंग की. इसकी मिसाल उत्तरी बंगाल का मालदा और मुर्शिदाबाद जिला है,
जहां तृणमूल कांग्रेस को 26 सीटें हासिल हुई हैं. पिछले चुनाव तक यह इलाका एबीए गनी खान चैधरी के परिवार और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चैधरी के प्रभाव का इलाका माना जाता रहा था. यह इलाका मुस्लिमबहुल है और यहां वाममोर्चे की गहरी पैठ भी थी. पर इस बार तृणमूल कांग्रेस ने मुस्लिमों को अपने पीछे गोलबंद करने में कामयाबी हासिल की. ममता ने 294 सीटों वाली विधानसभा में महज 42 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया. उनमें से 41 ने जीत दर्ज की. एक अन्य पार्टी से जीतकर आए हैं. भारतीय जनता पार्टी को 77 सीटें मिली हैं.
मुस्लिम विधायकों की सूचीः
- आमडांगा – रफीकुर रहमान (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- भादुरिया – अब्दुर रहीम काजी (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- बशीरहाट उत्तर दृ रफीकुल इस्लाम मंडल (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- बेलडांगा दृ हसनुज्जमां एसके (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- भांगागोला दृ इदरीस अली (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- भांगर दृ मोहम्मद नौशाद सिद्दीकी (राष्ट्रीय सेक्युलर मजलिस पार्टी)
- भरतपुर – हुमायूँ कबीर (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- कैनिंग पूर्व दृ शौकत मुल्ला (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- चाकुलिया – आजाद मिन्हाजुल अरफिन (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- छपरा – रुकनूर रहमान (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- चोपड़ा – हमीदुल रहमान (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- देवरा – हुमायूँ कबीर (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- देगंगा दृ रहीमा मंडल (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- डोमकल – जाफिकुल इस्लाम (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- फरक्का दृ मनीरूल इस्लाम (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- गोलपोखर – मो गुलाम रबारी (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- हरिहरपारा दृ नियामत शेख (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- हरिश्चंद्रपुर – ताजूल हुसैन (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- हरोआ – इस्लाम एसके नारुल (हाजी) (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- इस्लामपुर – अब्दुल करीम चैधरी (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- ईंटाहार – मोसफर हुसैन (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- जलंगी – अब्दुर रज्जाक (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- कालीगंज – नासिरुद्दीन अहमद (लाल) (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- कस्बा – अहमद खेवन (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- केतुग्राम – शेख शाहनवाज (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- कोलकाता पोर्ट – फिरहाद हकीम (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- कुमारगंज दृ तोराफ हुसैन मंडल (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- लालगोला – अली मोहम्मद (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- मगहरहाट पश्चिम दृ ग्यासुद्दीन मुल्ला (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- मालतीपुर – अब्दुर रहीम बख्शी (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- मटियाबुर्ज – अब्दुल खेलाक मोल्ला (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- मोंटेश्वर – चैधरी सिद्दीक़उल्लाह (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- मोताबाड़ी – येमीन सबीना (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- मुरारई दृ डॉ. मुशर्रफ हुसैन (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- नक्शीपाड़ा – कल्लोल खान (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- नौदा दृ शाहीना मुमताज खान (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस
- पांसकुड़ा पश्चिम दृ फिरोजा बीबी (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- रघुनाथ गंज – अखरुज्जमां (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- रानीनगर – अब्दुल सुमी हुसैन (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- रेजीनगर – रामुल आलम चैधरी (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- सोनारपुर उत्तर दृ फिरदौसी बेगम (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)
- सुजापुर – मो अब्दुल गनी (अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस)