कराची की गलियों में दफन है विश्व प्रसिद्ध कव्वाल अहमद साबरी की हत्या का रहस्य
पाकिस्तान के प्रसिद्ध कव्वाल अमजद साबरी की पांच साल पहले कराची में हत्या कर दी गई थी, लेकिन उनकी हत्या के पीछे का मकसद अभी भी बहस का विषय बना हुआ है.कोई इसे शिया-सुन्नी दंगों का परिणाम बताता है. कोई ईशनिंदा या राजनीतिक प्रतिद्वंदी. मामले की जांचकर्ताओं ने इस मामले में कभी कुछ औचित्य पेशकश
किए तो कभी कुछ और. बाद में अपने ही दावों से मुकरते गए. नतीजतन आज भी अमजद साबरी की मौत पर रहस्य का पर्दा पड़ा है.
अमजद साबरी की हत्या में शामिल दोषियों की गिरफ्तारी को लेकर भी पुलिस असमंजस में थी. इस मामले में एक से अधिक गुटों को गिरफ्तार कर कई प्रेस कान्फ्रेंस की गई.
पाकिस्तान के लाहौर और कराची में यह पहली बार नहीं हुआ था, जब किसी हाई प्रोफाइल व्यक्ति की हत्या कर दी. लेकिन इस हत्याकांड में ऐसा क्या हुआ कि आज भी कोई मानने को तैयार नहीं कि अमजद साबरी से किसी पार्टी या गुट की दुश्मनी होगी.
एक ऐसा व्यक्ति जो सभी संप्रदायों में समान रूप से लोकप्रिय था, जो अपनी कला से एकजुट की सीख देता था. विश्व प्रसिद्ध कव्वाल होने के बावजूद बिल्कुल अहंकारी नहीं था. जमीन से जुड़ी शख्सियत थी उनकी.
वह शाम को शहर के कुलीन रात्रिभोज में विशेष अतिथि होते थे और उसी रात उन्हें कराची की मध्यम वर्ग की आबादी की किसी गली में ढोल बजाते देखा जाता था. उनकी आवाज का आकर्षण ऐसा था कि सभी संप्रदायों के लोग उन्हें दुनिया भर में अपनी सभाओं में आमंत्रित करते थे. वह इतने नर्म दिल थे कि जब भी अल्लाह का कलाम पढ़ते मंच से उतर कर फर्श पर बैठ जाते थे.
अमजद साबरी सिद्धांतों के पक्कते थेे.अपने पिता और दादा से कव्वाली की विरासत मिली थी, जिसे उन्होंने संरक्षित और आगे बढ़ाया.
उनकी हत्या के तुरंत बाद, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने इसकी जिम्मेदारी लेते हुए कहा, ‘‘अमजद साबरी को कथित ईशनिंदा के लिए मार दिया गया है.‘‘ बाद में पुलिस की जांच और गिरफ्तारियों ने स्पष्ट कर दिया कि बयान में बहुत कम सच्चाई है.
अमजद साबरी की हत्या से पहले भी कराची में कई हस्तियां मारी जा चुकी हैं. इनमें से ज्यादातर मामलों में हत्यारों की आज तक पहचान नहीं हुई है.
कराची विश्वविद्यालय के प्रमुख विद्वान और प्रोफेसर शकील ओज, कराची विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर वहीद-उर-रहमान जो डॉ ओज के छात्र थे, पीटीआई के वरिष्ठ नेता जहरा शाहिद, निदेशक ओरंगी पायलट प्रोजेक्ट परवीन रहमान, पुलिस काउंटर आतंकवाद विभाग के एसपी चैधरी असलम मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) के नेता साजिद कुरैशी और कई अन्य अमजद साबरी की हत्या से पांच साल पहले इसी तरह मौत के घाट उतारे गए थे.
उपरोक्त घटनाओं पर करीब से नजर डालने से सांप्रदायिक या भाषाई पूर्वाग्रह या माफिया और हत्याओं के पीछे के मकसद का पता चलता है. लेकिन अमजद साबरी की हत्या अलग है.
टीटीपी के बयान के संदर्भ में पाकिस्तान के एक टीवी मॉर्निंग शो में कहा गया था कि कुछ बातों से उसकी मौत हो गई. लेकिन हत्या के आरोप में पुलिस द्वारा गिरफ्तार आरोपियों के बयान सुनें तो पता चलता है कि शायद अमजद साबरी ने किसी तरह की रंगदारी देने से इनकार कर दिया था, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा.
कारण जो भी हो, एक आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई, जो शहर की पहचान थी, जिससे पूरा शहर परिचित था और बिना अपवाद के सभी नागरिक इसे अपना मानते थे. बावजूद इसके उनकी हत्या की असली वजह और असली अपराधी अभी भी घुप अंधेरे में है.