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पाकिस्तान में अफगान शरणार्थियों की हालत, एक तरफ कुंआ दूसरी तरफ खाई

नईमत खान, इस्लामाबाद

जब तालिबान बलों ने इस महीने की शुरुआत में अपने गृहनगर पर कब्जा कर लिया, तो शरीफा जाहिदुल्लाह और उनका परिवार उन हजारों अन्य अफगानों में शामिल हो गया, जिन्होंने पाकिस्तान में सुरक्षा की तलाश में अपने घरों, संपत्ति और आजीविका को त्याग दिया.जाहिदुल्लाह, उनके पति और छह बच्चे उत्तरी बल्ख प्रांत से कराची पहुंचे हैं. वे सीवेज के पानी और गंदगी मक्खियों से ढकी संकरी गलियों से घिरी एक अपार्टमेंट इमारत के ऊपर एक आलू के भंडारण कक्ष में रह रहे हैं.आलू की बोरियों के बगल में बैठी अपनी बेटियों की ओर इशारा करते हुए उसने कहा, ‘‘हमने कभी ऐसा जीवन नहीं जिया था.‘‘

दशकों के संघर्ष ने लाखों अफगानों को उनके देश से बाहर निकाल दिया है. पाकिस्तान में 14 लाख शरणार्थी के रूप में पंजीकृत हैं. उनमें से अधिकांश देश भर में 54 शिविरों में रहते है. देश में अनिर्दिष्ट अफगानों की संख्या बहुत अधिक होने का अनुमान है. कराची में लगभग 60,000 पंजीकृत हैं, लेकिन अनौपचारिक अनुमान बताते हैं कि वास्तविक संख्या पांच गुना अधिक है.

जैसा कि पलायन का एक नया दौर शुरू हो गया है, अफगान सरकार के पतन और तालिबान के अधिग्रहण के बाद से पिछले दो हफ्तों में, दसियों हजार अफगान छोड़ गए हैं या अपने देश को छोड़ने की सख्त कोशिश कर रहे है.कराची के अल-आसिफ इलाके में शिक्षक और अफगान समुदाय के बुजुर्ग सैयद मुस्तफा नेे बताया कि हजारों परिवारों ने हाल में पाकिस्तानी सीमा पार की है और उनमें से सौ से ज्यादा कराची पहुंचे हैं.

जब 15 अगस्त को तालिबान ने अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया तो उन्हांेने पुराने दुश्मनों के खिलाफ कोई प्रतिशोध नहीं लेने की कसम खाते हुए उन्हें माफी की घोषणा कर दी. कहा कि एक समावेशी इस्लामी सरकार बनाने के अपने उद्देश्य की घोषणा करते हैं. लेकिन जो देश छोड़ कर चले जाते हैं उनपर विश्वास करना मुश्किल हो गया है.

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कुछ लोगों को क्रूर सार्वजनिक दंड और फांसी की वापसी का डर है.विशेष रूप से महिलाओं के लिए कम स्वतंत्रता, पिछले तालिबान शासन के दौरान 20 साल पहले समाप्त हो गया था. जाहिदुल्लाह और उनके परिवार जैसे अन्य, जो अफगान ताजिक हैं – अफगानिस्तान में दूसरा सबसे बड़ा जातीय समूह – बढ़ती हिंसा से डरते हैं.उन्होंने अरब न्यूज को बताया, ‘‘हमारे गांव में युद्ध हुआ था, इसलिए लड़ाई के कारण हम यहां से भाग गए.‘‘

शरीफा जाहिदुल्लाह, जो हाल में अफगानिस्तान के बल्ख प्रांत से भागी हैं, 20 अगस्त, 2021 को पाकिस्तान के कराची के अल-आसिफ इलाके में अपने परिवार के साथ एक आलू भंडारण कक्ष में रह रही हैं.शिया हजारा जातीय धार्मिक अल्पसंख्यक के सदस्य 50 वर्षीय तुफैल हजारा जैसे अन्य, जो जाहिदुल्लाह से पहले अफगानिस्तान से भाग गए थे, उत्पीड़न के खतरे में हैं.उनके समुदाय के सदस्य, लंबे समय से गहरे विभाजन से प्रेरित देश में अपने विश्वास के लिए हाशिए पर थे. उन्हें 1996-2001 में तालिबान शासन के दौरान अत्याचारों का सामना करना पड़ा था.

हजारा ने कहा कि वह तालिबान की समावेशी घोषणाओं पर तब तक विश्वास नहीं करेंगे जब तक कि वे कार्रवाई के माध्यम से (उन्हें) साबित नहीं कर देते. उन्होंने कहा,‘‘तालिबान और उनकी जीत एक वास्तविकता है, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि अफगानिस्तान विभिन्न संप्रदायों के लोगों का देश है जो विभिन्न भाषाएं बोलते हैं. सभी को उसका हिस्सा दिया जाना चाहिए.” पश्तून बहुसंख्यक हैं लेकिन हजारा, ताजिक और उज्बेक भी अफगानिस्तान के नागरिक हैं.‘‘

जब तालिबानों के वादे सच साबित होंगे, तो वो भी लौट आएंगे.उन्हांेने कहा,‘‘अफगानिस्तान मेरा देश है. अगर शांति है तो मुझे जाने में एक मिनट भी नहीं लगेगा.‘‘कराची में रहने वाले एक ताजिक अफगान सैयद अब्बास ने कहा कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश पर कौन शासन कर रहा है, लेकिन लोगों ने अतीत में अपनी दमनकारी राजनीतिक प्रथाओं के कारण तालिबान पर भरोसा नहीं किया.

उन्होंने कहा, ‘‘मैं दुआ करता हूं कि वे वास्तव में बदल गए हैं,‘‘ उन्होंने कहा कि समान जातीयता के बावजूद उन्हें अफगान उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह पर भरोसा नहीं है.अब्बास ने कहा कि सत्ता में रहते हुए सालेह ने राष्ट्रपति अशरफ गनी की तरह ‘‘कभी भी अपने लोगों की परवाह नहीं की.‘‘ दो हफ्ते पहले जब तालिबान ने काबुल में प्रवेश किया तो गनी अफगानिस्तान से भाग गए.
अब्बास ने बताया, ‘‘अशरफ गनी की तरह, (उसने) कभी भी अपने लोगों की परवाह नहीं की, क्योंकि सालेह ने हाल में तालिबान के खिलाफ एक उग्रवादी मोर्चा बनाया है. इससे गृहयुद्ध और अधिक शरणार्थियों को बढ़ावा मिलेगा.लौटने वालों में से कुछ का कहना है कि हिंसा होगी, भले ही कोई भी नियंत्रण में हो. मैं दो बार वापस गया,‘‘ मुहम्मद आसिफ, जिसका परिवार बार चार दशक पहले कराची आया था, ने बताया कि उन्होंने तालिबान और अफगान सैनिकों को उत्तरी बगलान प्रांत में मुठभेड़ करते देखा है. यह सब कुछ उनके घर के पड़ोस में हुआ था. आसिफ बहुसंख्यक पश्तून गुट से है, लेकिन बहुमत होना भी अधिक सुरक्षा की गारंटी नहीं है. उन्होंने बताया,‘‘हमें तब नुकसान होगा जब सुरक्षा बल या तालिबान ऐसा करेंगे.‘‘

इनपुटः अरब न्यूज