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शिक्षा दिवस विशेषः हरियाणा की 11 मुस्लिम सगी बहनें उच्च शिक्षा हासिंल कर बनीं मिसाल

हरियाणा के मेव बहुल मेवात में मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा दर प्रदेश में सबसे कम

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नूंह हरियाणा

बेटी बचाव, बेटी पढ़ाओ के सरकारी नारांे से कहीं अधिक उपर उठकर हरियाणा के मेव मुस्लिम बहुल जिला नूंह के गांव चंदेनी के मरहूम नियाज खां ने एक बेहतर उदाहरण पेश किया है. भले ही वह अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उन्होंने अपनी 11 बेटियों को बेहतरीन शिक्षा दिलाकर एक मिसाल कायम की है. साथ ही उनकी बेटियां समाज के अन्य लोगों के लिए एक सबक भी हैं.

मरहूम रियाज खान की 11 बेटियों में से सात एमए, बीएड जेबीटी, एक एमए जेबीटी, तीन एमबीए, ग्यारह बहनों में से चार सरकारी टीचर, एक लेक्चरर और तीन प्राइवेट स्कूल में अध्यापक हैं. वहीं एक प्राइवेट कंपनी में बतौर सीरियल ट्रेनर काम कर रही हं. जबकि एक अन्य होम डेकोर कंपनी में सीनियर अधिकारी हैं. एक बेटी उच्च शिक्षित होने के बाद घर संभाल रही है.

मेवात जैसे इलाका में जहां लोग लड़कियों को दुनियावी शिक्षा तो दूर, दीनी शिक्षा भी कम ही दिला पाते हैं. रियाज खान और उनकी बेटियों ने समाज की परवाह किए बगैर वो मुकाम हासिल किया, जिसे कोई-कोई ही छू सकता है. अगर सरकार इस परिवार की किसी एक बेटी को बेटी बचाव, बेटी पढाओ अभियान का ब्रांड एंबेसडर बनाए तो रियाज खान को सरकार की ओर से सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
 
 हरियाणा के सबसे पिछड़े इलाका-ए-मेवात में लड़कियों की शिक्षा का बुरा हाल है. इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार इस जिले की साक्षरता दर केवल 24.26 फीसदी थी. देहात में तो केवल आठ फीसदी थी, जो हरियाणा में सबसे कम है. आरोप है कि मुस्लिम बहुल इलाका होने के कारण सरकार बच्चियों की शिक्षा के विशेष इंतजाम नहीं कर रही है. मेवात के तीन दर्जन से अधिक गर्ल स्कूल बिना अध्यापकों के चल रहे हैं. ऐसे में मां-बाप अपनी बेटियों को आगे पढ़ाने को राजी होना भी चाहें तो कोई लाभ नहीं मिलने वाला.

   इन सभी बाधाओं के बावजूद नूंह के छोटे से गांव चंदेनी निवासी मरहूम रियाज खान, जो हरियाणा वक्फ बोर्ड में रेंट कलेक्टर थे, ने अपनी 11 बेटियां का उंची तालीम दी. सभी बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाकर ही वह अल्लाह को प्यारे हुए.मरहूम रियाज खां की सबसे बड़ी बेटी नफीसा ने बताया कि उसके पिता पंजाब वक्फ बोर्ड में राजस्व ऑफिसर थे. पंजाब के बटाला शहर में उनके पिता 9 साल तक रहे, वहीं उन्होंने शिक्षा की शुरुआत की. उनके पिता का गुरदासपुर, मोगा आदि जिलों में तबादला हुआ तभी सभी बहनों ने शिक्षा जारी रखी. नफीसा का कहना है कि वर्ष 1992 में पिता को बिजली का करंट लगने के बाद उनका दाहिना हाथ खराब हो गया. उसके बाद मेरी और मेरी दूसरी नंबर की बहन शबनम की शादी कर दी गई. नफीसा का कहना है कि 1993 में वह नूंह में शिफ्ट हो गए. उसके बाद सारी बहनों ने नूंह से ही शिक्षा ग्रहण की है.

  शबनम का कहना है कि भले ही उनके पिता ने 11 बेटियों को पढ़ाकर एक मिसाल कायम की है, लेकिन मेवात में दहेज के आगे शिक्षा का कोई महत्व नहीं. मेवात में लड़कों को पढ़ी लिखी, खूबसूरत, ऊंचे खानदान से लड़की तो चाहिए, पर उससे पहले दहेज जरूरी है. अगर किसी लड़की में सभी खासियतें हैं और उसके पिता के पास देने के लिए दहेज नहीं है तो उसकी शादी होनी मुश्किल है. वह एक अध्यापक हैं. दहेज से ज्यादा शिक्षा को तवज्जो देने के बारे लोगों को जागरूक करती रहती है.
 
 दीन मोहम्मद मामलीका, उमर मोहम्मद पाड़ला, सफी सरपंच, जावेद सरपंच, शमशेर चैयरमैन, सहूद मैनेजर बादली का कहना है कि मरहूम रियाज खान ने अपनी 11 बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाकर मेवात में मिसाल कायम की है. इलाके के अन्य लोगों को भी इन बेटियों से सबक लेकर अपनी बेटियों को पढ़ाना चाहिए. उन्हांेने कहा कि सरकार को चाहिए कि बेटी बचाव, बेटी पढ़ाओ योजना का इन बेटियों में से किसी एक को ब्रांडऐम्बेस्डर बनाकर मरहूम रियाज खांन को सच्ची श्रद्धांजलि दी जाए.

11 बेटियों की तालीम की प्रोफाइल

नफीसा ने JBT और B.ED की,और अब वो गवर्नमेंट अध्यापक हैं।

शबनम ने MA और JBT की, और वो भी सरकारी अध्यापक हैं।.

फरहाना ने MA JBT B.ED की, और वो भी सरकारी अध्यापक हैं।

नुशरत ने JBT MA B.ED की, और वो सरकारी कॉलेज, मालब में लेक्चरर हैं।

सहनाज़ ने JBT MA B.ED की, और वो प्राइवेट स्कूल में अध्यापक हैं।

अफ़साना ने JBT MA की, वो अभी अपनी सेवाएं बच्चों को दे रही हैं।

एना ने JBT MA B.ED की, और वो सरकारी अध्यापक हैं।

इशरत ने BA की, और वो अपनी सेवाएं बच्चों को दे रही हैं।

रज़िया ने MBA की, और वो प्राइवेट सेक्टर में अपने सेवाएं दे रही हैं।

नाज़िया ने DIPLOMA आर्किटेक्चर से किया और वो अपनी सेवाएं प्राइवेट सेक्टर में दे रही हैं।

बुशरा ने MA B.ED की और वो बच्चों को सेवाएं दे रही हैं।