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हिजाब प्रतिबंधः कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले पर माहौल गरमाया, विरोध में प्रदर्शन का दौर लंबा चलने की उम्मीद,बुधवार को बंद

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली, चिकमगलूर
जिन्हें लग रहा था कि हिजाब पर कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद पिछले कई दिनों से जारी विवाद शांत हो जाएगा, वह गलत थे. कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा हिजाब पर दिए गए फैसले को उलेमाओं एवं मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने एक सुर से नकार दिया गया है. उनकी ओर से न केवल फैसले के विरोध में टिका-टिप्पणी हो रही है, बात आंदोलन तक पहुंच गई है. करीब दो दर्जन मुस्लिम संगठनों ने गुरूवार 17 मार्च को कर्नाटक बंद का आह्वान किया है. इसे कामयाब बनाने के लिए मस्जिदों के इमामों, महिला संगठनों, सुलझे बुद्धिजीवियों,

मुस्लिम युवाआंे से अपील की गई है. फैसले का विरोध करने वालों का कहना है कि अदालत ने इस्लामिक शिक्षा और शरिया के खिलाफ निर्णय सुनाया है. फैसले के विरोध में चिकमगलूर में मुसलमानों ने दुकानें बंद रखीं तथा मुस्लिम छात्राओं ने हिजाब में सड़कों पर मार्च निकाली.

इन सबसे जुड़ा एक गंभीर पहलू यह है कि जब से हिजाब को लेकर विवाद शुरू हुआ है केवल कर्नाटक ही नहीं देश के अलग-अलग हिस्सों में हिजाब में पढ़ाई करने वाली छात्रों के लिए तालीम के दरवाजे तंग कर दिए हैं. मजे की बात यह है कि स्कूल में ड्रेस कोर्ड होता है, पर इसे काॅलेजों में भी लागू किया जा रहा है. अलीगढ़ शहर के एक बड़े काॅलेज ने हिजाब में आने वाली छात्राओं के लिए दरवाजे बंद करने का ऐलान किया है. मौजूदा हालात को लेकर लगता है कि ममाला अब तूल पकड़ चुका है, जिसकी वजह से लंबे दिनों तक मुस्लिम छात्राओं की देशभर के कतिपय शिक्षण संस्थानों में मुसीबत झेलनी पड़ सकती है. चूंकि जजों की पीठ ने फैसला देते समय छात्राओं की शिक्षा के पहलू पर खास जोर नहीं दिया है, इसलिए उनकी पढ़ाई पर व्यापक प्रभाव पड़ने वाला है.

बहरहाल , कर्नाटक के चिकमगलूर में बुधवार को मुस्लिम छात्राओं हिजाब पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध करते हुए, आईडीएसजी कॉलेज की छात्राओं ने परीक्षा का बहिष्कार कर दिया. उन्हांेने गेट के बाहर नारे भी लगाए.छात्राओं ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को‘असंवैधानिक‘ करार दिया.एचसी ने मंगलवार को भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखने के विवाद पर अपना फैसला सुनाया था. कहा कि हिजाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है.

अदालत ने पहले एक अंतरिम आदेश पारित किया था जिसमें मौजूदा ड्रेस कोड वाले शैक्षणिक संस्थानों में दाखिला लेने वाले छात्रों को हिजाब और भगवा स्कार्फ सहित धार्मिक पोशाक पहनने से रोका गया था. इसके बाद स्कूलों और कॉलेजों ने मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनकर परिसर में प्रवेश करने पर रोक दी.

मुस्लिम छात्राएं बुधवार को अदालत के आदेश के बावजूद अपने धार्मिक दायित्व का पालन करने और सिर पर स्कार्फ पहनने का फैसला जारी रखते हुए परीक्षा में बैठने और शिक्षा प्राप्त करने की कोशिश की, पर उन्हें रोक दिया गया. इसपर मुस्लिम छात्रओं ने तख्तियां ले कर प्रदर्शन किया.

रायचूर में एक उर्दू सरकारी स्कूल के शिक्षक ने एक मुस्लिम लड़के के सिर पर उस समय प्रहार किया, जब वह टोपी पहनकर परिसर में दाखिल हुआ, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया.कई लड़कियां जो हिजाब पहनकर आई थीं, उन्हें भी कक्षाओं में जाने से पहले इसे हटाने के लिए कहा गया.राज्य के हासन जिले के एक कॉलेज के 15 से अधिक छात्रों ने अपने संस्थान के परिसर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया. मांग की कि उन्हें हेडस्कार्फ के साथ कक्षाओं में भाग लेने की अनुमति दी जाए.

प्रदर्शनकारी छात्रों का कहना था,“हम हिजाब के साथ शिक्षा चाहते हैं. इसके बिना नहीं. हम हिजाब के बिना कॉलेज नहीं जाएंगे. ” यही नहीं हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ हिजाबी छात्रों के समर्थन में बुधवार को भटकल शहर में कई दुकानें बंद रहीं.कर्नाटक में मुस्लिम धर्मगुरुओं के फैसले पर राज्य में 17 मार्च को बंद का आह्वान किया गया है.

मुस्लिम संगठन 17 मार्च दुकानें रखेंगे बंद

हिजाब पर कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद मामला गरमाने लगा है. फैसले पर अब तक मुस्लिम संगठन और उलेमा आपत्ति करते रहे हैं. इससे एक कदम आगे जाकर कर्नाटक के मुस्लिम संगठनों ने गुरुवार 17 मार्च कोकर्नाटक बंद का आह्वान कर दिया. साथ ही लोगों से इसे सफल बनाने की अपील की गई है.

कर्नाटक का ग्रणीय संगठन शरिया अमीरात है. इससे जुड़े कर्नाटक के सभी मुस्लिम संगठनों ने गुरूवार को कर्नाटक बंद का आह्वान किया है.शरिया अमीरात द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि कर्नाटक में एक दिवसीय शांतिपूर्ण बंद की घोषणा हिजाब के संबंध में उच्च न्यायालय के हालिया दुखद फैसले से नाराज हो की गई है. संगठन ने सभी मुस्लिम संगठनों, मस्जिद के इमामों, मुस्लिम महिला संगठनों से गुरुवार को कर्नाटक में एक दिवसीय शांतिपूर्ण बंद को सफल बनाने का आह्वान किया है.

इसने सभी मुस्लिम कर्मचारियों, व्यापारियों, मजदूरों, छात्रों और समाज के हर वर्ग से बंद में शामिल होने की अपील की है ताकि सरकार को यह समझाया जा सके कि देश में धर्म का पालन करते हुए शिक्षा प्राप्त करना संभव है. देश के न्यायप्रिय भाइयों से भी अनुरोध है कि इस बंद में शामिल हों.

अपील में कहा गया,मिल्लत-ए-इस्लामिया बंद की व्यवस्था में दिलचस्पी दिखाएं. साथ ही मुस्लिम युवाओं को सचेत किया गया है कि वे जबरन दुकानें, व्यवसाय बंद करने या नारे लगाने और जुलूस निकालने से परहेज करें. बंद बेहद शांतिपूर्ण और सिर्फ अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए होना चाहिए.

बंद का समर्थन कर्नाटक के शरिया अमीरात, जमीयत उलेमा कर्नाटक, जमात-ए-इस्लामी, जमीयत-ए-अहल-ए-हदीस, जमात-ए-अहल-ए-सुन्नत कर्नाटक, हजरत बिलाल अहल-ए-सुन्नत अल जमात, अंजुमन-ए-इमामिया, मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट ऑफ कर्नाटक, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल, उडुपी जिला मुस्लिम वकोटा, ग्रेस इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन ऑफ कर्ण टीका, फॉरवर्ड ट्रस्ट ने किया है.इस बीच, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कर्नाटक हिजाब विवाद पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि अदालत का निर्णय इस्लामी शिक्षाओं और शरिया कानून के अनुसार नहीं है.

आदेश अनिवार्य, आवश्यक है. उनका उल्लंघन करना गुनाह है. इस लिहाज से हिजाब एक जरूरी नियम है. यदि कोई इसका पालन नहीं करता, तो वह इस्लाम नहीं छोड़ता, लेकिन वह गुनाहगार जरूर है. ऐसा शख्स नरक की सजा का हकदार है. इस कारण यह कहना कि परदा इस्लाम का आवश्यक हिस्सा नहीं है, शरीयत के अनुसार जायज नहीं है.मौलाना अरशद मदनी ने यह भी कहा कि मुसलमान अपनी लापरवाही के कारण इबादत नहीं करते और रोजे नहीं रखते. इसका मतलब यह नहीं कि नमाज और उपवास आवश्यक नहीं है.