‘देश किधर जा रहा है ?, सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद भी क्या मुसलमान मीडिया के निशाने से बच पाएंगे ?
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
जिस तरह मीडिया का एक बड़ा वर्ग हर दिन मुसलमानों को अपने निशाने पर रखता है, सुप्रीम कोर्ट के बुधवार के फटकार के बाद क्या उनमें सुधार होगा ? चूंकि यह पहली बार नहीं है. इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट बेलगाम मीडिया पर तंज के चाबुक बरसाता रहता है. इसके बावजूद उनमें कोई सुधार नहीं दिखता. हर दिन टीवी और सोशल मीडिया पर हिंदू-मुस्लिम डिबेट चलाकर देश का माहौल खबरा करने की कोशिश की जाती है. अधिकांश मामलों में मुसलमानों को ही घेरने की कोशिश की जाती है. लेकिन जब बिलकिस बानो जैसे मामले आते हैं या किसी दलित के उत्पीड़न और ज्यादती की शिकायत आती है तो प्रमुख मीडिया घराना आंखें मंद लेता है. हद तो यह है कि सरकार की निष्क्रियता और नाकामियों की आलोचना करने की जगह चाटुकारिता पर उतर आया है.
चूंकि बेलगाम मीडिया पर चाबुक बरसाने के लिए पहले से कई तरह के कानून और बंदिशें मौजूद हैं, पर इसे लागू कराने वाले संगठनों में वही लोग शामिल हैं, इसलिए सुप्रीम कोर्ट के तमाम फटकार और हर तरह के कायदे-कानून रहते उनपर कोई काबू नहीं लगा पा रहा है. ऐसे बेलगाम मीडिया और इसके प्रति सरकार के रवैये से सुप्रीम कोर्ट भी हैरान परेशान है, इसलिए इसने मीडिया और सरकार को खूब खरी-खोटी सुनाई. बावजूद सवाल अपनी जगह कायम है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के गुस्सा जताने के बावजूद मीडिया और इसके प्रति सरकार के रवैये में कोई बदलाव दिखेगा. हिंदू-मुस्लिम डिबेट की जगह सार्थक मुद्दों पर बहस होते हमें टीवी और सोशल मीडिया पर नजर आएगा ? क्या होगा यह तो समय ही बताएगा ?
बहरहाल, बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा मीडिया के रवैये के प्रति नाराजगी जाहिर करते हुए कहा- हमारा देश किस ओर जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से मीडिया में हेट स्पीच के अनियंत्रित होने पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए ये टिप्पणी की. हेट स्पीच के खिलाफ एक मजबूत नियामक तंत्र की आवश्यकता पर जोर देते हुए, कोर्ट ने भारत सरकार से पूछा- जब यह सब हो रहा है तो यह एक मूक गवाह के रूप में क्यों खड़ी है ?
जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ 11 रिट याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई कर रही थी, जिसमें हेट स्पीच को नियंत्रित करने के निर्देश देने की मांग की गई है. बैच में सुदर्शन न्यूज टीवी द्वारा प्रसारित यूपीएससी जिहाद शो के खिलाफ दायर याचिकाएं, धर्म संसद की बैठकों में दिए गए भाषण और सोशल मीडिया संदेशों के नियमन की मांग करने वाली याचिकाएं हैं, जो कोविड महामारी को सांप्रदायिक बना रहे थे. इसपर सुप्रीम कोर्ट केंद्र को विधि आयोग की सिफारिशों पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा. जस्टिस जोसेफ ने सुनवाई शुरू होने पर पूछा, कानून के प्रावधान क्या हैं जो भारत में हेट स्पीच से संबंधित हैं? याचिकाकर्ताओं में से एक, एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय ने अदालत को सूचित किया कि चुनाव आयोग से एक जवाब प्राप्त हुआ है जहां यह सुझाव दिया गया है कि विशिष्ट प्रावधान को शामिल करने वाले संशोधनों की आवश्यकता है.
उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि हेट स्पीच और अफवाह फैलाने वाले किसी भी कानून के तहत परिभाषित नहीं हैं. जस्टिस जोसेफ ने भारत सरकार से भी इसकी प्रतिक्रिया के बारे में पूछा और पूछा कि वह मूक गवाह क्यों बनी हुई है ? उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को एक ऐसी संस्था बनाने के लिए आगे आना चाहिए जिसका पालन सभी करेंगे. कोर्ट ने भारत सरकार को अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया. इसके अलावा, अदालत ने सरकार को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि क्या वह घृणा अपराधों से निपटने के लिए संशोधनों के संबंध में भारत के विधि आयोग की सिफारिशों पर कार्रवाई करने का प्रस्ताव रखती है. जस्टिस केएम जोसेफ ने सुनवाई के दौरान टेलीविजन चैनलों के संबंध में भी टिप्पणी की-एंकर की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. हेट स्पीच या तो मुख्यधारा के टेलीविजन में होती है या यह सोशल मीडिया में होती है.
सोशल मीडिया काफी हद तक अनियंत्रित है. जहां तक मुख्यधारा के टेलीविजन चौनल का सवाल है, हम अभी भी कहते हैं, वहां एंकर की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि जैसे ही आप किसी को हेट स्पीच में जाते हुए देखते हैं, यह एंकर का कर्तव्य है कि वह तुरंत देखें कि वह उस व्यक्ति को आगे कुछ भी कहने के लिए अनुमति ना दे. दुर्भाग्य से, कई बार कोई कुछ कहना चाहता है, पर उसे उचित समय नहीं दिया जाता. उसके साथ विनम्र व्यवहार भी नहीं किया जाता है. उन्होंने कहा, प्रेस की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, हमारे पास अमेरिका के विपरीत अलग से नहीं है. इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन आपको यह भी पता होना चाहिए कि रेखा कहां खींचनी है. क्योंकि विशेष रूप से विसुअल मीडिया के पास एक बड़ा प्रभाव है.
वे आपके मस्तिष्क पर एक बहुत गंभीर प्रभाव पैदा करते हैं. बोलने की स्वतंत्रता वास्तव में श्रोता के लाभ के लिए है. एक बहस सुनने के बाद श्रोता कभी अपना मन कैसे बनाएगा जहां सिर्फ एक बड़बड़ाहट है. आप यह भी नहीं समझ सकते कि क्या हो रहा है. सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने कहा कि, उद्योग अनियंत्रित है और कोई प्रतिबंध नहीं हैं,जिस पर अश्विनी उपाध्याय ने उत्तर दिया.जब तक हेट स्पीच को परिभाषित नहीं किया जाता है, यह चलता रहेगा. जस्टिस जोसेफ ने कहा, हमारे पास एक उचित कानूनी ढांचा होना चाहिए, जब तक कि हमारे पास एक ऐसा ढांचा नहीं होगा जिसे लोग जारी रखेंगे और सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि हमारा देश किस ओर जा रहा है. अगर यह हेट स्पीच है जो हम भर रहे हैं कि हमारा देश किस ओर जा रहा हे. हेट स्पीच से ताने-बाने में ही जहर घुल जाता है, इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती.
जस्टिस जोसेफ ने मौखिक रूप से कहा, राजनीतिक दल आएंगे और जाएंगे, लेकिन राष्ट्र प्रेस सहित संस्था को सहन करेगा. यह महत्वपूर्ण हिस्सा है. पूरी तरह से स्वतंत्र प्रेस के बिना कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता. जस्टिस जोसेफ ने कहा, हेट स्पीच ताने-बाने में ही जहर घोल देती है.इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती. एक नियामक तंत्र की आवश्यकता पर जोर देते हुए, जस्टिस जोसेफ ने कहा- समस्या यह है कि हमारे पास टीवी के लिए एक नियामक तंत्र नहीं है. मेरा मानना है कि इंग्लैंड में सभी चैनलों पर भारी जुर्माना लगाया गया था. हमारे यहां वह प्रणाली नहीं है. कानून का मतलब है मंजूरी, प्रतिबंधों को लागू किया जाना चाहिए. समस्या यह है कि उनसे दृढ़ता से नहीं निपटा जा रहा है.
किसी भी एंकर के अपने विचार होंगे, कोई भी एंकर चैनल के दृष्टिकोण से भिन्न नहीं होगा. वे सभी आपस में जुड़े हुए है., आप इससे कुछ नहीं बता सकते, लेकिन गलत यह है कि जब आपके पास अलग-अलग विचारों के लोग हैं तो आप उन्हें बुला रहे हैं और आप उन्हें उन विचारों को व्यक्त करने की अनुमति नहीं दे रहे हैं. ऐसा करने से आप नफरत ला रहे हैं और आपकी टीआरपी ऊपर जा रही है. आप उससे प्रेरित हैं और कोई भी इस पर गौर करने और उनकी देखभाल करने वाला नहीं है तो यह बहुत दुखद है.
पीठ ने मामलों को 23 नवंबर को निपटान के लिए सूचीबद्ध किया है. यह केस अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ – डब्ल्यूपी (सी) 943-2021, सैयदा हमीद बनाम भारत संघ, काजी अहमद शेरवानी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, जमीयत उलमा-ए-हिंद बनाम भारत संघ, कुर्बान अली बनाम भारत संघ, एसजी वोम्ब टकेरे बनाम भारत संघ और अन्य मामले.
इनपुट:लाइव लॉ