सुन ले दुनियां….हम आतंकवादी नहीं उद्यमी हैं
इंटरनेशनल डेस्क
मुसलमानों की छवि खराब कर दी गई है। आतंकवाद और हिंसा के चंद किस्सों की आड़े में ‘इस्लामोफोबिया’का ऐसा जहर बोया गया, मानो दुनिया का हर मुसलमान आतंकवादी या देशद्रोही न सही उनका हरकारा यानी ‘स्लीपर सेल’ तो है ही। इसके चलते मुसलमानों के वे हुनर और काम भी दफना दिए गए, जो बदलती दुनिया में उनकी हिस्सेदारी का एहसास कराते हैं।
जानकर हैरानी होगी, वैश्विक स्तर पर दसयों हजार उद्यमी हैं जो विश्व की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। उनमें उन देशों के उद्यमियों की संख्या अधिक है, जिनपर आतंकवाद फैलाने या आतंकियों को फंडिंग का आरोप है। बावजूद इसके अर्थशास्त्री कहते हैं, यदि उनके सामने उपेक्षा, भय की बाधा न खड़ी की जाएं और वे अपनी व्यासायिक नीति बदल दें तो उद्यमशीलता में विश्व स्तर पर अपना लोहा मनवा सकते हैं।
फिलहाल यहां कुछ बडे़ मुस्लिम स्टार्टअप से आपका परिचय कराने का इरादा है। टुकड़ों में यह सिलसिला चलेगा। इसके तहत हर सप्ताह आप कुछ उल्लेखनीय मुस्लिम स्टॉर्टअप से रूबरू होंगे। ‘मुस्लिम उद्यमियों’ के विकास, नीति, अनुसंधान पर नजर रखने वाले संस्थान ‘दिनार स्टैंडर्ड’ की मानें तो कई मुस्लिम व्यवसायी वैश्विक स्तर पर सुर्खिया में हैं। आज वैश्विक मुस्लिम बाजार 1.8 ट्रिलियन डालर का है, जो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता है। उम्मीद है, अगले पांच वर्षों में यह 5.8 प्रतिशत के हिसाब से छलांग लगाएगाी। अमेरिका के मुस्लिम स्टार्टअप के बारे में छपे एक लेख में कहा गया है कि यदि उनकी तमाम बाधाएं दूर कर दी जाएं तो ये हर जगह छा जाएं। उपेक्षा और आशंकाओं के कारण ही ये अमेरिका की ‘ सिलिकन वैली’ मंें निवेश से कतराते हैं। इनका व्यवसायिक रुझान अधिकतर सिंगापुर, खाड़ी और मलेशिया की ओर है। इन देशों में इनकी कमाई अच्छी है। बिल्डिंग निर्माण के क्षेत्र में मुस्लिम युवा बड़ी संख्या में आए हैं। साथ ही उन्हें नए बजार की भी तलाश है।
‘सिलिकॉन वैली’ में निवेश के लिए वैश्विक स्तर पर चर्चित ‘खलीले एनजी’ने दक्षिण एशिया के 500 स्टॉर्टअप के साथ समझौता किया है। इनकी दिली इच्छा मुस्लिम उद्यमियों के साथ काम करने की थी। अर्थशात्रियों की राय है कि ग्लोबल स्तर पर मुस्लिम स्टार्टअप को आगे बढ़ाना है तो चार महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विशेष कार्य करने और अपने निर्धारित दायरे से बाहर आने की आवश्यकता है।
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सिलिकन वैली में बढ़े निवेश
मुस्लिम उद्यमी सिलिकन वैली की मदद से इस्तांबुल, दुबई, कुआलालंपुर, बंगुलूरू, सिंगापुर, जकार्ता, लंदन, बर्लिन, न्यूयॉर्क सिटी, कैसाब्लांका सहित दुनिया के अन्य दर्जनों शहरों में स्टॉर्टअप स्थापित कर सकते हैं। सिलिकन वैली में जितना अधिक मुस्लिम स्टॉर्टअप आएगा, मुसलमानों को उतना ही रोजगार मिलेगा। अभी उमर तवाकोल जैसे कुछ बड़े उद्यमी ही इसमें निवेश कर बिलियन डॉलर कमा रहे हैं। मैमून हामिद, उमर हामोई जैसे मुस्लिम उद्यमियों ने भी सिलिकन वैली में निवेष किया है।
दायरे से बाहर आने की जरूरत
अधिकतर मुस्लिम उद्यमी मुस्लिम बहुत आबादी तक ही सीमित हैं, जबकि उन्हें विश्व भर के मुस्लिम बाजार पर काबिज होने की नीति पर काम करना होगा। मुस्लिम देशों की कई कंपनियां खाद्य सामग्री बनाती हैं। रमजान के दिनों में इनकी सक्रियता देखी जाती है। इनके उत्पाद मुस्लिम देशों के अलावा अमेरिकी एवं यूरोपीय देशों सहित अन्य मुल्कों में भी सप्लाई होते हैं। एच एंड एम, हिजाब लाइन, मार्क्स एंड स्पेंसर, बुर्किनी और डोल्से एंड गबाना फैशन उत्पाद के क्षेत्र मंें सक्रिय हैं। रमजान के दिनों में इनके आउलेट तक पहुंचने के लिए मुफ्त टैक्सी की सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। ऐसी व्यवस्था और ब्रांडिंग से मुस्लिम व्यवसायी भी दुनिया के दूसरे बाजार अपनी धाक जमा सकते हैं।
सबके लिए हो उत्पाद
मुस्लिम स्टार्टअप विशेष रूप से मुस्लिम उपभोक्ताओं पर केंद्रित हैं, जो सही नहीं। वैश्विक स्तर पर छाने के लिए दुनिया के बाकी बाजारों और आबादी की ओर रूख करना होगा। अर्थशास्त्री मानते हैं कि कई मुस्लिम कंपनियों के उत्पाद ऐसे हैं जो वैश्विक स्तर पर जबरदस्त प्रदर्शन कर सकते हैं। इसलिए उन्हें यह अवसर खोना नहीं चाहिए।
शरणार्थियों की जरूरतों पर हो ध्यान
मुस्लिम स्टार्टअप को अपने उत्पाद शरणार्थियांे के हिसाब से भी तैयार करने होंगे। एक अध्ययन से यह पता चला है। ग्लाबल स्तर पर शरणार्थियों की संख्या करोड़ों मंे है। वे अलग-अलग देशों में फैले हुए हैं। उनकी संस्कृति और खान-पान के हिसाब से हर जगह उनके उत्पाद नहीं मिलते। हालांकि कुछ मुस्लिम देशों में वहां की लोकल कंपनियांे ने इस ओर ध्यान देना शुरू किया है। खान-पान से लेकर, पहरावे-ओढ़ावे और इस्तेमाल की दूसरी चीजें बनाई जा रही हैं जिसे शरणार्थी पसंद कर रहे हैं। ऐसी कंपनियों में तियोसन और पोर्ट ऑफ मोखा उल्लेखनीय हैं।
क्रमशःः-
-रशियन वीडियो
Video Courtesy-The New York Times
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संपादक