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मुलायम सिंह का निधन, जानिए क्यों कहते थे ‘मौलाना मुलायम’ ?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो नई दिल्ली

तकरीबन 55 वर्षों तक उत्तर प्रदेश और देश की सियासत करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री मुलाय सिंह यादव का सोमवार को 88 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. अपनी सियासी उरूज के दिनों में कट्टरपंथियों ने पर नकेल डालने के चलते उन्हंे ‘मुल्ला मुलायक का तमगा दे दिया गया था.

30 अक्टूबर 1990 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते मुलायम सिंह यादव द्वारा अयोध्या में कारसेवकों के खिलाफ कार्रवाई के बाद तो जैसे सियासत के एक वर्ग ने उन्हें अपना दुश्मन मान लिया. मुलायम यादव जब सक्रिय राजनीति में रहे कट्टरपंथ की सियासत को फलने-फूलने नहीं दिया. इसके चलते विरोधी उन्हंे ‘मौलाना मुलायम’ कहने लगे. कट्टरपंथियों की प्रोपंगडा वेबसाइट ‘ओप इंडिया’ ने मुलायम सिंह यादव की छवि खराब करने को 30 अक्टूबर 2010 को एक लेख प्रकाशित किया था. जिसका शीर्षक है-अयोध्याः दर्जनों रामभक्तों की लाश पर चढ़कर ‘मुल्ला’ बने थे मुलायम, बाद में कहा-और भी मारते.

अयोध्या में कारसेवकों के खिलाफ मुलायम सिंह द्वारा कार्रवाई करने पर रिपोर्ट मंे कहा गया- इससे पहले अक्टूबर में लालू यादव ने यूपी में रथ घुसने से पहले ही तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया था.

कहानी इसके एक दिन पहले से शुरू करते हैं, जब कारसेवकों के अतिरिक्त जत्थे अयोध्या पहुँचने लगे थे. विश्व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंघल और उनके समर्थकों पर यूपी पुलिस ने लाठियां भाजी. करीब 100 साधुओं को गिरफ्तार कर एक बस में रखा गया था, लेकिन अयोध्या के रामप्रसाद नामक साधु ने ड्राइवर को बाहर कर खुद बस की कमान थामी और पुलिस के शिंकजे से निकलने में कामयाब हो गए. साधुओं का ये जत्था राम जन्मभूमि पहुँचा. अशोक सिंघल के घायल होने की खबर के बाद हजारों कारसेवक जमा हो गए थे. वो लोग सुरक्षा बलों के पाँव छूते थे और आगे बढ़ते जाते थे. लाठीचार्ज और आँसू गैस के गोले भी उन्हें न रोक सके.

मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या के बारे में बयान दिया था कि वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता. 30 अक्टूबर को कोठरी भाइयों ने गुम्बद के ऊपर भगवा ध्वज फहरा कर मुलायम सिंह को सीधी चुनौती दी.30 अक्टूबर तक करीब 1 लाख लोग वहाँ पहुँच चुके थे, जिसमें 20,000 साधु-संत ही थे.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है- सरयू नदी के पुल पर जब कारसेवक जमा हुआ, तब पुलिस ने गोली चलाई. मंदिर परिसर में गुम्बद पर चढ़े कारसेवकों पर गोलियाँ चलाई गईं. नींव की खुदाई कर रहे लोगों पर गोली चलाई गई. उस समय मुफ्ती मोहम्मद सईद देश के गृहमंत्री थे.

आज ही के दिन 1990 में मुल्लायम नें कारसेवकों पर गोलियाँ चलवाईं थी,और वही मुल्लायम न केवल कई बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना,देश का रक्षामंत्री बना अपितु उसका बेटा भी मुख्यमंत्री बना.

रिपोर्ट में सईद की छवि धुमिल करने को लिखा गया है-कारसेवकों पर गोली चलाए जाने से मुफ्ती मोहम्मद सईद भी खुश थे. तभी तो उन्होंने मुलायम सरकार की पीठ भी थपथपाई थी. हालाँकि, भाजपा ने प्रधानमंत्री वीपी सिंह से इस गोलीकांड को लेकर ऐतराज जताया. जब कारसेवक गुम्बद पर चढ़े हुए थे, तब सीआरपीएफ ने भी गोली चलाई थी. सीआरपीएफ की गोली से गुम्बद पर चढ़े 2 कारसेवक नीचे गिरे और उनकी मृत्यु हो गई. वहीं 3 अन्य कारसेवक नींव खोदते हुए मारे गए. सीमा सुरक्षा बल ने भी फायरिंग की. कारसेवा करते हुए करीब 11 लोग मौके पर ही मारे गए. इसके विरोध में भड़के दंगों में 35 लोग मारे गए सो अलग. करीब 30 शहरों में कर्फ्यू लगाना पड़ा.

हालाँकि, मुलायम सिंह यादव ने नवंबर 2017 में अपने 79वें जन्मदिन के मौके पर सपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अपने इस कार्रवाई को जायज ठहराया था. मुलायम ने इस गोलीकांड के 27 वर्षों बाद कहा था कि देश की ‘एकता और अखंडता’ के लिए अगर सुरक्षा बलों को गोली चला कर लोगों को मारने भी पड़े तो ये सही था. इतना ही नहीं, उन्होंने कहा था कि अगर इसके लिए और भी लोगों को मारना पड़ता तो सुरक्षा बल जरूर मारते. मुलायम ने गर्व के साथ आँकड़े गिनाते हुए कहा था कि इस गोलीकांड में 28 कारसेवकों को मौत हुई थी.

कारसेवकों द्वारा जारी की गई सूची में 40 कारसेवकों के मारे जाने की बात कही गई थी. उनके नामों की सूची भी प्रकाशित की गई थी. मुलायम ने बताया था कि अटल बिहारी वाजपेयी ने उनसे 56 लोगों के मारे जाने की बात कही थी. वहीं वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा अपनी किताब ‘युद्ध में अयोध्या‘ में लिखते हैं कि उन्होंने 25 लाशें देखी थी. हालाँकि, कितने दर्जन मारे गए इसके अलग-अलग आँकड़े हैं लेकिन इतना तो जरूर है कि मुलायम को ‘मुल्ला’ का तमगा मिल गया.पुलिस की पाबंदियों और लाठी-गोली सहने के बावजूद कार सेवकों ने हिम्मत नहीं हारी और इन खबरों को सुन कर और ज्यादा रामभक्त अयोध्या पहुँचने लगे थ.

ओप इंडिया की इस रिपोर्ट में दावा किया गया है- केंद्र सरकार ने 15 कारसेवकों के मारे जाने का आँकड़ा दिया था, जबकि विश्व हिन्दू परिषद ने 59 लोगों के मारे जाने की बात कही थी. 1989 में अशोक सिंघल ने राज्य सरकार से 14 कोसी परिक्रमा की इजाजत माँगी थी. इतिहास ने अपने-आप को एक बार फिर से दोहराने की कोशिश की जब 2013 में मुलायम के बेटे अखिलेश की सरकार थी और सिंघल 84 कोसी परिक्रमा की इजाजत माँगने गए. अखिलेश सरकार ने विहिप को इसकी इजाजत देने से इनकार कर दिया था. 14 कोसी परिक्रमा में 25 किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता है, जबकि 84 कोसी परिक्रमा में 135 किलोमीटर की परिक्रमा होती है.

कहते हैं कि जब अयोध्या में 1990 में राम मंदिर आंदोलन जोरों पर था, तब करीब 10 लाख लोग कारसेवा के लिए जमा हो गए थे. मुलायम सिंह के प्रति लोगों का आक्रोश ही था कि 1991 में उनकी सरकार को जनता ने उखाड़ फेंका और भाजपा ने कल्याण सिंह के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई. अब जब कि अयोध्या विवाद समाप्त हो चका है. इसके बावजूद मुलायक सिंह यादव के सियासी विरोधी उन्हंे ‘हिंदू का दुश्मन’ साबित करने मंे कोई कसर नहीं छोड़ी.

मुलायम सिंह यादव को हिंदू विरोधी साबित करने के लिए रिपोर्ट में हेमंत शर्मा की किताब का हवाला देते हुए कहा गया है कि अयोध्या गोलीकांड के बाद यहां की सड़कें, छावनियाँ और मंदिर खून से सन गए थे. सुरक्षा बलों ने अंधाधुंध फायरिंग की थी. जब कार सेवक सड़कों पर बैठ कर रामधुन गए रहे थे, तब उन पर गोलियाँ चलवाई गईं. जब वो जन्मस्थान परिसर के पास पहुँचे भी नहीं थी, तब भी उन पर गोलियाँ चलीं. स्थानीय प्रशासन ने तरह-तरह की बातों से अपने इस कृत्य को जायज ठहराने की कोशिश की.पत्रकारों ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से पूछा कि निहत्थे लोगों पर गोलियाँ क्यों चलाई जा रही हैं तो कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. ऐसा लग रहा था जैसे उन पर खून सवार हो.

आज इस घटना को 32 साल हो गए हैं और लगभग 3 दशक बीत गए हैं और अब मुलायम सिंह भी नहीं रहे. शायद इसके बाद कट्टरपंथियों को सद्बुद्धि आए.