पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने क्यों कहा, राज्यों की शिक्षा नीतियां हैं उर्दू की बदहाली की जिम्मेदार ?
मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली
पूर्व उपराष्ट्रपति एम हामिद अंसारी ने अफसोस जताया कि देश में उर्दू बोलने वालों की संख्या घट रही है, जबकि कुल आबादी बढ़ रही है. , उन्होंने उर्दू की बदहाली के लिए इस प्रवृत्ति के लिए राज्यों की शिक्षा नीतियों को जिम्मेदार ठहराया.पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार की दो किताबों-बुक ऑफ विजडम और एहसास ओ इजहार के विमोचन के मौके पर विशेषज्ञों ने सरकारों को सुझाव दिया किया अनिच्छा छोड़कर प्राथमिक स्तर पर स्कूली पाठ्यक्रम में उर्दू को शामिल किया जा सकता है. इसके लिए उर्दू शिक्षकों को नियोजित किया जाना चाहिए.
पूर्व उप-राष्ट्रपति हामित अंसारी ने चिंता जताते हुए कहा,उर्दू बोलने वालों की संख्या घट रही है. जनगणना के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं. जनसंख्या की समग्र वृद्धि के ढांचे में यह गिरावट एक प्रश्न खड़ा करती है. ये क्यों हो रहा है? क्या यह
स्वैच्छिक या भाषा परित्याग के पैटर्न का एक संकेत है. जिन लोगों ने इस विषय पर काम किया है, वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि इसका जवाब राज्य सरकार की नीतियों और स्कूल में नामांकन के पैटर्न में है.
अंसारी ने कहा कि उन्होंने यह दिखाने के लिए डेटा एकत्र किया है कि प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में पाठ्यक्रम में उर्दू को शामिल करने और उर्दू शिक्षकों की नियुक्ती में सरकारें दिलचस्पी नहीं लेतीं., उन्होंने कहा, यह मेरे अपने राज्य उत्तर प्रदेश और दिल्ली में सबसे अधिक स्पष्ट है, लेकिन महाराष्ट्र, बिहार और कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में यह अलग है.
अंसारी ने पूर्व प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के हवाले से कहा कि उन्होंने जुलाई 1958 में राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लिखा था कि मन की क्षुद्रता, दृष्टिकोण में संकीर्णता और अपरिपक्वता की वजह से उर्दू को बाहर करने का जानबूझकर प्रयास किया जा रहा है. ”
हालाकि, उन्होंने कहा, ऐसा प्रतीत होता है कि अंधेरे माहौल में, कुछ सिल्वर लाइनिंग भी हैं. उन्हांेने इस संदर्भ में फिल्मों और उर्दू कार्यक्रमों जैसे रेखता का उल्लेख किया, जिन्होंने उर्दू के पुनरुद्धार में योगदान दिया है., उन्होंने कहा, उर्दू सिर्फ राष्ट्रीय नहीं बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय भाषा है और आसानी से मर नहीं सकती. उन्होंने कहा, यह केवल उपमहाद्वीप और हमारे पड़ोस के बारे में व्यक्तिपरक धारणाओं तक ही सीमित नहीं है बल्कि दुनिया भी है.
भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर (सेवानिवृत्त) ने कहा कि उर्दू को केवल एक धर्म की भाषा नहीं माना जाना चाहिए.उन्होंने कहा, आज समय की जरूरत है कि समाज को एकजुट करने के लिए शायरीश् का इस्तेमाल किया जाए. यह उपदेश देकर कि सभी सड़कें एक ईश्वर की ओर ले जाती हैं. समाज के लिए इससे बड़ा योगदान नहीं हो सकता.
सभा में उपस्थित अन्य लोगों में प्रसिद्ध फिल्म निर्माता मुजफ्फर अली, पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा और फारूक अब्दुल्ला, केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह, सुभाष चंद्रा, शत्रुघ्न सिन्हा, पंजाब के पूर्व मंत्री मनप्रीत बादल और सुखजिंदर रंधावा और अटॉर्नी-जनरल आर वेंकटरमणि भी शामिल थे.