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याददाश्त-ए-बाबरी मस्जिद: कारसेवक से बीजेपी नेता बने प्रकाश बोले- मस्जिद गिराने से गुलामी की निशानी मिटी

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस में हिस्सा लेने वाले कर्नाटक भाजपा के संयुक्त प्रवक्ता प्रकाश राघावाचार्य ने कहा है कि 30 साल बाद हम बहुत संतुष्ट महसूस कर रहे हैं. क्योंकि गुलामी का प्रतीक मिटा दिया गया है और वहां एक भव्य मंदिर बन रहा है.

उन्होंने कहा कि हम मंदिर के खुलने का इंतजार कर रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार, प्रकाश राम मंदिर बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी द्वारा शुरू किए गए आंदोलन का हिस्सा थे. राज्य में भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रकाश ने कहा कि अयोध्या में गिराया गया ढांचा बाबरी मस्जिद नहीं थी यह एक विवादित ढांचा था. अब विवाद खत्म हो गया है. प्रकाश ने कहा कि आज पूरी तरह से संतुष्टि की भावना है. अगर इस मुद्दे को नहीं उठाया जाता तो अदालत संपत्ति को मूल मालिकों को सौंपने का फैसला नहीं लेती. हमारी कोशिशों के परिणाम हमें मिले हैं.

प्रकाश ने सांप्रदायिक आधार पर देश का विभाजन हुआ जैसे आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि लोगों ने केंद्र और कई राज्यों में भाजपा को बार-बार चुनकर उन आरोपों का जवाब दिया है. उनका कहना है कि 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस की यादें आज भी सदाबहार और रोमांचक हैं. कर्नाटक में राम मंदिर आंदोलन का प्रभाव बहुत ज्यादा था. यहां से अयोध्या पहुंचने के लिए राम भक्त बड़े समूहों में कर्नाटक एक्सप्रेस ट्रेनों में सवार होते थे.

हम उन्हें विदा करने के लिए रेलवे स्टेशन जाते थे. जिसने मुझे भी कारसेवक के रूप में अयोध्या जाने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने बताया कि मैं इलाहाबाद पहुंचा और वहां से हमें 2 दिसंबर 1992 को अयोध्या ले जाने के लिए एक बस की व्यवस्था की गई थी. मैं रात के करीब 1.30 बजे अयोध्या पहुंचा था. स्वयंसेवकों के रहने और खाने के लिए उचित व्यवस्था की गई थी. 3 दिसंबर को सभी ने श्री राम जन्मभूमि पर जाकर राम लला का आशीर्वाद लिया. 1990 के बाद विवादित ढांचे के चारों ओर लोहे की बाड़ लगाई गई थी.

दिसंबर होने के बावजूद ठंड ज्यादा नहीं थी. हमें बताया गया था कि हमारी भूमिका और जिम्मेदारियां हमें 4 दिसंबर तक बता दी जाएंगी. अगले दिन हमें राज्यवार जाकर सरयू नदी से लाई गई मिट्टी को निर्धारित स्थान पर डालने के लिए कहा गया था. हम योजनाओं के परिवर्तन पर भौचक थे क्योंकि सभी ने सोचा था कि विवादित ढांचे को गिराने की योजना थी. सैकड़ों कारसेवकों ने निर्णय पर अपना गुस्सा व्यक्त किया. अगले दिन, हमें निर्धारित स्थान पर सुरक्षा बनाए रखने की जिम्मेदारी दी गई थी.

6 दिसंबर 1992 को लोग मधुमक्खियों की तरह झुंड में आ गए थे. यहां तक कि साइन बोर्ड भी लगा दिए गए कि अयोध्या में कोई जगह नहीं बची है. लोग विवादित ढांचे के आसपास की सभी इमारतों पर खड़े थे. राम भक्तों ने अयोध्या शहर पर अधिकार कर लिया था. हमारे मुखिया वी. मंजूनाथ के आदेशनुसार हम सुबह 8 बजे विवादित मस्जिद के सामने उस स्थान पर पहुंचे जहां कारसेवक थे.

इस जगह से थोड़ी दूर नेताओं के भाषण देने के लिए एक मंच बनाया गया था। माहौल तनावपूर्ण होता जा रहा था. हमने देखा कि एक व्यक्ति हनुमान के रूप में कपड़े पहने बैरिकेड के अंदर घुस गया. कई लोग उसके पीछे हो लिए और जय श्री राम के नारे लगाते हुए बाबरी मस्जिद के सामने बैठ गए. जब अधिकारियों ने उन्हें खदेड़ने का प्रयास किया तो हजारों कारसेवक उनके समर्थन में खड़े हो गए.

नया मोड़ तब आया जब करीब 50 युवाओं का एक समूह बैरिकेड के अंदर आया और कारसेवकों को बाहर निकालने की कोशिश की. इससे कारसेवकों को और गुस्सा आया. फिर हजारों कारसेवकों ने बेरिकेड्स को तोड़ते हुए आगे मार्च किया. अधिकारियों ने स्थिति पर नियंत्रण खो दिया. दूसरी ओर मंच से दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा कारसेवकों से शांति बनाए रखने की अपील कर रहे थे.

लेकिन अपील को किसी ने नहीं सुना. जैसे ही हम खड़े हुए तो देखा महिला कारसेवकों का एक समूह बाबरी मस्जिद पर दिखाई दिया. जिन्होंने विवादित ढांचे को तोड़ने की पहल की थी, यह वास्तव में जीवन भर की याद बनी हुई है. कारसेवक महिलाओं के साथ इतनी ताकत से शामिल होने के लिए दौड़े कि पुलिसकर्मी उन्हें रोकने की कोई कोशिश किए बिना केवल मूक दर्शक बने रहे.

लोगों ने मीडियाकर्मियों और फोटोग्राफरों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. एक के बाद एक टावर नष्ट किए गए और उस दिन शाम 6 बजे तक सभी टावरों को ध्वस्त कर दिया गया था. उस रात एक मार्ग दर्शक मंडली की बैठक हुई थी जिसमें भगवान राम की मूर्ति को उसके मूल स्थान पर स्थापित करने का निर्णय लिया गया था. अगले दिन हजारों राम भक्तों ने कुछ घंटों में अपने हाथों से मलबा हटा दिया था.