गालिब इंस्ट्युट में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय गालिब कार्यक्रम शुरू, तारिक मंसूर बोले-प्रशासन और सरकार के भरोसे उर्दू को न छोड़ें
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
राजधानी के गालिब संस्थान द्वारा आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय गालिब कार्यक्रम के पहले दिन कई साहित्यकारों को सम्मानित किया गया. इस दौरान उर्दू के विकास एवं उत्थान पर भी चर्चा हुई. इस कार्यक्रम में उर्दू और हिंदी समेत कई भाषाओं के मौजूद थे.
गालिब संस्थान द्वारा होता है शब और रोज तमाशा शीर्षक से वार्षिक अंतरराष्ट्रीय गालिब संगोष्ठी इवान गालिब में आयोजित की गई.इन कार्यक्रमों के तहत तीन दिनों तक शाम की गजल, अंतरराष्ट्रीय मुशायरा और कहानी सुनाने का आयोजन किया जा रहा है.
उद्घाटन समारोह अतिथियों को गुलदस्ता भेंट कर किया गया.संगोष्ठी के उद्घाटन भाषण में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. तारिक मंसूर ने कहा कि हमें दूसरों से सीखना चाहिए कि भाषा का प्रचार-प्रसार कैसे किया जाता है. उर्दू सिर्फ बोलने से नहीं आती, आपको उर्दू लिखना और पढ़ना भी आना चाहिए’.
उन्होंने कहा, हमें अपनी भाषा सिखाने के लिए किसी प्रशासन और सरकार के भरोसे नहीं रहना चाहिए. उर्दू ऐसी खूबसूरत भाषा है जिससे हर इंसान प्रभावित होता है. अगर हम मिलकर काम करेंगे तो उर्दू का विकास इसी तरह होता रहेगा.
प्रोफेसर हरीश त्रिवेदी, जो अंग्रेजी के प्रसिद्ध विद्वान ने गालिब इंस्टीट्यूट की तारीफ करते हुए कहा, मुझे बहुत खुशी है कि गालिब को लेकर यहां भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया है. हम स्कूल के दिनों से गालिब पढ़ते आ रहे हैं. गालिब उर्दू और हिंदी समेत कई भाषाओं के शायर हैं. उन्होंने गालिब की तुलना महत्वपूर्ण पश्चिमी कवियों से की.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गालिब एक कवि या दार्शनिक थे. उनका सावधानीपूर्वक अध्ययन करने से पता चलता है कि वे मुख्य रूप से एक दार्शनिक थे. हमारी गलती है कि उर्दू की उपेक्षा की गई. वास्तव में हमने अपने बच्चों को उर्दू नहीं सिखाई. हमें उर्दू पत्रिकाएं और अखबार जरूर खरीदने चाहिए, ताकि हमारे बच्चों में उर्दू के प्रति जागरूकता और रुचि पैदा हो. संगोष्ठी का मुख्य भाषण गालिब संस्थान के सचिव प्रो. सिद्दीकुर रहमान किदवई ने दिया. इस मौके पर उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जब गालिब की शायरी का जिक्र आता है तो यही सवाल उठता है कि वक्त बीतने के बाद वह जिंदा क्यों है और उसकी उम्र क्यों बढ़ती जा रही है. उनकी कई कविताएं, जिन्हें उन्होंने स्वयं या उनके अनुयायियों ने कभी दीवान-ए-गालिब से हटा दिया था, अचानक किसी पाण्डुलिपि में प्रकट हो जाती हैं. वे अचानक चौंका देती हैं और उनका प्रभाव नई परिस्थितियों में कुछ नया और अलग होता है.
इस अवसर पर साहित्य जगत में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए छह हस्तियों को प्रमुख पुरस्कार प्रदान किए गए. उर्दू गद्य के लिए इब्न कंवल, उर्दू शायरी के लिए डॉ. बशीर बद्र, उर्दू नाटक के लिए महमूद फारूकी, प्रोफेसर सैयद जालूर रहमान को समग्र सेवाओं के लिए सम्मानित किया गया. उनके नए प्रकाशन दीवान गालिब पंजाबी, प्रो सिद्दीकुर रहमान किदवई द्वारा समकालीन उर्दू साहित्य में नए रचनात्मक दृष्टिकोण, गालिब और डॉ. इदरीस अहमद द्वारा वैश्विक मानव मूल्य, गालिब की स्वयं-चयनित फारसी कविता और इसका छात्र अध्ययन, श्री बीदर बख्त द्वारा लिखित. गालिबः प्रो अनीस अशफाक द्वारा लिखित विश्व अर्थों का एक अध्ययन, खोए हुए अर्थ की खोज, प्रो सरवरुल हुडा द्वारा लिखित, गालिब नामा के दो अंक, डायरी कैलेंडर भी लॉन्च किया गया.
उद्घाटन सत्र के अंत में आभार व्यक्त करते हुए गालिब संस्थान के निदेशक डॉ. इदरीस अहमद ने कहा कि हर साल की तरह इस साल भी अंतरराष्ट्रीय गालिब कार्यक्रम उसी भव्यता के साथ आयोजित किए जाते रहे हैं. इस अवसर बताया गया कि कार्यक्रम का आयोजन केवल खानापूर्ति के लिए नहीं किया जाता. साल भर में हमने क्या-क्या किया, उसकी एक रिपोर्ट भी पेश की जाती है. हमने इस वर्ष कई महत्वपूर्ण वार्ताओं और संगोष्ठी का आयोजन किया. अपने प्रदर्शन के दम पर इस संस्थान ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त किया है. उद्घाटन सत्र के बाद गजल संध्या का आयोजन किया गया, जिसमें प्रसिद्ध गजल गायिका रश्मी अग्रवाल ने गजल प्रस्तुत किया.