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अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के बजट में 40 प्रतिशत की कटौती, 50000 मदरसा शिक्षक बेरोजगारी की कगार पर

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली

बीजेपी को अल्पसंख्यकों के वोट तो चाहिए पर उन्हें उसका हक देने को तैयार नहीं. खासकर मुसलमानों को. इसका ताजा उदाहरण है इस बार का केंद्रीय बजट.

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार को संसद में आम बजट पेश किया. सत्ता पक्ष ने जहां इसकी तारीफ की, वहीं विपक्ष ने इसकी आलोचना की, लेकिन आज के बजट में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के बजट में कटौती की गई. यह भी देखा गया कि पिछले वर्ष के बजट का आधे से भी कम खर्च रखा गया. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय में स्थानांतरित मदरसा शिक्षकों से जुड़ी योजना में मदरसा शिक्षक आधुनिकीकरण योजना के बंद होने का खतरा साफ दिखाई दे रहा है, क्योंकि बजट को लगभग खत्म कर दिया गया है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब संसद में बजट पेश किया तो हर कोई उनसे महंगाई और टैक्स में राहत की उम्मीद कर रहा था. वित्त मंत्री द्वारा एक नया आयकर स्लैब पेश किया गया और 7 लाख रुपये तक की आय पर सीधे कर राहत दी गई.

लेकिन अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के बजट में निराशा हाथ लगी. अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय का बजट इस बार 3,097 करोड़ रुपये कर दिया गया है, जबकि 2022-23 में यह 5,020 करोड़ रुपये था. हैरानी की बात है कि अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय 2022-23 में अपने प्रस्तावित 2,612 करोड़ रुपये के बजट में से आधे से भी कम खर्च करने में कामयाब रहा. प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप और मौलाना आजाद आजाद नेशनल फैलोशिप बंद होने पर सवाल उठते रहे हैं, लेकिन इस बार बजट में कौशल विकास के लिए चलाई जा रही योजना का बजट 235 करोड़ से घटाकर सिर्फ 10 लाख कर दिया गया, जबकि नई मंजिल योजना भी 46 करोड़ से 10 लाख के बजट में सीमित है.

इसके अलावा उस्ताद योजना का बजट भी 47 करोड़ से घटाकर 10 लाख कर दिया गया है, जबकि मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन भी बंद होने की कगार पर है. मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन का बजट महज दस लाख रुपए है. इसके अलावा प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम का बजट 1650 करोड़ से घटाकर 600 करोड़ कर दिया गया है.

कारी मदरसा आधुनिकीकरण, जो मदरसों के शिक्षकों से जुड़ा है, उसके तहत कार्यरत 50,000 की बेरोजगारी की आशंका अब सामने आ गई है. इस शिक्षा योजना का बजट भी 160 करोड़ रुपये से घटाकर 10 करोड़ रुपये कर दिया गया है. अकेले उत्तर प्रदेश में ही योजना के तहत करीब 30 हजार शिक्षक मदरसा बच्चों को आधुनिक विषय पढ़ाने का काम कर रहे थे. वे पहले ही कई वर्षों से अपने कम वेतन के लिए विरोध करने को विवश थे. हालांकि, सिर्फ उत्तर प्रदेश के शिक्षकों को अपना सालाना वेतन देने के लिए 295 करोड़ रुपये के बजट की जरूरत है. दरअसल, पिछले साल इस योजना को बंद करने का संकेत तब मिला था जब संशोधित बजट में योजना का बजट घटाकर महज 56 करोड़ रुपये कर दिया गया था.

बजट में कटौती के मुद्दे के बाद विधानसभा के मुस्लिम सदस्यों ने सरकार पर कई आरोप लगाए. मुरादाबाद से समाजवादी सरकार के सांसद एसटी हसन ने मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक योजना के बजट में भारी कटौती पर नाराजगी जताई. उन्होंने कहा कि सरकार इस योजना को बंद करना चाहती है. एसटी हसन ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि हम चाहते हैं कि मुसलमानों के एक हाथ में कुरान और दूसरे में कंप्यूटर हो, लेकिन वे जो कहते हैं वह करते नहीं हैं. यह सरकार मुसलमानों को शिक्षित नहीं देखना चाहती है. इसके साथ ही यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि हाल के महीनों में उत्तर प्रदेश, यूपी और मध्य प्रदेश में मदरसों के प्रति जो सरकार विरोधी रूख दिखाया गया, वह दरअसल बजट के पहले की भूमिका थी. मदरस संचालकों को हतोत्साहित किया जा रहा है ताकि इनकी संख्या घट जाए और इसके नामपर पैसे खर्च न करने पड़े.