दो मेवातियों को जिंदा जलाने के मामले में मुस्लिम तंजीमें और रहनुमा सवालों के घेरे में
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
तकरीबन सप्ताह भर पहले हरियाणा के नूंह जिले के दो मेव मुसलमानों को जिंदा जलाने के मामलों मंे मुस्लिम तंजीमें और आरएसएस के साथ पींगे बढ़ाने वाले मुस्लिम बुद्धिजीवी सवालों के घेरे मंे हैं. इस घटना में आरएसएस के सहयोगी संगठन बजरंग दल के कुछ कार्यकर्ताओं पर आरोप लगा है. यह जांच का विषय है कि दो व्यक्तियों को जिंदा जलाने मंे उनकी भूमिका किस हद तक थी, पर इस मामले में हिंदुवादी संगठन कड़ा रूख अपनाए हुए हैं. उसके मुकाबले मुस्लिम अदारों और मुस्लिम बुद्धिजीवियों की भूमिका संदेह के घेरे में है.
जब हैदराबाद से निकल कर ओवैसी भरतपुर जा सकता है तो क्या जयपुर से और टोंक से निकलकर @ashokgehlot51 और सचिन पायलट नहीं जा सकते जुनैद और नासिर के घर? #Justice_for_Nasir_junaidpic.twitter.com/YcE8x5uFBh
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) February 20, 2023
इस मामले में वे बिलकुल खामोश हैं. यहां तक कि आरएसएस से दोस्ती गांठने में इनदिनों जुटे पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी भी गुरुग्राम में रहते नूंह जाकर जिंदा जलाकर मारे गए व्यक्तियों के परिवार से मुलाकात कर ढाढस बंधाना और सहयोग दिलाने का वादा करना भी जरूरी नहीं समझा. नूंह और गुरुग्राम की दूरी मात्र तीस-चालीस किलोमीटर है.
हिंदूवादी संगठन जलाकर मारे गए जुनैद और नासिर को गौ तस्कर बता रहे हैं. मगर सोशल मीडिया पर चल रही जानकारियों के अनुसार जुनैद अपनी जीविका चलाने के लिए नूंह जिले में परचून की दुकान चलाता था. दुकान ही परिवार का एक मात्र सहारा है. उसके मारे जाने के बाद से दुकान बंद है.
This is Junaid's shop in his village Ghatmeeka. It was the only source of sustenance for his family and his brother's family (His brother is mentally challenged and can't work).
— Vipul Kumar (@vipulizm) February 20, 2023
It's close since his death. pic.twitter.com/OPhhU1UN0v
जुनैद के छह बच्चे हैं. उसके भाई की मानसिक दशा कुछ ठीक नहीं और उसके भी छह बच्चे हैं. इस हत्याकांड के बाद सभी बेसहारा हो गए. नासिर और जुनैद को राजस्थान के भरतपुर से अपहरण कर हरियाणा के भिवानी में कथित तौर पर जलाकर मारा गया. राजस्थान में करीब नौ विधायक हैं, पर इस मुद्दे पर उनकी भी बोलती बंद है.
एआईएमआईएम सुप्रीमो ओवैसी ने इसपर सवाल उठाते हुए कहा है कि वे जब हैदराबाद से जाकर पीड़ित परिवारों से मिल सकते हैं, तो राजस्थान के मुख्यमंत्री ऐसे मामलों में दूसरी जगह तो जा सकते हैं, पर नूंह जाने की उन्हंे फुर्सत नहीं. राजस्थान के मुस्लिम विधायक भी खामोश हैं.
Muslim women are suffering due to criminalization of Triple talaq. In Assam, Women who are pregnant are suffering due to arrests of their husband and fathers. Junaid and nasir who were burnt alive are sons of muslim women..these leaders are Atheists,Ahmediyas &shias. https://t.co/KU85f7orIz
— Asma Zehra Tayeba Dr. (@AsmaZehradr) February 22, 2023
जुनैद और नासिर के मारे जाने के बाद से अब तक दो-एक मुस्लिम संगठनों के निम्न दर्जे के लीडर्स और कांग्रेस के एक राज्यसभा सदस्य के अलावा कोई बड़ी मुस्लिम शख्सियत नहीं पहुंची है.
आरएसएस से पींग बढ़ाने वाली टीम के सदस्य एवं दिल्ली के पूर्व उप राज्यपाल नजीब जंग द्वारा दिए गए एक इंटरव्यू में कहा गया है कि वे लोग 2019 से संघ परिवार के संपर्क में हैं. यानि इस दौरान केंद्र की मुस्लिम विरोधी जितने भी फैसले आए उनका मौन समर्थन था. क्योंकि इस टीम के शाहिद सिद्दीकी, जमीरूद्दीन शाह, सईद, महमूद मदनी आदि सभी ने एक तरह से खामोशी अख्तियार कर रखी थी. जुनैद के मामले में भी उनकी बोलती बंद है. उनकी ओर से किसी ने भी अब तक संवैधानिक तरीके से मामले को उचित प्लेटफार्म पर नहीं उठाया है. इनकी बेरूखी की नतीजा है कि जामिया मिल्लिया के छात्र इस मुददे पर सड़कों पर उतर आए हैं.
Jamia Millia Islamia witnessed a massive protest demanding justice for Junaid and Nasir. Students demanded a ban on "Bajrang Dal" as they raised slogans,"Ban terrorist organisation Bajrang Dal." pic.twitter.com/Ichh1uLf2A
— Mahmodul Hassan (@mhassanism) February 20, 2023
इसके विपरीत हिंदूवादी संगठनों ने बुधवार को हरियाणा के पलवल जिले के हथीन में महापंचायत बुलाकर उनकी खुलेआम वकालत की जो दो व्यक्तियों को जिंदा जलाने के मामले में आरोपी बनाए गए हैं. इस महापंचायत में मेवात में गोकशी होने के आरोप लगाए गए. हालांकि इसमें भारी कमी आई है. इसके अलावा यह ला एंड आर्डर का मामला है. किसी को किसी की हत्या का अधिकार नहीं. मगर इस मुद्दे पर भी मुस्लिम संगठन और मुस्लिम बुद्धिजीवी केंद्र के विवादास्पद फैसलों की तरह खामोशी अख्तियार किए हुए हैं. इस बारे के केंद्रीय बजट में मुसलमानों से जुड़े अधिकांश मामलों मंे भारी कटौती कर दी गई. अल्पसंख्यक मंत्रालय गैर मुस्लिम संभाल रहा है, इसपर भी मुसलमानों के तथाकथित रहनुम खामोश हैं.