कश्मीर के कलाकार रईस वाथूरी लोक रंगमंच भंड पाथेर को पुनर्जीवित करने के मिशन पर
मुस्लिम नाउ ब्यूरो,बडगाम
कश्मीर का पारंपरिक लोक रंगमंच भांड पाथेर घाटी में हर गुजरते दिन के साथ मर रहा है. इस बीच एक युवा कश्मीरी कलाकार, रईस वाथूरी जो मध्य कश्मीर के बडगाम के रहने वाले हैं, इसे फिर से जीवित करने के प्रयास में जुटे हुए हैं.
भांड पाथेर कश्मीर का एक पुराना पारंपरिक लोक रंगमंच है. यह आमतौर पर खुले स्थानों में आयोजित किया जाता है. यह मौखिक परंपरा से संबंधित है जिसमें गुरु शिष्य परम्परा के बाद एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक लिपियों के माध्यम से सौंपी जाती है. भांड पाथेर में प्रयुक्त शब्दावली का संबंध कश्मीर के महान मध्यकालीन और आधुनिक रहस्यवादियों के वाख और श्रुख से है. यह उस समय समाज के लिए एक आईने के रूप में काम करते थे. तब मीडिया नहीं था. यह जागरूकता फैलाने, गलत कामों से रोकने, मुद्दों को उजागर करने है के काम आता था.
यह उन दिनों मनोरंजन का एक अच्छा स्रोत था. यह खुली जगह में किया जाता था. लोग उन्हें देखने के लिए इकट्ठा होते थे. इससे कश्मीरियों को शुद्ध रूप में मनोरंजन मिलता था.कश्मीर घाटी के कई कलाकारों का मानना है कि अधिकारियों की लापरवाही के कारण कला दिन-ब-दिन लुप्त होती जा रही है. यहां तक कि कई प्रतिभाशाली कलाकारों ने स्वेच्छा से अपने बच्चों को कला नहीं सिखाई है. अब यह कला कठिन समय का सामना कर रही है. रोजगार के अवसरों की कमी युवाओं को पारंपरिक संस्कृति से जोड़ने में बाधा बन रही है.
हालांकि, कलाकार रईस आधुनिक दुनिया में इसे पुनर्जीवित करने और प्रासंगिक बनाने के मिशन पर हैं. कलाकार ने कहा कि वह इसे अलग तरीके से पेश करने और इसके जरिए कई सामाजिक मुद्दों पर संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं.उन्होंने कहा, मैं हर संभव तरीके से इसे पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहा हूं. उम्मीद है कि प्रशासन की मदद से मैं यह कर सकता हूं.
उन्होंने इसके लुप्त होने का कारण पटकथा की कमी बताते हुए कहा कि इसके लेखकों की कमी के कारण यह कला विधा कम लोकप्रिय हुई और इसी कारण अब इसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.कलाकार ने कहा कि सरकार का कला के प्रति ध्यान न देना भी इसके कठिन दौर का कारण बना.रईस ने कहा कि कला से जुड़े कलाकारों को राहत देने के लिए उचित सरकारी नीति होनी चाहिए ताकि अधिक से अधिक दिलचस्प लोग इससे जुड़ सकें.