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तैयबुन निशा और जुलेखा की दोस्ती की अनोखी दास्तां: एक खोई हुई सोने की अंगूठी और 55 साल बाद चुकाया गया कर्ज

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,गुवाहाटी

पांच दशकों बाद जब दोनों दोस्त मिलीं, तो एक ने दूसरे को अंजाना कर्ज चुका कर मिसाल कायम कर दी. दरअसल यह कहानी असम की पूर्व राष्ट्रीय डिस्कस थ्रो चैंपियन तैयबुन निशा और उनकी स्कूल की दोस्त जुलेखा की है.दोनों 1967 में असम के शिवसागर के अली गर्ल्स हाई स्कूल में पढ़ती थीं.

55 से अधिक वर्षों के बाद, तैयबुन ने जुलेखा का पता लगाया और उन स्वर्णिम वर्षों को पुनः प्राप्त करने के लिए एक पुनर्मिलन की व्यवस्था की जो उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण थी. मिलने पर तैयबुन निशान ने अपनी दोस्त को एक लिफाफा दिया जिसमें 12,000 रुपये थे और इस तरह 55 साल पुरान कर्ज चुका दिया.

कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली असमिया महिला एथलीट तैयबुन ने एक पुरानी घटना को याद करते हुए बताया,हम संभवतः कक्षा 7 या 8 के छात्र थे. जुलेखा एक संपन्न परिवार से थी. वह सोने के आभूषण पहनकर स्कूल आती थी. एक दिन, उसने कक्षा में अपनी अंगूठी खो दी.

उन्होंने कहा, मैं मैदान में खेलने के लिए जल्दी स्कूल जाती थी. उन दिनों हमें अपनी कक्षा की सफाई करनी पड़ती थी. अगली सुबह सफाई करते समय मैंने जुलेखा की खोई हुई अंगूठी पाई. हालांकि, मैंने इस डर से अंगूठी वापस नहीं की कि कहीं मुझ पर ही चोरी का आरोप न लग जाए. इसलिए अंगूठी घर ले आई.

तैयबुन ने कहा,समय के साथ, मेरे पिता की मृत्यु हो गई और हमें भारी आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. इसी दौरान मेरे परिवार ने अंगूठी बेच दी. जैसे-जैसे समय बीतता गया. दोनों दोस्तों का एक-दूसरे से संपर्क टूट गया़. तैयबुन को स्पोर्ट्स कोटे में रेलवे में नौकरी मिल गई, लेकिन वह मानसिक रूप से परेशान रहती थी.

तैयबुन, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, ने कहा,मैंने सोचता कि चूंकि मैं उसे वह अंगूठी वापस नहीं कर सकती, इसलिए जब मैं उससे मिलूंगी तो उसे उसकी कीमत अदा कर दूंगी. मुझे लगा कि मैं इस तरह प्रायश्चित कर सकती हूं. लेकिन मुझे उसके ठिकाने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. इसलिए मैंने अपनी बहन की मदद मांगी. बहुत सारे लोगों से बात करने के बाद, उसे पता चला कि जुलेखा कहां रहती है. एक बार जब मुझे उसका नंबर मिला, तो मैंने उसे फोन करके कहा कि मैं उससे मिलने आऊंगी. जब मैं उससे मिली तो मैंने उसे सब कुछ बता दिया. तैयबुन ने कहा, शुरुआत में उसने अंगूठी की कीमत स्वीकारने से मना कर दिया.

तब उन्होंने कहा कि अगर वह जुलेखा का पता लगाने और कर्ज चुकाने में विफल रहती तो उसे मानसिक शांति नहीं मिलती.जुलेखा दशकों बाद तैयबुन से मिलकर बहुत खुश है. उन्हांेने कहा, मुझे खुशी है कि वह आई. मैं उसे लगभग भूल ही गई थी, लेकिन वह मुझे याद करती रही.”