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DelhiRiots : केजरीवाल को सब कुछ याद, सिर्फ मुआवजा देना भूले

ब्यूरो रिपोर्ट।

‘ब्रांडिंग’ की कला कोई दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से सीखे। वह इसमें पारंगत हैं। अपने ‘सामान’ की ऐसी ब्रांडिंग करते हैं कि उसके नीचे उनकी सारी कमियां दब जाती हैं। यदि उनकी ब्रांडिंग का हुनर देखना है तो उनके ट्वीटर हैंडल पर टहल आइए। ऐसा लगेगा दिल्ली में कोरोना ने अरविंद केजरीवाल के इंतज़ामों के आगे हथियार डाल दिए हैं। उनके ट्वीटर हैंडल@ArvindKejriwal  से यह पता लगाना भी मुश्किल है कि चार महीने पहले दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे हुए थे और उनके पीड़ितों को मुआवजा भी देना है। इसका उनके सोशल मीडिया पर कहीं कोई जिक्र नहीं।
  अरविंद केजरीवाल के सोशल मीडिया पर तमाम तरह की बातें हैं। कोरोना मरीजों के इलाज, इसके लिए बड़े होटलों के अधिग्रहण, कोविड सेंटर, अमित शाह का दौरा, तुलगाबाद में संत गुरू रबिदास मंदिर निर्माण, दिल्ली के क्रिकेटर राजेंद्र गोयल के निधन, लॉकडाउन में राशन बांटने, छह लाख लोगों को मुफ्त भोजन कराने से लेकर बच्चों व हनुमान जयंती की बधाई सहित तमाम तरह की बातें है। केवल नहीं है तो पूर्वी-दिल्ली के दंगे और उसके प्रभावितों की कोई चर्चा। इसका भी कहीं उल्लेख नहीं कि दंगे में सब कुछ गँवा चुके लोगों की मदद के लिए दिल्ली सरकार ने क्या व्यवस्था की है और अब तक मुआवजा क्यों नही दिया जा सका ? हद यह कि दिल्ली दंगे के बाद कोरोना और लॉकडाउन से बुरी तरह बर्बाद हो चुके लोगों को कोई सहायता भी नहीं दी जा रही। इस बारे में वेबसाइट ‘द क्विंट’ ने खोजबीन की तो पता चला कि दंगा पीड़ितों को चार महीनेे बाद भी मुआवजा  नहीं मिला है। इसपर स्मिता नंदी ने अपनी वेबसाइट के लिए अच्छी स्टोरी की है। 

दिल्ली हिंसा के 4 महीने: पीड़ितों को केजरीवाल सरकार से मुआवजा नहीं

 सीलमपुर के सैफुद्दीन कहते हैं, ‘‘ दंगों वाले दिन उन्हें पड़ोस से चीखने की आवाज सुनाई दी। कुछ लोग छत पर चढ़े हुए थे और घर के अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे। मैं अपने पड़ोसी के घर की तरफ उसे और उसकी बच्ची को बचने भागा। देखा कि छत के दरवाजे पर दो नकाबपोश खड़े थे। मैं बिना सोचे उनसे भिड़ गया। तभी बंदूक की गोली का धमाका हुआ। उन्हें उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सांप्रदायिक दंगों की पहली रात ही पैर में गोली लगी। दंगों में 53 लोग मारे गए थे। सैफुद्दीन के परिवार में सात सदस्य हैं। वह अकेला कमाने वाले हैं। पैर में गोली लगने के बाद से बिस्तर हैं। न कोई कमाई है, न ही सरकार से मदद मिल रही है। सरकार ने दंगा प्रभावितों को मुआवजा देने का वादा किया था, जो अब तक नहीं मिला। सैफुद्दीन का पूरा परिवार फाके में है। स्वयंसेवी संगठन ने लॉकडाउन में मदद की थी, तो गुजारा हो गया। अब स्थिति विकट हो गई है। 40 वर्षीय सैफुद्दीन कहते हैं लॉकडाउन बढ़ाने तथा सरकार से मुआवजा नहीं मिलने से कई तरह की मुश्किलें पैदा हो गई हैं। अभी उनके जांघों की दो सर्जरी बाकी है। यह कैसे होगी,सोच-सोचकर परेशान हूं।
 जानकारी के अनुसार, पीड़ितों की तरफ से दिल्ली हाई कोर्ट में कई वकीलों ने याचिकाएं दायर की हैं, ताकि उन्हें जल्द मुआवजा मिलेे। बताते हैं कि ऐसे करीब एक सौ पीड़ित हैं जिन्हें दंगों के दौरान हुए नुकसान के लिए मुआवजा नहीं दिया गया।  बता दूं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दंगों के दो दिन बाद  मुआवजे को लेकर लंबा चौड़ा ऐलान किया था। इस बाबत अखबरों मंे बड़े-बड़े विज्ञापन  दिए गए थे। ऐलान किया गया था कि मकान की भारी या पूरी क्षति होने तथा घर के सामान के नुकसान की स्थिति में प्रति परिवार को 25000 रूपये की तत्काल राहत दी जाएगी। नुकसान के आंकलन के बाद वास्तविक मुआवजा मिलेगा। यह काम अब तक नहीं हुआ है।


करावल नगर के एसडीएम एनके पाटिल कहते हैं, ‘‘ शुरुआती राशि केवल उन लोगों को दी गई जिनके घर जला दिए गए थे। अभी तक यह काम चल रहा है।’’ एसडीएम साहब की मानें तो दंगों के बाद कई पीड़ित परिवार भयवश दिल्ली छोड़ गए थे। लॉकडाउन के समय लौटे हैं। कई अब तब आए ही नहीं। मार्च के दूसरे पखवाड़े में दिल्ली वापस लौटने वाले दो पीड़ितों ने एसडीएम कार्यालय में मुआवजे का फॉर्म  नहीं जमा कराया है।
 इस क्रम में शिव विहार में रहने वाली 24 साल की नेहा कहती हैं , हिंसा शुरू होने से एक दिन पहले वह उत्तर प्रदेश अपने रिश्तेदार की शादी में चली गई थीं। दिल्ली दंगों के बारे में पता चलने पर वह और परिवार केे लोग वहीं रूके रहे। 24 मार्च को वापस लौटने पर देखा कि घर में तोड़फोड़ और लूटपाट हुई है। सारा सामान बिखरा था। उसे करीब दो लाख रूपये का नुक्सान हुआ है। लॉकडाउन में थाने में प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए उसे चार चक्कर लगाने पड़े। इसके बाद भी एसडीएम ऑफिस ने उसका फॉर्म नहीं लिया। कहा गया कि उसकी शिकायत एक अन्य एफआईआर में जोड़ दी गई है। उसे चिंता है कि ऐसी हालत में  मुआवजा मिलेगा भी या नहीं। शिव विहार में रहने वाले मोहसिन की भी कुछ ऐसी ही शिकायत है। उनका कहना है कि दंगों के दौरान उसके पिता की बेकरी जला दी गई थी। हिंसा के बाद वे डर सेे शहर छोड़कर चले गए। दस दिन पहले लौटे हैं। भय के कारण रात ईदगाह कैंप में बिताते हैं। उनके परिवार को भी दिल्ली सरकार से मिलने वाले मुआवजे की आस है। केजरीवाल के ट्वीटर एकाउंट को देखकर नहीं लगता कि निकट भविष्य में इसकी कोई उम्मीद है। सरकार को अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लाले पड़ रहे हैं। केंद्र सरकार से आर्थिक मदद मांगी है। ऐसे में दंगा पीड़ितों को अभी कहां मुआवजा मिलने वाला।
(तस्वीरें सोशल मीडिया से)

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संपादक

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