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पहले पुंछ और अब दंतेवाड़ा: नक्सली हमले में 10 जवान शहीद, खुफिया चूक पर उठे सवाल

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, रायपुर

ठीक ऐसे समय में देश को अपने 15 जवान खोने पड़े हैं, जब जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल पुलवामा आतंकी हमले मंे चूक को लेकर बड़े-बड़े खुलासे कर रहे हैं. ताजा घटना में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में माओवादियों ने 10 जवान सहित 11 लोगों की जिंदगी निगल ली. ऐसे में सवाल उठने लगा है कि क्या हमने अब तक पुलवामा की घटना से कोई सबक नहीं लिया है ?

एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि दंतेवाड़ा के अरनपुर थाना क्षेत्र में बुधवार को डीआरजी (जिला रिजर्व बल) के जवान माओवादियों का निशाना बन गए. जवानों का दल गश्त पर निकला हुआ था. उसी दौरान सड़क में बिछाए गए आईईडी की चपेट में उनका वाहन आ गया और उसके परखच्चे उड़ गए. इस हादसे में कुल 11 लोगों की मौत हुई है, जिनमें 10 डीआरजी के जवान हैं.

बताया जाता है कि आमतौर पर डीआरजी के जवान नक्सल प्रभावित इलाकों में वाहन का उपयोग कर कम जाते हैं. बहुत ज्यादा जरूरी होने पर वे दुपहिया वाहन का इस्तेमाल करते हैं. इतना ही नहीं जिस मार्ग पर गश्त होती है उसका पहले जायजा ले लिया जाता है कि कहीं कोई विस्फोटक तो नहीं है. यही कारण है कि सवाल उठ रहे हैं सर्चिंग से पहले सड़क का मुआयना क्यों नहीं किया गया और डीआरजी के जवानों ने आखिर वाहन का सहारा क्यों लिया. जवानों ने मेटाडोर का उपयोग क्यों किया ?

ऐसे सवाल इस लिए भी अहमद हो जाते हैं कि कुछ दिनों पहले देश के गृहमंत्रालय से दावा किया गया था कि नक्सलियों का पूरी तरह खात्मा हो गया है. कुछ इसी तरह के दावे अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियांे को लेकर किए गए थे. इसके विपरीत देश के जवान भारत विरोधी ताकतों के निशाने पर हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि दंतेवाड़ा विस्फोट में 50 किलो से ज्यादा विस्फोटक का उपयेाग किया गया होगा. यही कारण है कि जिस वाहन में जवान सवार थे उसके परखच्चे उड़ गए. साथ ही सुरक्षा बलों ने उन दिशा निर्देशों के पालन करने में चूक की है, जो नक्सल प्रभावित इलाकों के लिए तय हैं.

बताया गया है कि जिस मार्ग पर विस्फोट के लिए आईईडी का उपयोग किया गया, वह पक्की सड़क है. इस मार्ग पर आवाजाही भी रहती है. विस्फोट के बाद सड़क पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई है.राज्य के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने बताया है कि क्षेत्र में नक्सलियों के होने की गुप्त सूचना मिली थी. उसी के चलते जवान गए हुए थे और लौटते वक्त घटना हुई.

भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सांसद अरुण साव ने दंतेवाड़ा के अरनपुर में नक्सली हमले में जवानों की शहादत के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की लचर नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि यह सरकार नक्सलियों के सामने लाचार है. साढ़े चार साल से छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की समानांतर सरकार चल रही है. सारे देश में नक्सलवाद सिमट चुका है, लेकिन छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार के राज में नक्सलवाद फल फूल रहा है. जिसके कारण जवान शहीद हो रहे हैं और भाजपा कार्यकर्ताओं की टारगेट किलिंग हो रही है. नक्सलवाद का खात्मा करने भूपेश बघेल सरकार ने कोई प्रयास नहीं किया.

साव ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस और नक्सलियों में गुप्त गठजोड़ है. कांग्रेस अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए नक्सलियों का इस्तेमाल कर रही है और इसके एवज में उन्हें हिंसा करने की छूट दी गई है. कांग्रेस सरकार ने अब तक के कार्यकाल में नक्सलियों के खिलाफ कोई ऑपरेशन नहीं चलाया. मुख्यमंत्री बताएं कि आखिर क्यों नक्सल समस्या के सफाए के लिए कुछ भी नहीं किया गया.

विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि सरकार की चूक हुई है. जिसकी वजह से बड़ी संख्या में जवान शहीद हुए हैं. सरकार नक्सली वारदातों को गंभीरता से नहीं ले रही. इसका फायदा उठाकर नक्सली जवानों को निशाना बना रहे हैं.

कौशिक ने कहा कि एक सप्ताह पहले बीजापुर विधायक के काफिले पर नक्सली हमला हुआ. इस हमले के बाद गृहमंत्री को वहां जाकर नक्सलियों को जवाब देने रणनीति बनानी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. हालांकि बीजेपी नेताओं से भी सवाल किए जा रहे हैं कि केंद्र सरकार के पास इतना मजबूत खुफिया तंत्र मौजूद है, इसके बावजूद अब तक नक्सलियों का सफाया क्यों नहीं हुआ. आतंकवाद के नाम पर असम से लेकर बिहार तक कथित आतंकवादी गतिविधियों का तो पता चल जाता है, पर भारी मात्रा में देश के विभिन्न हिस्से में विस्फोटक इकट्ठा हो रहा है, इसकी जानकारी न खुफिया एजेंसी को होती है और न ही समय रहते ऐसे लोगों को दबोचा जाता है.

पुंछ हमलाः आतंकियों को शरण देने वाला शख्स हिरासत में

पुंछ हमले की जांच में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, सुरक्षा बलों द्वारा हिरासत में लिए गए एक व्यक्ति ने उन्हें बताया कि उसने दो महीने तक आतंकवादियों को पनाह दी थी. 20 अप्रैल के हमले के लिए उन्हें सहायता प्रदान की थी. सूत्रों ने बुधवार को यह दावा किया है.

अधिकारियों ने कहा कि सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने राजौरी और पुंछ के दो सीमावर्ती जिलों का दौरा किया और चल रहे अभियान का जायजा लिया.

पिछले गुरुवार को पुंछ में आतंकवादियों द्वारा उनके वाहन पर किए गए हमले में सेना के पांच जवान शहीद हो गए थे और एक अन्य गंभीर रूप से घायल हो गया था. हमले के बाद बड़े पैमाने पर तलाशी और घेराबंदी अभियान शुरू किया गया. यह अब पुंछ और राजौरी जिलों के 12 क्षेत्रों में फैल गया है.

अब तक कुल 60 लोगों को हिरासत में लिया गया है. सूत्रों का दावा है कि उनमें से एक नासिर ने कथित तौर पर जांचकर्ताओं को बताया कि उसने दो महीने से अधिक समय तक अपने घर पर आतंकवादियों को शरण दी और उन्हें रसद और भौतिक सहायता प्रदान की.

सूत्रों ने बताया कि विशेष बल भी तलाशी अभियान में लगे हुए हैं. एजेंसियों को ड्रोन, खोजी कुत्तों और मेटल डिटेक्टरों का समर्थन प्राप्त है.

उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर वन क्षेत्रों, गहरी घाटियों, प्राकृतिक गुफाओं और घने इलाकों में खोज की गई है और अभियान अब अन्य स्थानों को कवर कर रहा है. हालाकि इस घटना के साथ ही खुफिया सूचना की चूक और कश्मीर मंे चाक-चैबंद सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं. हकीकत यह है कि कश्मीर में सुरक्षा के नाम पर केवल प्राॅक्सी वार चल रहा है.