यह भी एक अच्छा काम है!!!
मुदस्सर अहमद
स्कूल और कॉलेज शुरू हो गए हैं. कई छात्रों ने प्रवेश ले लिया है. कुछ छात्र प्रवेश लेने की कोशिश में हैं. हर चीज की तरह अब शिक्षा भी महंगी हो गई है. माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ें. सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में पढ़े-लिखे शिक्षक होने के बावजूद अधिकांश शिक्षकों में ईमानदारी की कमी है, जिसके कारण बच्चों की पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाती. शिक्षक खुद अपने बच्चों को निजी स्कूलों और कॉलेजों में दाखिला दिला रहे हैं. तो इसका साफ मतलब है कि इन शिक्षकों को अपने ही शिक्षण संस्थानों पर विश्वास नहीं है.
यही कारण है कि अब हर कोई अपने बच्चों का भविष्य सुधारने के लिए निजी शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेना चाहता है. इन स्थितियों में सबसे बड़ी समस्या उन माता-पिता की है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं. माता-पिता हैं और हैं भी तो अपने बच्चों की पढ़ाई का खर्चा नहीं उठा सकते.ऐसी स्थिति में बच्चे चाहते हुए भी अच्छी जगह शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते.यह भी एक मसला है कि मुसलमानों के अपने शिक्षण संस्थान तो हैं,
लेकिन इन संस्थानों में अच्छी शिक्षा प्रदान करने के लिए अच्छे शिक्षकों को अच्छा वेतन देना पड़ता है, जिससे छात्रों को फीस लेनी पड़ती है. मगर मुसलमानों में एक सोच है कि जब मुसलमानों ने अपने राष्ट्र के लिए शिक्षण संस्थानों की स्थापना की है. ये स्थापित हो चुके हैं, फिर शुल्क कैसे वसूला जाता है?ऐसा कहने वालों को यह सोचने की आवश्यकता है कि मुसलमानों के शिक्षण संस्थान मुसलमानों के लिए मुसलमानों द्वारा बनाए जाते हैं, लेकिन इन संस्थानों का खर्च उठाने के लिए उन्हें स्वर्ग से मदद नहीं मिलती.
संस्थान बल्कि ये संस्थान मुसलमानों के माध्यम से सेवाएं प्रदान करते हैं.सबसे बड़ी समस्या यह है कि मुसलमानों में आज भी ऐसे लोग हैं जिनके पास सीमित संसाधन हैं. उनकी आय बहुत कम है, लेकिन वे अपने बच्चों की शिक्षा के लिए कड़ी मेहनत करते हैं.जो धनी हैं. काबिलियत रखते हैं और जो अच्छा करना चाहते हैं. अगर वो हर साल कम से कम दो बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी लेते हैं, तो इससे राष्ट्र के मुस्लिम बच्चों की शैक्षिक समस्या का समाधान हो सकता है. इससे बच्चे शिक्षित हो सकते है.
वे अपने जीवन में सुधार ला सकते हैं. यदि उनका निर्माण किया जाता है, तो वे न केवल मुस्लिम के लिए सबसे अच्छे नागरिक बनेंगे, बल्कि उनकी मदद करने वालों के लिए निरंतर इनाम का स्रोत भी होंगे. मुसलमानों का एक बड़ा तबका है जो अमीर है, पर वे अपने धन को तिजोरियों और बैंकों में रख रखा है. यह बिलकुल घाटे का काम है. उनका यह धन उनके अंतिम समय में काम नहीं आएगा और न ही भविष्य में. केवल उनके अच्छे कर्म भविष्य में काम आएंगे. हर साल एक या दो बच्चों का भरण-पोषण करना कोई बड़ी बात नहीं है. बस इरादे की जरूरत है.
- -लेखक शिमोगा, कर्नाटक के हैं. उनसे 9986437327 पर संपर्क किया जा सकता है.