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RAM MANDIR शरद पवार के बयान पर मुसलमानों के पीछे पड़े नफरत फैलाने वाले

ब्यूरो रिपोर्ट।
अयोध्या में बाबरी मस्जिद वाले स्थान पर प्रस्तावित राम मंदिर के शिलान्यास को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस कार्यक्रम में भाग लेना चाहिए ? अथवा अभी ऐसे कार्यक्रमों का हिस्सा बनने की बजाए देश में कोरोना विस्फोट, चीन और पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था को ठीक करने पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है ? यह प्रश्न नेशनल कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी के मुखिया शरद पवार ने उठाए हैं, पर इसका सारा ठिकरा मुसलमानों के सिर फोड़ा जा रहा है। मुस्लिम विरोधी सोशल मीडिया पर इफतार पार्टियों में शामिल नेताओं के फोटो शेयर कर अनर्गल प्रचार में लगे हैं। पूछ रहे हैं कि यह क्या है ? कोई कह रहा कि इस्लाम धर्म के कारण ही पाकिस्तान का सिंध और मलेशिया हिंदुओं के हाथों से निकल गया। एक सज्जन का कहना है कि ‘‘धर्मनिरपेक्ष होने का मतलब है मुसलमान होना।’’
   भारत के प्रधानमंत्री मंदिर के शिलान्यास जैसे धार्मिक आयोजनों शामिल हो सकते हैं अथवा नहीं ? यह संवैधानिक प्रश्न है। पीएम किसी एक कौम का होता है अथवा समग्र का ? यदि कोई पीएम अपने आचरण से समुदाय विशेष का प्रतिनिधत्व करते दिखे तो यह संविधान की आत्मा ‘नेशन फर्स्ट’ को चोट पहुंचाने वाला नहीं है ? बहरहाल, ऐसे महत्वपूर्ण प्रश्नों के औचित्य पर विचार मंथन की जगह राम मंदिर के शिलान्यास के बहाने एक नई तान छेड़ दी गई है।

बहस में मुस्लिम तड़का
  मंदिर निर्माण में लगे लोग चाहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसकी आधारशिला रखें। संघ कार्यकर्ता की हैसियत से इसके लिए माहौल बनान में उनका भी अहम योगदान रहा है। उनके प्रधानमंत्रित्वकाल में ही अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का रास्ता प्रशस्त हुआ है। ऐसे में भला मंदिर आंदोलन से जुड़े लोग क्यों न चाहेंगे कि इसका शिलान्यास पीएम मोदी के कारकमलों से हो। इसपर सहमति बनाने के लिए अगले महीने के पहले सप्ताह की दो तारीखें प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गई। एनसीपी नेता शरद पवार की इसपर ही टिप्पणी आई है। उनका कहना है कि देश में कोरोना महामारी मंदिर से नियंत्रित नहीं होगा। इसे काबू करने के लिए इसपर पूरा ध्यान देने की आवश्यकता है। चूंकि कुछ लोगों का काम है मुसलमानों के नाम पर समाज में नफरत फैलाना, इस लिए इस पूरी बहस को हिंदू-मुसलमान बना दिया गया।

कोरोना विस्फोट और मंदिर

देश में कोरोना विस्फोट हो चुका है। सोमवार को पहली बार 40 हजार से अधिक मामले सामने आए। एक दिन में पहली दफा साढ़े छह सौ से अधिक लोगों की मौत रिकार्ड की गई। स्वास्थ्य संगठनों के लिहाज से यह समय बड़ा विकट है। इसे देखते हुए  उत्तर प्रदेश सरकार ने नए सिरे से सूबे में लॉकडाउन  शुरू किया है। कायदे से यह समय राम मंदिर के शिलान्यास के लिए उचित नहीं। इसे कुछ दिनों के लिए टाला जा सकता है। इसकी पहल खुद राम मंदिर परिनिर्माण ट्रस्ट को करनी चाहिए, पर ऐसा होता नहीं दिख रहा। इसके उलट वे चाहते हैं कि 5 अगस्त को अध्योध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखी जाए और इस धार्मिक आयोजन में प्रधानमंत्री शरीक हों। केंद्र सरकार ने पिछले साल 5 अगस्त को ही जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया  था।


मुसलमानों पर नफरतों की बारिश
बहरहाल, देश पर छाए तमाम विपरीत परिस्थितियों के राम मंदिर की शिलान्यास की पुरजोर  तैयारी चल रही है। साथ ही समाज में नफरत फैलाने वाले गिरोह भी सक्रिय हैं। निलेश ने ट्वीट किया है कि सेक्यूलर चाहते हैं कि हिंदू आंखें बंद रखें। सुगम कहते हैं कि आप चाहते हैं कि प्रधानमंत्री अपना धर्म नहीं मानें। जब मनमोहन सिंह पीएम रहते गुरूद्वारा गए तब कोई आपत्ति नहीं हुई। अविनाश त्रिपाठी कहते हैं कि वह यानी प्रधानमंत्री एक हिंदू हैं और मंदिर की आधारशिला रखने जा सकते हैं। मनमौजी का कहना है, ‘‘चादर जो चढ़ाएगा सेक्यूलर कहलाएगा।’’बीइंग हिंदू ने ट्वीट किया है कि जब पीएम,सीएम टोपी पहन कर इफ्तार पार्टी में शामिल होते हैं तो मुसलमान हो जाते हैं। अभय बैजल कहते हैं कि मैं नहीं चाहता हूं कि ईसाई और मुसलमान देश के प्रधानमंत्री बनें। शिप्रा कहती हैं, ‘‘क्या प्रॉब्लम है उनको। एक काम करो मस्जिद का शिलान्यास करवा लो।’’ यानी देश की मौजूदा समस्या से नफरती गिरोह को कोई लेना-देना नहीं। उन्हें तो बस बहाना चाहिए मुसलमानों पर हमलावर होने के लिए।

Pics: social media

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