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कर्नाटक चुनाव में करारी शिकस्त और विपक्षी दलों की एकजुटता से भाजपा में दिखने लगी है दरार

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

कुछ दिनांे पहले कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से मिली करारी शिकस्त और विपक्षी दलों में बढ़ती एकजुटता से भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं के माथे पर बल पड़ गए हैं. इसके साथ ही अब पार्टी में पड़ने वाली दरारें भी दिखने लगी हैं. मध्य प्रदेश में जहां विधानसभा चुनाव के लिए टिकट को लेकर पार्टी में मारा-मारी मची है, वहीं कर्नाटक चुनाव में पराजय के बाद प्रदेश के भाजपा नेताओं में सिरफुटव्वल का आलम है. कुछ ऐसी ही असंतोष की खबरें में अन्य प्रदेशों से भी आने लगी हैं.

तेलंगाना में सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के लिए चंद सप्ताह पहले तक मुख्य चुनौती रही भाजपा आंतरिक कलह और कर्नाटक विधानसभा चुनावों में अपनी हार के बाद यहां चुनावी साल में अब तीसरे नंबर पर खिसक गई लगती है.

कुछ समय पहले भगवा पार्टी राज्य में खुद को बीआरएस के एकमात्र व्यवहार्य विकल्प के रूप में पेश कर रही थी. उसके नेता उम्मीद कर रहे थे कि कर्नाटक के बाद तेलंगाना दक्षिण में उनका दूसरा प्रवेश द्वार बन जाएगा.हालांकि, आज वह खुद को मुश्किल विकेट बैटिंग करती पा रही है.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कर्नाटक में पार्टी की भारी जीत के बाद कांग्रेस की ओर रुख बदलने, बीआरएस विद्रोहियों द्वारा भाजपा के मुकाबले सबसे पुरानी पार्टी को तरजीह देने और राज्य नेतृत्व के खिलाफ असंतोष की बढ़ती आवाजों ने भगवा पार्टी को समस्याओं में डाल दिया है.

कुछ नेताओं के भाजपा में शामिल होने और अब कांग्रेस में शामिल होने की योजना बनाने की खबरों से पार्टी का मनोबल और गिरता दिख रहा है.चुनाव होने में केवल चार-पांच महीने बचे हैं, ऐसे में भाजपा को एक एकजुट इकाई के रूप में मैदान में उतरने में कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.

भाजपा विधायक एटाला राजेंदर और पूर्व विधायक कोमाटिरेड्डी राज गोपाल रेड्डी कथित तौर पर पार्टी छोड़ने और कांग्रेस में शामिल होने की योजना बना रहे हैं.यह भाजपा के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी होगी, क्योंकि राजेंद्र उस समिति या पैनल का नेतृत्व कर रहे हैं जिसे अन्य दलों के नेताओं को भगवा खेमे में शामिल होने के लिए लुभाने का काम सौंपा गया है.

मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव द्वारा राज्य मंत्रिमंडल से हटाए जाने के बाद राजेंद्र ने 2021 में बीआरएस छोड़ दी. उन्होंने अपनी विधानसभा सीट हुजूराबाद भी छोड़ दी थी और भाजपा में शामिल हो गए थे. उसी वर्ष हुए उप-चुनाव में राजेंद्र बड़े अंतर से दोबारा चुने गए.

राज गोपाल रेड्डी, जो मुनुगोडे से कांग्रेस विधायक थे, राजेंद्र के नक्शेकदम पर चले. व्यवसायी-राजनेता का पार्टी में स्वागत करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह खुद मुनुगोडे आए थे. हालांकि, राज गोपाल रेड्डी पिछले साल के अंत में मुनुगोडे में हुजूराबाद को दोहराने में विफल रहे और बीआरएस ने सीट छीन ली.

राजनीतिक विश्लेषक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा, मुनुगोडे में हार के बाद भाजपा का पतन शुरू हो गया था. जो पार्टी आक्रामक मोड में थी वह कमजोर दिखने लगी है.अब जब कांग्रेस ने अपनी खोई जमीन वापस पा ली है तो राज गोपाल रेड्डी पार्टी में वापसी के इच्छुक नजर आ रहे हैं. उनके भाई और भोंगिर सांसद कोमाटिरेड्डी वेंकट रेड्डी भी उनकी वापसी सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रहे हैं.

दोनों नेता पिछले नौ वर्षों के दौरान मोदी सरकार की उपलब्धियां बताने के लिए एक ही दिन में 35 लाख घरों तक पहुंचने के लिए राज्य भर में 22 जून को भाजपा द्वारा आयोजित जन संपर्क कार्यक्रम से दूर रहे.राजेंद्र और राज गोपाल रेड्डी दोनों के साथ-साथ पूर्व सांसद कोंडा विश्वेश्वर रेड्डी जैसे कुछ अन्य नेता, जो भाजपा में शामिल होने के लिए कांग्रेस छोड़ चुके थे, राज्य इकाई अध्यक्ष बंदी संजय कुमार की कार्यशैली से नाखुश हैं.

भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व तेलंगाना के घटनाक्रम को लेकर चिंतित है. यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि राजेंद्र और राज गोपाल रेड्डी दोनों को दिल्ली बुलाया गया है, जिसे उन्हें भाजपा में बने रहने के लिए मनाने के आखिरी प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.

हालांकि, संजय एक मजबूत चेहरा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. जब उनसे कुछ भाजपा नेताओं की कांग्रेस में शामिल होने की योजना के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, अगर कोई डूबते जहाज पर चढ़ना चाहता है तो हम उसे रोक नहीं सकते.भाजपा खेमे में कई महीनों से अलग-अलग गुटों के बीच घमासान देखने को मिल रहा है.

मतभेद पिछले महीने फिर से सामने आए जब राजेंद्र और अन्य नेता बंदी संजय और अन्य वरिष्ठ नेताओं को सूचित किए बिना पूर्व सांसद पोंगुलेटी श्रीनिवास रेड्डी और पूर्व मंत्री जुपल्ली कृष्ण राव से मिलने के लिए खम्मम चले गए ताकि उन्हें भाजपा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जा सके.

चूंकि श्रीनिवास रेड्डी और कृष्णा राव को हाल ही में पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए बीआरएस द्वारा निलंबित कर दिया गया था, एटाला और अन्य ने उन्हें भगवा पार्टी में शामिल होने के लिए मनाने के लिए उनसे बातचीत की.

बाद में राजेंद्र ने खुलासा किया कि दोनों नेताओं ने उन्हें बीआरएस को सत्ता से बाहर करने के लिए उनके साथ हाथ मिलाने के लिए मनाने की कोशिश की.कर्नाटक चुनाव में जीत के बाद उत्साहित कांग्रेस पार्टी अन्य पार्टियों के बागियों को आकर्षित करने में भाजपा से आगे निकलती नजर आ रही है.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि हाल ही में बीआरएस और अन्य दलों के नेताओं के शामिल होने से कांग्रेस पार्टी बीआरएस के लिए मुख्य चुनौती बनकर उभरने लगी है.पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस पार्टी उन बागी बीआरएस नेताओं को भी अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रही जो पहले भाजपा को पसंद करते दिख रहे थे.

श्रीनिवास रेड्डी और कृष्णा राव के कांग्रेस में शामिल होने का लगभग मन बना लेने से कांग्रेस पार्टी को बड़ी सफलता मिलती दिख रही है.

यह पहली बार नहीं है जब भाजपा के खेमे में कड़वाहट देखने को मिल रही है. हाल ही में, भाजपा सांसद अरविंद धरमपुरी मुख्यमंत्री की बेटी और बीआरएस नेता के. कविता पर बंदी संजय की कथित अपमानजनक टिप्पणी के खिलाफ खुलकर सामने आए. निजामाबाद के सांसद ने कहा था कि वह बंदी की टिप्पणी से सहमत नहीं हैं.

यह पार्टी के लिए एक झटका थाण् अरविंद सीएम केसीआर और उनके परिवार के कटु आलोचक हैं. उन्होंने 2019 में निवर्तमान सांसद कविता को निजामाबाद से हराया था. कुछ महीने पहले अरविंद द्वारा संजय की टिप्पणी में गलती निकालना भाजपा के लिए आश्चर्यजनक था और इससे नेताओं के बीच मतभेद का संकेत मिला था.

नेताओं के एक वर्ग का मानना है कि संजय के अपरिपक्व अनुचित शब्द, तानाशाही और अलोकतांत्रिक हरकतों से पार्टी की संभावनाओं को नुकसान हो सकता है.

बंदी संजय को भाजपा के शीर्ष नेताओं का विश्वास प्राप्त है क्योंकि उनके नेतृत्व में पार्टी ने दो विधानसभा उपचुनाव जीते, तीसरे उपचुनाव में मजबूत लड़ाई लड़ी और ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (जीएचएमसी) में भी अपनी स्थिति में उल्लेखनीय सुधार किया.

पिछले साल हैदराबाद में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में और अन्य मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संजय की जुझारूपन की सराहना की थी. जिस तरह से उन्होंने बीआरएस से मुकाबला करने के लिए प्रजा संग्राम यात्रा का नेतृत्व किया, उसके लिए अन्य केंद्रीय नेताओं ने भी उनकी प्रशंसा की.

हालांकि, यह सर्वविदित तथ्य है कि भाजपा के अलग-अलग समूह हैं. नेताओं का एक वर्ग केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी का समर्थन करता है, जिनके बंदी संजय से मतभेद हैं.भाजपा को और शर्मिंदगी में डालते हुए, उसके सांसद सोयम बापुराव ने पिछले सप्ताह स्वीकार किया कि उन्होंने संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास (एमपीएलएडी) योजना के धन की मदद से अपने लिए एक घर बनाया था और अपने बेटे की शादी की थी.

भाजपा कार्यकर्ताओं की एक बैठक में आदिलाबाद के सांसद के भाषण का एक वीडियो क्लिप सोमवार को सोशल मीडिया पर वायरल हो गया.सांसद ने वीडियो लीक के लिए भाजपा नेता रमेश राठौड़ और पायला शंकर को जिम्मेदार ठहराया.राज्य में भगवा पार्टी की वास्तविक ताकत के बारे में एक वरिष्ठ भाजपा नेता के हालिया कथित बयान से भी पार्टी कार्यकर्ताओं को झटका लगा है. नेता ने कथित तौर पर स्वीकार किया कि भाजपा राज्य में तीसरे स्थान पर खिसक गई है.

भाजपा ने 2018 के विधानसभा चुनावों में 119 सदस्यीय सदन में केवल एक सीट जीती. यह केवल नौ निर्वाचन क्षेत्रों में दूसरे स्थान पर रही और अधिकांश सीटों पर इसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई.हालांकि, कुछ महीने बाद हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा ने सबको आश्चर्यचकित करते हुए न केवल सिकंदराबाद सीट को बरकरार रखा बल्कि तीन अन्य सीटें – करीमनगर, निजामाबाद और आदिलाबाद भी छीन लीं.

हालांकि भाजपा ने दो उप-चुनाव जीतकर विधानसभा में अपनी सीटों की संख्या बढ़ाकर तीन कर ली है, लेकिन तथ्य यह है कि भगवा पार्टी की हैदराबाद और उत्तरी तेलंगाना के कुछ शहरी इलाकों के बाहर मजबूत उपस्थिति नहीं है.अपनी अंदरूनी कलह और कांग्रेस के सुधार की राह पर होने के कारण, भाजपा को 2023 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में एक कठिन चुनौती का सामना करना पड़ेगा.

विधायकों को टिकट नहीं मिलने की आशंका से मध्यप्रदेश भाजपा में घमासान

मध्य प्रदेश में भी राजनीतिक तापमान बढ़ा हुआ है. सत्तारूढ़ भाजपा को कांग्रेस से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है. इसके साथ ही भगवा पार्टी में आंतरिक कलह भी बढ़ रहा है. 15 महीने पुरानी कमल नाथ सरकार को छोड़कर, भाजपा दो दशकों से राज्य में सत्ता में है. पिछले चार विधानसभा चुनावों में सबसे दिलचस्प मुकाबला 2018 में देखने को मिला, जब बीजेपी सत्ता से बेदखल हो गई.ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में 22 विधायकों के भाजपा में चले जाने के बाद राज्य में कांग्रेस सरकार गिर गई और भाजपा एक बार फिर सत्ता में आई.

बीजेपी अपने चुने हुए प्रतिनिधियों का रिपोर्ट कार्ड बना रही है, लेकिन इसका नतीजा बहुत सुखद नहीं है, इसलिए पार्टी इनमें से कई के टिकट काट सकती है.कुछ को टिकट मिलने और कुछ के न छूटने को लेकर पार्टी कैडर में टकराव की स्थिति पैदा हो रही है. वे एक-दूसरे को सबक सिखाने की कोशिश कर रहे हैं, पार्टी को कमजोर कर रहे हैं.

बुन्देलखण्ड के सागर जिले में पिछले कई सालों से शिवराज कैबिनेट में मंत्री गोपाल भार्गव, भूपेन्द्र सिंह और गोविंद सिंह के बीच अपने प्रभाव को लेकर शीत युद्ध चल रहा है.हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने जब मंत्रियों को शांत कराया तो यह टकराव खुलकर सामने आ गया. हालांकि, खेल अभी खत्म नहीं हुआ है.

विंध्य क्षेत्र में सतना सांसद गणेश सिंह और मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं. ये दोनों पिछले चुनाव में दूसरे को जिताने का दावा कर रहे हैं.उज्जैन में प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव को तमाम वरिष्ठ नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. यहां तक कि उन्होंने मुख्यमंत्री और शर्मा से भी शिकायत की है.

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि मध्य प्रदेश में करीब दो दशक से बीजेपी की सरकार है और जब भी कोई पार्टी इतने लंबे समय तक सत्ता में रहती है, तो उसे सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ता है.भाजपा के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है और भगवा पार्टी को कलह का सामना करना पड़ रहा है, इससे निपटना बहुत आसान नहीं है.

संगठन जमीनी स्तर से ही खुद को मजबूत करने में लगा हुआ है, जबकि राज्य सरकार मतदाताओं को लुभाने के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं और उपायों की घोषणा कर रही है.हालांकि, पार्टी में कलह के कारण मतदाता एक अलग तरह का दृष्टिकोण बना रहे हैं.

मोदी कथानक ने अकालियों की छाया से पंजाब भाजपा को बाहर निकलने में नहीं की मदद

पंजाब की राजनीति में हमेशा दूसरे नंबर की भूमिका में रहने वाली भाजपा अपने आधार को मजबूत करने के लिए मोदी के कथानक के अलावा, कांग्रेस के भगोड़ों पर भी निर्भर है. अपने लिए राज्यव्यापी जगह बनाने के लिए, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपने एक समय के सहयोगी, शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) की छाया से बाहर खुद को स्थापित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है.

सीमावर्ती राज्य पंजाब में, जहां हिंदू अल्पसंख्यक हैं, पड़ोसी राज्य हरियाणा, जहां पार्टी अब लगातार दूसरी बार सत्ता में है, और हिमाचल प्रदेश के विपरीत कभी भी भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार नहीं रही है.पिछले सभी संसदीय चुनावों में, भाजपा को पंजाब में अकालियों द्वारा राज्य की 13 में से तीन लोकसभा सीटें लड़ने के लिए दी गई थीं. 2009 और 2014 दोनों चुनावों में इसकी संख्या दो थी.

2007 से 2017 तक लगातार दो बार राज्य पर शासन करने वाले अकालियों के साथ मतभेदों के बावजूद, भाजपा को अपने अस्तित्व के लिए उसके साथ साझेदारी करने के लिए मजबूर होना पड़ा.लेकिन भाजपा नेताओं ने हमेशा आधिकारिक तौर पर यह स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि उनकी पार्टी को क्षेत्रीय ताकत के साये में रहने के लिए मजबूर किया गया था.

उधर, नेताओं के बड़े पैमाने पर पलायन, दो बार के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और राज्य के प्रमुख हिंदू चेहरा सुनील जाखड़ जैसे वफादार और अनुभवी नेता के पार्टी छोड़ने के बाद कमजोर कांग्रेस पुनरुद्धार के लिए संघर्ष कर रही है.

117 सदस्यीय विधान सभा में, पंजाब में कांग्रेस, जिसने 2017 में 77 सीटें जीती थीं, मार्च 2022 में केवल 18 सीटें जीतने में सफल रही. पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी और तत्कालीन राज्य पार्टी प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू जैसे उसके अधिकांश दिग्गज चेहरों को उनके गढ़ों में अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा.

भाजपा, जिसने 2017 में अकालियों के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था, तीन सीटें जीती थीं, 2022 में केवल दो सीटें हासिल कीं, जबकि शिअद ने चार और अन्य ने एक जीती.राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने बताया कि वर्तमान में रस्साकशी मुख्य रूप से भाजपा और आप के बीच है, न कि भगवा पार्टी और उसके पिछले साथी अकालियों के बीच.

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और विधायक अश्विनी शर्मा राज्य में बिगड़ती कानून व्यवस्था के लिए भगवंत मान के नेतृत्व वाली सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.इसके अलावा वह केंद्र के ग्रामीण विकास कोष को अपने कर्ज चुकाने के लिए खर्च करने और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन निधि के दुरुपयोग के लिए भी सरकार से सवाल कर रहे हैं.

हाल ही में समाप्त हुए दो दिवसीय विशेष विधानसभा सत्र का बहिष्कार करने वाली भाजपा ने सरकार पर सत्र बुलाकर करदाताओं का पैसा बर्बाद करने का आरोप लगाया.

केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा नेता अमित शाह ने 18 जून को पठानकोट शहर से राज्य चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए मुख्यमंत्री भगवंत मान से पूछा, क्या वह मुख्यमंत्री हैं या पायलट?, उन्होंने कहा कि राज्य की कानून व्यवस्था की स्थिति खराब हो गई है. इससे भी बुरा यह है कि सीएम मान अपना सारा समय अरविंद केजरीवाल के साथ घूमने में बिताते हैं.

उन्होंने प्रत्येक वयस्क महिला को प्रति माह 1,000 रुपये देने की चुनावी गारंटी पर भी राज्य सरकार से सवाल उठाया.गृह मंत्री केंद्र की मोदी सरकार की नौ साल की उपलब्धियों को रेखांकित कर रहे थे.यह कहते हुए कि आप एक विज्ञापन पार्टी है, शाह, जिनका 20 मिनट का संबोधन मुख्य रूप से आप पर हमला करने पर केंद्रित था, ने कानून और व्यवस्था और नशीली दवाओं को राज्य सरकार के लिए प्रमुख चुनौतियों के रूप में उभरने के लिए जिम्मेदार ठहराया.

अमृतसर में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) कार्यालय खोलने की शाह की घोषणा के तुरंत बाद, आप के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह और कुछ नहीं, बल्कि भगवा पार्टी के राजनीतिक लाभ के लिए भाजपा द्वारा एनसीबी कार्यालय का दुरुपयोग करने का प्रयास है.

शाह के अलावा जे.पी.नड्डा समेत बीजेपी के कई शीर्ष केंद्रीय नेताओं ने पार्टी के शासन के नौ साल का जश्न मनाने के बहाने पंजाब का दौरा शुरू कर दिया है.

हालांकि, राज्य में एकमात्र व्यक्ति जो सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए है, वह राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित हैं, जो समय-समय पर जवाबदेही की कमी को लेकर राज्य के अधिकारियों को फटकार लगाते रहे हैं.पुरोहित और मान के बीच ताजा वाकयुद्ध में पुरोहित ने सरकारी हेलीकॉप्टर के आधिकारिक इस्तेमाल पर पुरोहित पर पलटवार करते हुए कहा कि वह इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे.

उन्होंने कहा, मुझे एक हेलीकॉप्टर दिया गया है. मैंने इसका इस्तेमाल निजी इस्तेमाल के लिए नहीं, बल्कि आधिकारिक ड्यूटी के लिए किया और सीमा क्षेत्र का दौरा किया, इसमें पंजाब के अधिकारी भी मेरे साथ थे. अब, मैंने घोषणा की है कि जब तक मैं पंजाब में हूं, मैं इसका इस्तेमाल नहीं करूंगा.

अपने फैसले को सही ठहराते हुए पुरोहित ने कहा कि मुख्यमंत्री ने विधानसभा में उनका मजाक उड़ाया और कहा कि राज्यपाल इतने सारे प्रेम पत्र लिख रहे हैं.पुरोहित की कड़ी प्रतिक्रिया विधानसभा द्वारा सर्वसम्मति से पंजाब विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, 2023 पारित करने के एक दिन बाद आई, इसमें राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति की शक्तियां मुख्यमंत्री को सौंप दी गईं.

राज्यपाल पर तीखा हमला बोलते हुए मान ने विधानसभा में राज्यपाल को केंद्र का एक एजेंट बताया, जो उन्हें परेशान करने के लिए विशेष रूप से तैनात किए गए हैं.मान, जो राज्यपाल को यह याद दिलाने का कोई मौका नहीं चूकते कि उन्होंने संविधान की रक्षा करने और नियमों का उल्लंघन नहीं होने देने की शपथ ली है, ने कहा, राज्यपाल के पास उन्हें प्रेम पत्र लिखने के अलावा और कुछ नहीं है.

2024 में एक बार फिर ब्रांड मोदी के साथ भाजपा के लिए तय की गई कहानी के बावजूद, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा को अभी भी जमीनी स्तर पर अकेले पैठ बनाने के लिए समय की जरूरत है.

स्थानीय नेताओं द्वारा आप सरकार के खिलाफ सख्त रुख अपनाए जाने के बीच, एक विश्लेषक ने बताया कि भाजपा के लिए अब समय आ गया है कि वह अपनी शर्तें तय करके अकाली दल के साथ फिर से जुड़ जाए, क्योंकि नेताओं के बड़े पैमाने पर पलायन के साथ खंडित शिरोमणि अकाली दल अपने सबसे खराब दौर का सामना कर रहा है. संरचनात्मक रूप से, संगठनात्मक रूप से और यहां तक कि वैचारिक नेतृत्व के संदर्भ में भी.

अप्रैल में अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल के निधन पर शोक व्यक्त करने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह और जेपी नड्डा तक शीर्ष भाजपा नेतृत्व के पंजाब दौरे पर जाने से भविष्य में गठबंधन की अटकलें तेज हो गईं.

दो दशक से अधिक लंबे संबंधों को तोड़ते हुए, तीन विवादास्पद कृषि कानूनों पर तीव्र मतभेद उभरने के बाद, अकाली दल सितंबर 2020 में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से बाहर हो गया, जिसे अब निरस्त कर दिया गया है.

हालांकि, केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी समेत बीजेपी के कई शीर्ष नेता भविष्य में गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं.पुरी ने हाल ही में कहा, श्श्मैं उन सभी अकाली नेताओं का स्वागत करना चाहता हूं जो भाजपा में शामिल होना चाहते हैं और हमारे चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ना चाहते हैं.कूटनीतिक तरीके से जवाब देते हुए शिअद नेता दलजीत चीमा ने मीडिया से कहा कि तत्काल कोई चुनाव नहीं होने वाला है और गठबंधन बनाने के फैसले आम तौर पर चुनावों के दौरान लिए जाते हैं.