आईएएस अधिकारी शाह फैसल ने असमय क्यों कहा- मेरे जैसे कई कश्मीरियों के लिए अनुच्छेद 370 अतीत की बात
मुस्लिम नाउ ब्यूरो,श्रीनगर
कश्मीर से यूपीएससी टाॅपर रहे शाह फैसल का असमय आया बयान मंगलवार को दिनभर ट्रेंडिंग में रहा. उन्होंने ट्वीट कर कहा-(अनुच्छेद) 370, मेरे जैसे कई कश्मीरियों के लिए, अतीत की बात है. झेलम और गंगा हमेशा के लिए महान हिंद महासागर में विलीन हो गई हैं. वहां से कोई वापसी नहीं है. केवल आगे बढ़ना है. ”
इसी ट्वीट में 2010-बैच के आईएएस अधिकारी ने आगे कहा कि उन्हांेने अनुच्छेद 370 को हटाने के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थीं, उन्होंने बहुत पहले ही याचिका वापस ले ली है.
कहने को तो उनका यह बयान सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच की निर्धारित सुनवाई से कुछ ही दिन पहले आई है. बावजूद इसके उनका यह बयान निरर्थक और अमसय जैसा है.
कारण कि नौकरी छोड़कर सियासत में आए शाह फैसल फिर से नौकरी में आ गए हैं और एक मंत्रालय में सचिव स्तर पर कार्यकर रहे हैं. ऐसे में कोई अधिकारी नौकरी में रहते सरकार के किसी निर्णय को चुनौती नहीं दे सकता. इसी तरह उनका अनुच्छेद 370 वाला बयान भी निरर्थक सा है. क्यों कि अभी वह एक अधिकारी हैं. इसकी जगह उनसे सवाल पूछाना जाना चाहिए कि अनुच्छेद 370 के विरोध में उन्होंने अपील क्यों की थी ? इसके साथ ही उनसे यह भी पूछा जाना चाहिए कि वह बाकी कश्मीरियों के बारे में बयान कैसे दे सकते हैं ? पिछले तीन सालों मंें अब तक कोई भी आम नागरिक का बड़ा समूह यह कहने क्यों आगे नहीं आया है कि अनुच्छेद 370 हटाकर अच्छा किया गया है ?
हालांकि इन तर्कोंं और कुर्ताें के बीच शाह फैसल का यह ट्विट मंगलवार को दिनभर ट्रेंड करता रहा. माना जा रहा है कि शाह फैसल ने ऐन सुनवाई के दौरान यह बयान किसी खास मकसद से दिया है. चूंकि यह कश्मीर के बाशिंदे हैं, पर वहां की नुमाइंदगी नहीं करते, इसलिए उनके ट्वीट को कई लोगों ने खास तवज्जो नहीं दी है.
बता दें कि मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ 11 जुलाई को दो दर्जन से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई करने जा रही है, जिनमें जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की कानूनी वैधता को चुनौती देने की मांग की गई है.