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पीस कान्फ्रेंस में मुस्लिम लीग महासचिव अल-इस्सा और एनएसए डोभाल से भारतीय मुसलमानों को नहीं मिली नई दिशा, दोनों हस्तियों ने पुरानी बातें  दोहराई

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

मुस्लिम वर्ल्ड लीग महासचिव एवं उदारवादी इस्लाम का प्रमुख चेहरा माने जाने वाले सऊदी अरब के पूर्व न्याय मंत्री डॉक्टर मोहम्मद बिन अब्दुल करीम अल-इस्सा और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का इंडियन इस्लामिक कल्चरल सेंटर में पीस कान्फ्रेंस के दौरान दिया गया भाषण भारतीय मुसलमानों को कोई खास संदेश नहीं दे पाया. दोनों ने वही बातें कहीं जो वे हर सभा और कार्यक्रम में कहते आ रहे हैं. अल-इस्सा और डोभाल के इन भाषणों को वेबसाइट और सोशल मीडिया पर कभी भी पढ़ा और सुना जा सकता है.

देश के मुसलमानों पर जब काॅमन सिविल कोड की तलवार लट रही है. और वे पहले से ही एनआरसी, तीन तलाक, राम मंदिर, अनुच्छेद 370, हिजाब, माॅब लिंचिंग, मुस्लिम कारोबारियों के बहिष्कार, मदरसों पर बढ़ता सरकारी शिकंजा जैसे मुददों से खुद को असहज महसूस कर रहा है. ऐसे में उम्मीद थी कि अल-इस्सा और डोभाल मिलकर उन्हें बेहतर ढंग से सांत्वना देंगे. मगर दोनों की ओर से इस दिशा में कोई ठोस संदेश नहीं आया. यहां तक कि अल-इस्सा ने पीएम मोदी और कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवियों से भी मुलाकात की. इसके बावजूद वे भी ‘गंगा-जमुनी संस्कृति’ का ही पुराना राग अलापते रहे. यह अक्सर हर विवाद के बाद सुना जाने लगा है. जमीयत उलेमा हिंद के अरशद मदनी की ओर से तो एक तरह से पीस सम्मेलन के विरोध में अखबारों में इश्तेहार ही प्रकाशित करा दिया गया था.

डॉ. अल-इस्सा नई दिल्ली स्थित इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर के बीएस अब्दुर रहमान ऑडिटोरियम में आयोजित ‘पीस कान्फ्रेंस’ को संबोधित करते हुए वही पुरानी बातें कहीं कि‘‘हम भारत के इतिहास और विविधता की सराहना करते हैं.’’ उन्होंने कहा कि संस्कृतियों के बीच संवाद स्थापित करना समय की मांग है. उन्हांेने कहा कि मुस्लिम वर्ल्ड लीग विविधता संस्कृतियों के बीच अच्छे संबंधों को बढ़ावा देती है.

उन्होंने समाज में बात-बेबात बढ़ते संघर्ष की ओर इशारा करते हुए कहा कि विविधता और एकता ही आगे बढ़ने का एक मात्र रास्ता है. उन्होंने कहा कि सहिष्णुता को जीवन का हिस्सा बनाने की जरूरत है. मुस्लिम वर्ल्ड लीग का दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों के साथ गठबंधन है.

डॉ. अल-इस्सा ने हिंदुस्तान के प्रति अपने गहरे रिश्ते को व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदू समुदाय में मेरे कई दोस्त हैं. हम आस्थाओं के बीच समझ को मजबूत करना चाहते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि कई हिंदू नेताओं के साथ हमारे कई समान मूल्य हैं और हम मतभेदों का सम्मान करते हैं. इसके बावजूद हम जानते हैं कि मुस्लिम घटक एक महत्वपूर्ण घटक है.

देश-दुनिया में सद्भावना के विस्तार के महत्व पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि धर्म सहयोग का साधन बन सकता है. हम हर किसी को समझने के लिए  लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं. सोशल मीडिया पर चलने वाले नकारात्मक देशों की ओर इशारा करते डॉ. अल-इस्सा ने कहा कि हमें दुनिया में नकारात्मक रुझान को कम करने और समान मूल्यों को मजबूत करने के लिए काम करना होगा.

उन्होंने माना कि भारत पूरे विश्व के लिए ‘सह-अस्तित्व का एक महान मॉडल’ है.उन्होंने कहा कि अपनी बातचीत में मैंने पाया है कि भारत के मुसलमानों को भारतीय होने पर गर्व है.

उन्होंने वर्ल्ड मुस्लिम लीग के बैनर तले विश्व शांति के लिए चलाए जा रहे अभियानों की ओर इशारा करते हुए कहा कि हमने संस्कृतियों और सभ्यताओं के बीच टकराव को समाप्त करने के लिए पहल शुरू की है. इस दौरान हमने पाया कि भारत में समुदायों के बीच आशावाद की सच्ची भावना.

उन्होंने भारत की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह विविधता, संविधान और स्थिरता की रक्षा का एक शानदार उदाहरण है. उन्होंने कहा कि भारत की शिक्षा सह-अस्तित्व के लिए महान भूमिका को बढ़ावा देती है. सहिष्णुता और सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने में सामुदायिक नेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है.

उन्होंने कहा कि दुनिया भर में हमें सहिष्णुता के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है. हमें अपने भाग्य को आकार देने के लिए गठबंधन की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि हम समझ चुके हैं कि दूसरा भी इंसान है. बच्चों को शुरुआती जीवन से ही यह सिखाया जाना चाहिए. हमें बेहतर भविष्य के लिए अपना योगदान देना होगा.

डॉ अल-इस्सा ने इस्लाम के उदारवादी पहलू की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस्लामी संस्कृति प्रेम, जुड़ाव और संवाद के लिए खुली है. इस्लाम में सह-अस्तित्व एक धार्मिक दायित्व है. उन्होंने दुनिया भर मजहबों के बीच चलने वाले संघर्षों के बारे में कहा कि इस्लाम हमें उन लोगों के प्रति सम्मान दिखाना सिखाता है, जिससे हम असहमत हैं.

इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि 1.8अरब मुसलमानों को इस्लाम के सच्चे संदेश का प्रतिनिधि बनना होगा. इस्लाम केवल सहिष्णुता के बारे में नहीं है, बल्कि इस्लाम दूसरों को माफ करने के बारे में भी है.

उन्होंने कहा कि एमडब्ल्यूएल हर किसी के साथ बातचीत के लिए खुला है. हम भारतीय ज्ञान को बहुत महत्व देते हैं. उन्होंने भारत की प्रशंसा करते हुए कहा कि बातचीत के लिए खुला रहने के मामले में भारत बाकी दुनिया के लिए प्रेरणा है.

उन्होंने ‘भारतीय ज्ञान’ की सराहना करते हुए कहा, हम अपने साझा उद्देश्यों के लिए विभिन्न घटकों और विविधता के साथ पहुंचते हैं. हमने भारतीय ज्ञान के बारे में बहुत कुछ सुना है. हम जानते हैं कि इसने मानवता के लिए बहुत योगदान दिया है.

भारत और सऊदी अरब के रिश्तों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि भारत के साथ हमारी साझेदारी पूरी दुनिया के लिए एक संदेश है. सभ्यताओं का यह गठबंधन पूरी दुनिया के लिए सद्भाव का संदेश देता है. डॉ. अल इस्सा ने स्पष्ट किया कि मानवता की रक्षा के लिए हमें एक साथ रहने की जरूरत है.

सऊदी प्रतिनिधि ने कहा कि उनका संगठन धार्मिक जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए दुनिया भर में काम कर रहा है.

उन्होंने कहा कि दुनिया में यह निराशावादी सिद्धांत है, जो कहता है कि सभ्यताओं के बीच टकराव अपरिहार्य है. इस प्रकार ऐसा टकराव दो कारकों पर निर्भर करता है. धर्म भी हैं और सभ्यताएं भी हैं. यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र ऐसे सिद्धांतों से अवगत रहा है. अल-इस्सा ने कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र के भीतर एक संगठन, एक अंग की स्थापना की गई है, जिसे सभ्यताओं का गठबंधन कहा जाता है.

उन्होंने आगे कहा कि मुस्लिम वर्ल्ड लीग ने संयुक्त राष्ट्र और उनके नेतृत्व के सहयोग से संयुक्त राष्ट्र के मंच से पूर्व और पश्चिम के बीच पुल बनाना नामक एक पहल शुरू की है.

शांति सम्मेलन को एनएसए अजीत डोभाल ने भी संबोधित किया. उन्होंने कहा कि डॉ. अल-इस्सा के प्रयास इस्लाम को बेहतर ढंग से समझने में योगदान दे रहे हैं. डॉ. अल-इस्सा ने इस्लाम के शांति और भाईचारे के पक्ष को दुनिया के समक्ष मजबूती से रखा है, जिसकी सर्वत्र सराहना हो रही है.

बता दें कि डॉ. अल-इस्सा उदारवादी इस्लाम की एक प्रामाणिक वैश्विक आवाज माने जाते हैं. और डॉ. अल-इस्सा सोमवार को एक सप्ताह के भारत दौरे पर आए हुए हैं. यात्रा के दूसरे दिन उन्होंने पीस कांफ्रेंस में भाग लिया. उनका विदेश मंत्री एस जयशंकर और अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी से मुलाकात का भी कार्यक्रम है.

वह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी मुलाकात कर सकते हैं. उनका विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में प्रतिष्ठित धर्म गुरुओं से संवाद स्थापित करने का भी कार्यक्रम है. जानकारी के अनुसार, वह अक्षरधाम मंदिर जा सकते हैं और कुछ प्रमुख हस्तियों से मुलाकात कर सकते हैं. उनका शुक्रवार की नमाज के लिए जामा मस्जिद दिल्ली का दौरा करने का भी कार्यक्रम है.

अल-इस्सा के संबोधन के बाद बोलते हुए अजीत डोभाल ने यह कहकर नया शोशा छोड़ दिया कि ‘‘हजरत खदीजा को कश्मीरी शाल और रेशम पसंद थे.’’

भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने कहा कि भारत में कोई भी धर्म खतरे में नहीं. आतंक के खिलाफ युद्ध में, गंभीर उकसावों के बावजूद भारत ने कानून के शासन, अपने नागरिकों के अधिकारों और मानवीय मूल्यों की सुरक्षा को दृढ़ता से बरकरार रखा है. उन्होंने कहा कि भारत असहमति को आत्मसात करने की असीमित क्षमता के साथ विधर्मी विचारों की शरणस्थली के रूप में अपनी भूमिका लगातार निभा रहा है.

अजीत डोभाल नई दिल्ली स्थित इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर के बीएस अब्दुर रहमान ऑडिटोरियम में आयोजित पीस कॉन्फ्रेंस में बोल रहे थे. इसका आयोजन कल्चरल सेंटर और खुसरो फाउंडेशन ने संयुक्त रूप से किया था. इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में मुस्लिम वर्ल्ड लीड के महासचिव महासचिव डॉ. मोहम्मद बिन अब्दुल करीम अल-इस्सा ने भी अपने विचार रखे.

 
पीस कान्फ्रेंस में  अल-इस्सा के विचार पर प्रतिक्रिया देते हुए एनएसए अजीत डोभाल ने कहा कि उनका संदेश युवा दिमाग के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हमें भारत और सऊदी अरब के बीच मौजूद उत्कृष्ट संबंधों पर गर्व है.

डोभाल ने भारतीय संस्कृति की याद दिलाते हुए कहा कि एक गौरवशाली सभ्यतागत राष्ट्र के रूप में भारत समय की चुनौतियों से निपटने के लिए सहिष्णुता, संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने में विश्वास करता है.

एनएसए डोभाल ने विश्व शांति के लिए मुस्लिम वर्ल्ड लीग और इसके महासचिव डॉ. मोहम्मद बिन अब्दुल करीम अल इस्सा के कार्यों पर प्रकाश डाला और कहा कि ये अंतर-धार्मिक सद्भाव को प्रेरक ढंग से आगे बढ़ा रहे हैं.

डोभाल ने भारत और इस्लाम के गहरे रिश्ते को उजागर करते हुए कहा कि  पैगम्बर मुहम्मद साहब की महान पत्नी हजरत खदीजा को भारत के रेशमी और कश्मीरी शॉल पसंद थे.अजीत डोभाल ने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और लोकतंत्र की जननी है. यह अविश्वसनीय विविधता की भूमि है. उन्होंने कहा कि भारत संस्कृतियों, धर्मों और भाषाओं का एक मिश्रण है, जो सौहार्दपूर्वक सह-अस्तित्व में है.

उन्होंने कहा कि एक समावेशी लोकतंत्र के रूप में भारत अपने सभी नागरिकों को उनकी धार्मिक, जातीय या सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना स्थान प्रदान करने में सफलतापूर्वक कामयाब रहा है.उन्होंने कहा कि भारतीय मुस्लिम आबादी इस्लामिक सहयोग संगठन के 33 सदस्य देशों की संयुक्त आबादी के लगभग बराबर है.

उन्होंने कहा कि इस्लाम ने एक अनूठी समन्वयवादी परम्परा विकसित की है. उन्होंने हिंदू धर्म, इस्लाम,  के रिश्तों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत की गहरी आध्यात्मिक सामग्री लोगों को एकसाथ एक मंच पर लाई और एक-दूसरे के बारे में सामाजिक और बौद्धिक समझ विकसित करने में मदद की.

उन्होंने कहा कि भारत में इस्लाम ने शांति और सद्भाव की एक विशिष्ट और जीवंत अभिव्यक्ति को जन्म दिया है.

पवित्र कुरान का हवाला देते हुए अजीत डोभाल ने का कि यह विविध पृष्ठभूमि के लोगों के बीच एकता और समझ के महत्व पर जोर देता है. कुरान का संदेश आपसी परिचय और पहचान को सुगम बनाने के लिए है.

उन्होंने इतिहासकारों के हवाले से कहा कि भारत में एकता की शक्तिशाली सामाजिक अंतर धाराओं की सराहना करने की आवश्यकता है.

डॉ. अल-इस्सा को सभ्यतागत मेल-मिलाप के प्रवर्तक के रूप में पेश करते हुए उन्होंने कहा कि इस्लाम में सहयोग और संवाद का यह दर्शन सदियों से ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ यानी विश्व एक परिवार है, की प्राचीन हिंदू सभ्यता की परंपरा के साथ सहज रूप से आत्मसात हो गया है.

उन्होंने कहा कि भारत की आवास की स्थायी परंपरा इस बात का प्रमाण है कि भारत एक बहु-जातीय, बहु-धार्मिक और बहुभाषी समाज है.

एनएसए डोभाल ने एकता का संदेश देने के लिए स्वामी विवेकानंद के प्रसिद्ध भाषण का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि भारत उस समय सूफी पुनर्जागरण का पोषण कर रहा था, जब बगदाद के पतन के बाद इस्लाम खतरे में था.

अजीत डोभाल ने कहा कि असहमति का मतलब विघटन नहीं है. भारत सांस्कृतिक संलयन का एक उत्पाद है. आधुनिक भारत की इमारत समान अधिकारों, समान अवसरों और समान जिम्मेदारियों के सिद्धांतों पर बनी है.

उन्होंने कहा कि यह कोई संयोग नहीं है कि लगभग 200 मिलियन मुसलमानों के बावजूद, वैश्विक आतंकवाद में भारतीय नागरिकों की भागीदारी अविश्वसनीय रूप से कम रही है. उग्रवाद और वैश्विक आतंकवाद की चुनौती हमें अपनी सतर्कता कम न करने के लिए मजबूर करती है.

उन्होंने कहा कि हमारी सीमाओं के भीतर सुरक्षा और स्थिरता को बनाए रखने और परे सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए, भारत लड़ाई का नेतृत्व कर रहा है. ऐसे व्यक्तियों और संगठनों के खिलाफ लड़ाई, जो उग्रवाद, नशीले पदार्थों और आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं.

एनएसए डोभाल ने आतंकवाद निरोध की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए 1979 में मक्का में ग्रैंड मस्जिद पर हुए हमले को याद किया. उन्होंने कहा कि भारत भी कई दशकों से आतंकवाद का शिकार है. डोभाल ने कहा कि आतंक के खिलाफ युद्ध में, गंभीर उकसावों के बावजूद भी, भारत ने कानून के शासन, अपने नागरिकों के अधिकारों और मानवीय मूल्यों और अधिकारों की सुरक्षा को दृढ़ता से बरकरार रखा है.

अजीत डोभाल ने कहा कि भारत बेहद जिम्मेदार शक्ति है. जब आतंकवादियों के पनाहगाहों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जरूरत महसूस हुई, हम अपने राष्ट्रीय हित में आतंकवाद को नष्ट करने के लिए हर संभव प्रयास में जुट गए. आतंकवाद किसी धर्म से जुड़ा नहीं है. आध्यात्मिक नेताओं को चरमपंथियों का मुकाबला करने की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि हम भारत में संघर्ष से बचने और उसके शमन के लिए अनुसरण, संवाद और शांति के सिद्धांतों में विश्वास करते हैं.

उन्होंने कहा कि केवल राष्ट्रों, नागरिक समाजों, धर्मों और दुनिया के लोगों के बीच आपसी विश्वास और सहयोग से ही सभी नागरिकों के लिए सुरक्षा, स्थिरता, सतत विकास और सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित किया जा सकता है. जैसा कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं, ‘यह अब युद्ध का युग नहीं है.’