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बिलकिस बानो मामलाः सुप्रीम कोर्ट 11 दोषियों की सजा माफी के खिलाफ याचिकाओं पर 7 अगस्त से करेगा सुनवाई

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके करीबियों की हत्या करने वाले 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 7 अगस्त से अंतिम सुनवाई शुरू करेगा. 2002 के गोधरा दंगों के दौरान बिलकिस बानो के घर के सदस्यों के साथ ज्यादतियां की गई थीं.

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि मामले में दलीलें पूरी हो चुकी हैं. सभी दोषियों को नोटिस दिए जा चुके हैं. पीठ ने कहा कि जो पक्ष अपना जवाब, लिखित दलीलें, सारांश और तारीखों की सूची दाखिल करना चाहते हैं, वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं.

पीठ ने अपने आदेश में कहा, हम मामले को अंतिम सुनवाई के लिए 7 अगस्त को सूचीबद्ध कर रहे हैं. ऐसे में सभी पक्षों को संक्षिप्त लिखित दलीलें, सारांश और तारीखों की सूची दाखिल करनी चाहिए.उन्हांेने दोषियों को सजा माफी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना जवाबी हलफनामा दायर करने की भी अनुमति दी है.

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने उस दोषी के खिलाफ गुजराती और अंग्रेजी सहित स्थानीय समाचार पत्रों में नोटिस प्रकाशित करने का निर्देश दिया, जिसे नोटिस नहीं दिया जा सका है.बिलकिस बानो और अन्य ने 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है.

दोषियों की समय-समय पर रिहाई के खिलाफ याचिका दायर करने के अलावा, बानो ने अपने पहले के आदेश की समीक्षा के लिए समीक्षा याचिका भी दायर की है, जिसके द्वारा उसने गुजरात सरकार से दोषियों में से एक की रिहाई की याचिका पर विचार करने के लिए कहा है. मगर समीक्षा याचिका खारिज कर दी गई.

कुछ जनहित याचिकाएं दायर कर 11 दोषियों को दी गई छूट को रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई है.याचिकाएं नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन द्वारा दायर की गई है, जिसकी महासचिव एनी राजा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की सदस्य सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लौल, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा और टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा हैं.

गुजरात सरकार ने अपने हलफनामे में दोषियों को दी गई छूट का बचाव करते हुए कहा है कि उन्होंने जेल में 14 साल की सजा पूरी कर ली है. इस बी च उनका व्यवहार अच्छा पाया गया.राज्य सरकार ने कहा कि उसने 1992 की नीति के अनुसार सभी 11 दोषियों के मामलों पर विचार किया है और 10 अगस्त, 2022 को छूट दी गई. केंद्र सरकार ने भी दोषियों की रिहाई को मंजूरी दे दी.

ध्यान रहे कि आजादी का अमृत महोत्सव के जश्न के हिस्से के रूप में कैदियों को छूट देने वाले परिपत्र के तहत छूट नहीं दी गई है.हलफनामे में कहा गया, राज्य सरकार ने सभी की राय पर विचार किया और 11 कैदियों को रिहा करने का फैसला किया. उन्होंने जेलों में 14 साल और उससे अधिक की सजा पूरी कर ली है. उनका व्यवहार अच्छा पाया गया है.

सरकार ने उन याचिकाकर्ताओं के अधिकार क्षेत्र पर भी सवाल उठाया , जिन्होंने फैसले को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की है. कहा कि वे इस मामले में बाहरी व्यक्ति हैं.

याचिकाओं में कहा गया है कि उन्होंने गुजरात सरकार के सक्षम प्राधिकारी के आदेश को चुनौती दी है, जिसके तहत गुजरात में किए गए जघन्य अपराधों के एक सेट में आरोपी 11 लोगों को सजा माफी के अनुसार 15 अगस्त, 2022 को रिहा कर दिया गया था. याचिका में कहा गया है कि इस जघन्य मामले में छूट पूरी तरह से सार्वजनिक हित के खिलाफ है. यह पूरी तरह से पीड़िता (जिसके परिवार ने सार्वजनिक रूप से उसकी सुरक्षा के लिए चिंताजनक बयान दिए हैं) के हितों के खिलाफ होगा.

गुजरात सरकार ने आजीवन कारावास की सजा पाए 11 दोषियों को 15 अगस्त को रिहा कर दिया था. मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए सभी 11 दोषियों को 2008 में उनकी सजा के समय गुजरात में प्रचलित छूट नीति के अनुसार रिहा किया गया था.

मार्च 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के दौरान, बानो के साथ कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया गया और उसकी तीन साल की बेटी सहित उसके परिवार के 14 सदस्यों को मरने के लिए छोड़ दिया गया. जब दंगाइयों ने वडोदरा में उनके परिवार पर हमला किया तब बिलकिस बानो पांच महीने की गर्भवती थी.