क्या है याम-ए-आशूरा, क्यों महत्वपूर्ण है मुहर्रम का यह दिन ?
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो स्पेशन
आम तौर से यौम-ए-आशूरा को शिया, मातम, अलम और ताजिया से जोड़कर देखा जाता है. हालांकि इस्लामिक इतिहास इसके अलावा भी बहुत कुछ कहता है, जिसके बारे में लोगों को न केवल कम जानकारी रखते हैं, बल्कि इन घटनाओं का कुछ खास जिक्र भी नहीं किया जाता है.
इस भ्रम को तोड़ने और लोगांे की जानकारियां बढ़ाने के लिए यह लेख छापा जा रहा है. इसमें मुहर्रम और यौम-ए-आशूरा के उन पहलुओं को साझा किया जा रहा है जिनके बारे में आम तौर से चर्चाएं न के बराबर होती हैं. सबसे पहले बता दूं कि मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है.
क़ुरआने करीम में अल्लाह ताला ने महीनों की तादाद 12 बयान फरमाई है, जिनमें से 4 महीने हुरमत(जिन महीनों में जंग करना मना है) वाले हैं और इन 4 महीनों में एक नाम मुहर्रम है. इसी महीने में आता है यौम-ए-आशूरा.
यौम-ए-आशूरा
यौम-ए-आशूरा यानी मोहर्रम महीने की 10 (दस) तारीख.‘यौम-ए-आशूरा’ सभी मुसलमानों के लिए बेहद अहम् दिन है. इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से ‘आशूरा’ या मुहर्रम के 10वें दिन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे हजरत इमाम हुसैन शहादी हुए थे. साल 680 ईस्वी में हजरत इमाम हुसैन और उनके साथी कर्बला के मैदान में शहीद कर दिए गए थे. इस्लामी कैलेंडर के हिसाब से मुहर्रम साल का पहला महीना है. हदीसों में है कि आशूरा के दिन जो शख्स अल्लाह की इबादत करता है उसे बहुत बड़ा अजर मिलता है.
आशूरा से रिवायत और रोजा
हजरत इब्ने अब्बास रजि अल्लाह ताला अनु से रिवायत है कि रसूले हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने कहा है, मुहर्रम में रोजा रखने वाले को हर रोजे के बदले 30 रोजों का सवाब मिलता है.
सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने कहा है जो शख्स मुहर्रम में आशूरा के दिन रोजा रखेगा उसे 10,000 शहीदों और 10,000 हाजियों का सवाब मिलता है. इस रोज जो किसी यतीम के सर पर मोहब्बत का हाथ रखेगा उसे इसके सिर के बालों के बराबर जन्नत में ऊंचा मुकाम मिलेगा. जो इस रात में किसी मोमिन को खाना खिलाएगो वह ऐसा है जैसे उसने पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तमाम उम्मत को खाना खिलाया है.
क्या यौम-ए-आशूरा सब दिनों पर अव्वल है ?
सहाबा किराम रजि0 अल्लाह ताला अनु ने अर्ज किया कि या रसूल अल्लाह क्या यौम-ए-आशूरा को अल्लाह ताला ने सब दिनों पर अव्वल बताया है. इसपर पैगंबर मोहम्मद साहब ने जवाब दिया, हां क्योंकि अल्लाह ताला ने इसी दिन आसमानो, पहाड़ों, नदियों, और लोहे कलम को पैदा किया.हजरत आदम अलैहिस्सलाम इसी दिन पैदा हुए और इसी दिन जन्नत में भेजे गए.हजरत इब्ने अब्बास रजि अल्लाहु ताला अन्हु से रिवायत है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जो आशूरा के दिन रोजा रखे और रात भर जागे उसको को 60 साल की इबादत का सवाब मिलता है और अगर कोई इस दिन सिर्फ रोजा रखे तो सात आसमानों के आदमियों के बराबर उसे सवाब मिलता है.
यौम-ए-आशूरा और बीमारी में लाभ
आशूरा की बरकत के बारे में कहा गया है कि जो शख्स इस दिन ग़ुस्ल करे वह बीमार नहीं होता. मगर मौत से नहीं बच सकता. यह भी कहा गया है कि यौम-ए-आशूरा के दिन सुरमा लगाने पर आंखें पूरा साल नहीं दुखतीं. इसी तरह इस दिन किसी बीमार की इयादत के लिए जााने पर उसे सारी मखलूक की अयादत का सवाब मिलता है. यह भी रवायत है कि जो इस रोज किसी को एक गिलास शरबत पिलाएगा उसे इतना सवाब मिलेगा जैसे उसने एक एक लम्हे के लिए भी अल्लाह की इबादत से कोताही नहीं की.
यौम-ए-आशूरा और नमाज
हदीस है कि जो शख्स इस रोज 4 रकात नमाज पढ़े और हर रकत में एक बार सूरह फातिहा, 50 बार सूरह इखलास पढ़ेगा, उसके पहले और बाद के 50 साल के गुनाह माफ किए जाएंगे.इसके लिए नूर के 50 महल बनाए जाते हैं.
यौम-ए-आशूरा के दिन नमाज पढ़ने का जो तरीका बताया गया है वह इस तरह है. 4 रकात नमाज होगी. हर 2 रकात के बाद सलाम फेरे जाएंगे. हर रकत में एक बार सूरह फातिहा और एक बार सूरह इजाजुल जिला तिल और एक बार सूरह काफिरून पढ़नी होगी. 4 रकात के बाद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दरूद भेजें. इस तरह अपनी नमाज मुकम्मल करें. खूब दुआ मांगे.
हजरत अबू हुरैरा रजि अल्लाह ताला अन्हु फरमाते हैं कि पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया बनी इसराइल पर पूरे साल में सिर्फ एक रोजा फर्ज किया गया था.वह आशूरा का रोजा था, जो मोहर्रम की 10वीं तारीख है.यह बहुत अहम दिन है. सब मुसलमानों को इस दिन रोजा रखना चाहिए और अपने घर वालों के बारे में खाने पीने की चीजों में फराख दिली से काम ले लेना चाहिए. अल्लाह ताला इस दिन पूरे साल भर रिस्क में बरकत अता फरमाता है. इस दिन का रोजा रखने वाले को 40 साल का कफारा दिया जाता है. यानी 40 साल के गुनाह उसके माफ हो जाते हैं.
हजरत आयशा रज़ियल्लाहु ताला अन्हु से रिवायत है कि ज़माने जाहिलियत में कुरैश भी आशूरा के दिन रोजा रखा करते थे. पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी मक्के में रोजा रखा करते थे. जब वो मदीना गए तो उन्होंने ने यहूदियों से आशूरा के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा इस रोज हजरत मूसा अलैहिस्सलाम और उनकी कौम को फिरऔन और उनकी कौम पर फतह हासिल हुई थी. इसीलिए ये दिन बड़ी अजमत का दिन है . हम इस दिन रोजा रखते हैं. यह सुनकर पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जिस तरह तुम लोग मूसा अलैहिस्सलाम के हकदार हो, उससे ज्यादा हम इन के हकदार हैं. फिर आपने अपनी उम्मत को आशूरा के दिन रोजा रखने का हुक्म दिया.
आशूरा क्यों कहा जाता है ?
बुजुर्गों का कहना है कि आशूरा के दिन को “आशूरा ” नाम इसलिए दिया गया कि इस रोज अल्लाह ताला ने 10 नबियों को 10 करामाते बख्शी और उन्हें इनाम से नवाजा. इस दिन हजरत आदम अलैहिस्सलाम की तौबा कुबूल की गई . इसी दिन हजरत इदरीस अलैहिस्सलाम को बुलंद दर्जे तक पहुंचाया गया. इस दिन हजरत नूह अलाहिस्सल्लम की कश्ती पहाड़ी से टकराई थी.
आशूरा के दिन हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम पैदा हुए थे. आशूरा के दिन ही अल्लाह ताला ने अपना दोस्त हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को बनाया. इस खास दिन हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को नमरूद की आग से निजात मिली. आशूरा के दिन हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम की तौबा कुबूल हुई और आशूरा के दिन हजरत सुलेमान अलैहिस्सलाम के हाथ से निकला हुआ मुल्क इसी दिन उन्हें फिर दोबारा मिला. आशूरा के दिन हजरत अयूब अलैहिस्सलाम ने बीमारी से शिफा पाई. इसी दिन हजरत मूसा अलैहिस्सलाम नील नदी से पार हो गए और फिरौन अपनी कौम समेत नदी में डूब गया. आशूरा के दिन हजरत यूनुस अलैहिस्सलाम को मछली ने पेट से बाहर निकाला, आशूरा के दिन हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को दुनिया से आसमान तक ले जाया गया.
यौम-ए-आशूरा को लेकर अलग-अलग तर्क
शिया समुदाय आशूरा के दिन को मातम का दिन कहता है. उनकी नजरों में इस दिन रोने धोने और मातम करने को अच्छा समझा जाता है. इस बारे में सुन्नियों का तर्क है कि अगर हजरत इमाम हुसैन रजि अल्लाहु ताला अन्हु की शहादत के दिन को मुसीबत का दिन शुमार किया जाए तो इस दिन से भी ज्यादा गमजदा दिन वह है जिस दिन पैगंबर मोहम्मद सल्ला वसल्लम ने वफात पाई.फिर भी इस्लाम ने इस दिन को गम मानने की इजाजत नहीं दी. अगर आशूरा के दिन मातम करना जायज होता तो सहाबा किराम भी ऐसा करते. इसे जारी रखते. वह इस काम के ज्यादा करते. मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया. आशूरा के दिन आने पर वह अपने घर वालों पर दिल खोल कर खर्च किया करते थे और रोजा रखा करते थे.
इनपुट: दीन की बात डाॅट काॅम pcs : cut : basit zargar