जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द ने कहा- नफरती माहौल देश के लिए नुकसानदायक
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
मणिपुर में विभिन्न जातीय समूहों के बीच अनसुलझे ऐतिहासिक तनाव के परिणामस्वरूप लगभग तीन महीने से चल रही लंबी हिंसा मानवता की नई गिरावट का संकेत देती है और राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर शासन की घोर विफलता को उजागर करती है.
जमाअत का दृढ़ विश्वास है कि सरकार की ओर से उचित समय पर और सक्रिय कार्रवाई से हिंसा को बढ़ने से रोका जा सकता था और कई कीमती जानें बचाई जा सकती थीं. मणिपुर में हिंसा कई मुद्दों को उजागर करती है जिनका इस देश के अल्पसंख्यक सामना कर रहे हैं.
ये बातें जमाअत इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने जमाअत के मासिक कांफ्रेंस में कहीं. उनहोंने कहा कि इस निरंतर अल्पसंख्यक विरोधी घृणा अभियान के कारण “जातिय संहार” के प्रयास हुए और हजारों नागरिकों को अपने ही देश में शरणार्थी बना दिया गया. यह अंधराष्ट्रवादी मानसिकता सोशल मीडिया और मुख्यधारा के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर आईटी कोशिकाओं द्वारा फैलाए जा रहे अथक मीडिया आख्यानों का एक उत्पाद है.
जमाअत-ए-इस्लामी हिंद मणिपुर में हिंसा के संबंध में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप की सराहना करती है और मांग करती है कि केंद्र सरकार मणिपुर में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए तुरंत पर्याप्त कदम उठाए.
जमाअत -ए-इस्लामी हिन्द के मुख्यालय में आयोजित कांफ्रेंस को सम्बोधित करते हुए जमाअत के उपाध्यक्ष मालिक मोतासिम खान ने कहा कि भारतीय रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) कांस्टेबल द्वारा चलती ट्रेन में मुस्लिम समुदाय के तीन नागरिकों और आरपीएफ के एक अधिकारी की निर्मम और लक्षित हत्या एक घृणा अपराध था जिसमें आरोपियों ने मुस्लिम जैसे दिखने वाले यात्रियों की तलाश की और उन्हें बेरहमी से गोली मार दी.
हमारे सत्ता केंद्रों की ऊपरी टोली से आ रहे कट्टरपंथ और ध्रुवीकरण के कारण यह दुखद स्थिति पैदा हुई है. किसी विशेष समुदाय के खिलाफ कट्टरपंथ के किसी भी आरोप को दूर करने के लिए अपराधियों को मानसिक रोगी क़रार देना मानक संचालन प्रक्रिया बन गई है. हत्या के बाद आरोपियों द्वारा प्रधानमंत्री और यूपी के मुख्यमंत्री की तारीफ करने की खबरें बेहद परेशान करने वाली और नुकसानदेह हैं. जमाअत का दृढ़ता से मानना है कि मुख्यधारा मीडिया द्वारा लगातार नफरत फैलाना ही इस समस्या की जड़ है.
जमाअत पीड़ितों के परिवारों के लिए मुआवजे, परिजनों के लिए उपयुक्त रोजगार, घटना की स्वतंत्र उच्च स्तरीय न्यायिक जांच और दोषियों को सजा देने की मांग करती है.
कांफ्रेंस को सम्बोधित करते हुए जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के राष्ट्रीय सचिव मौलाना शफी मदनी ने कहा कि हरियाणा में भड़की सांप्रदायिक हिंसा आत्मघाती और हिंसक है. जमाअत मामले की तत्काल उच्च स्तरीय जांच और पूर्व खुफिया जानकारी के बावजूद नागरिकों की सुरक्षा करने में विफल पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करती है.
जमाअत हिंसा के लिए जिम्मेदार वास्तविक दोषियों को पकड़ने के बजाय मुस्लिम युवाओं की पक्षपातपूर्ण गिरफ्तारियों पर भी चिंता व्यक्त करती है. स्थिति का जायजा लेने के लिए राष्ट्रीय सचिव मौलाना शफी मदनी के नेतृत्व में जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के एक प्रतिनिधिमंडल ने गुरुग्राम की पुलिस आयुक्त से मुलाकात की.
प्रतिनिधिमंडल को बताया गया कि सोशल मीडिया प्रचार के कारण हिंसा में वृद्धि हुई और पुलिस बल स्थिति को पर्याप्त रूप से संभाल ने में नाकाम रही. दंडमुक्ति के माहौल ने भी आग में घी डालने का काम किया क्योंकि हिंसा में शामिल असामाजिक तत्वों को यह आश्वासन मिला हुआ है कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी.उन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है.
हिंसा से प्रभावित लोगों और आसपास के इलाकों में डर का माहौल है। पुलिस और प्रशासन को लोगों को आश्वस्त करना चाहिए कि किसी को भी कानून हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जाएगी और हिंसा भड़काने वाले असामाजिक तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.
जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की महिला विंग की राष्ट्रीय सचिव रहमतुन्निसा ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा संकलित रिपोर्ट पर गंभीर चिंता व्यक्त की.कांफ्रेंस को बताया कि 2019 से 2021 तक देश भर में 13.13 लाख से अधिक लड़कियां और महिलाएं आश्चर्यजनक रूप से लापता हो गई. लापता महिलाओं की सबसे अधिक संख्या मध्य प्रदेश में है, लगभग दो लाख महिलाओं के लापता होने की सूचना है, इसके बाद पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर का स्थान है.
ऐसा प्रतीत होता है कि “बेटी बचाओ” का आह्वान चुनावी नारा बन कर रह गया है. सरकार द्वारा आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 जैसी विभिन्न पहल जो 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के बलात्कार के लिए मृत्युदंड सहित अधिक कठोर दंड लगाता है, वांछित प्रभाव नहीं पड़ रहा है। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद का मानना है कि महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों को रोकने का सबसे अच्छा तरीका नैतिकता और नैतिकता पर आधारित समाज का विकास करना है.
केवल वही समाज जो महिलाओं की गरिमा का सम्मान करता है, शील और शालीनता को बढ़ावा देता है और अश्लीलता को हतोत्साहित करता है. महिलाओं को उनके उचित अधिकार मिलने चाहिए और सशक्त होना चाहिए, लेकिन उनकी विनम्रता और विशिष्ट भूमिका की कीमत पर नहीं.