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असम के मुख्यमंत्री सरमा खुद ही थपथपा रहे अपनी पीठ, दावा- बहुविवाह पर प्रतिबंध को जनता का समर्थन

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,गुवाहाटी

मदरसे, मस्जिदों पर कार्रवाई हो या अतिक्रमण हटाने के नाम पर किसी मुसलमान को गोली का निशाना बनाना, असम के मुख्यमंत्री ऐसे मुस्लिम विरोधी कार्रवाई के समर्थन में तुरंत खड़े हो जाते हैं. ऐसा ही एक मामला फिर सामने है. बहुविवाह के नाम पर मुसलमानों के खिलाफ रची जा रही बहुतरचना को लेकर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने शनिवार को दावा किया कि राज्य में इसपर प्रतिबंध लगाने को जनता का भरपूर समर्थन मिल रहा है.

सरमा ने ऐसी ही बयान बालविवाह के नाम पर दर्जनों मुसलमानों को सलाखांे के पीछे भेजने के बाद दिया था. इसके चलते एक महिला ने आत्महत्या कर दी थी. अब पर्सनल लाॅ में टांग अड़ाने के लिए राज्य सरकार ने असम में बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून लाने की कार्रवाई शुरू कर दी है. इसके अध्ययन के नाम पर अपने समर्थकों को समिति में जगह दी गई, जिसकी रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई है.

रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद राज्य विधानसभा में विधेयक लाने से पहले सरकार द्वारा जनता की राय मांगी गई थी.सरमा ने एक्‍स पर कहा, “हमें अपने सार्वजनिक नोटिस के जवाब में कुल 149 सुझाव मिले हैं. इनमें से 146 सुझाव विधेयक के पक्ष में हैं, जो मजबूत जनसमर्थन का संकेत है. हालाकि, तीन संगठनों ने विधेयक पर अपना विरोध जताया है.

उन्होंने कहा, अब हम प्रक्रिया के अगले चरण पर आगे बढ़ेंगे, जिसमें अगले 45 दिन में विधेयक का अंतिम मसौदा तैयार कर लिया जाएगा.विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारतीय संविधान संघ और राज्यों को विशिष्ट मुद्दों पर कानून बनाने की शक्ति देता है. यहां सरकार की ईमानदारी को लेकर सवाल यह उठता है कि समिति में किन लोगों को किसी विचार धारा के लोगों को शामिल किया गया है, इसे भी सार्वजनिक किया जाए.

सरमा सरकार का कहना है कि विवाह समवर्ती सूची में है, इसलिए संघीय सरकार और राज्य दोनों इसे नियंत्रित करने वाले कानून स्थापित कर सकते हैं. समिति के निष्कर्षों के अनुसार, विरोध के सिद्धांत (अनुच्छेद 254) में कहा गया है कि यदि राज्य का कानून केंद्रीय कानून के साथ संघर्ष करता है, तो केंद्रीय कानून को प्राथमिकता दी जाएगी, जब तक कि राज्य के कानून को भारत के राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी न मिल जाए.

साथ ही रिपोर्ट में कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 धार्मिक स्वतंत्रता और अंतरात्मा की स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं. ये अधिकार अहस्तांतरणीय नहीं हैं. बल्कि, वे सामाजिक कल्याण और सुधार के साथ सार्वजनिक नैतिकता, स्वास्थ्य और व्यवस्था को नियंत्रित करने वाले कानूनों द्वारा बाधित हैं.

समिति ने रिपोर्ट में कहा, “इस्लाम के संबंध में अदालतों ने माना है कि एक से अधिक पत्नियां रखना धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. पत्नियों की संख्या सीमित करने वाला कानून धर्म का पालन करने के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करता है. यह सामाजिक कल्याण और सुधार के दायरे में है. इसलिए, एकपत्नीत्व का समर्थन करने वाले कानून अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं करते हैं.”

समिति ने सिफारिश की कि असम सरकार को बहुविवाह को गैरकानूनी घोषित करने वाले राज्य विधानमंडल को पारित करने का कानूनी अधिकार दिया जाना चाहिए.दरअसल, असम सरकार की यह कार्रवाई यूसीसी को लेकर है. यदि इसकी नियत मुसलमानों को लेकर साफ होती तो आदिवासियों को लेकर स्थिति जरूर स्पष्ट करती.