CAA / NRC मुसलमानों को कोसने वाले फैज खान ‘सांप्रदायिक सौहार्द’ बढ़ाने निकले अयोध्या
ब्यूरो रिपोर्ट।
आप मुसलमान हैं। तुलसी, कबीर को पढ़ा है। आपकी रूचि गो सेवा में है। राम की बात करते हैं। राम और गोकथा करते हैं, तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। रहीम, रसखान इसके उदाहरण हैं। अल्लामा इकबाल भी भगवान राम की प्रशंसा में लिखी अपनी कविता में उन्हें ‘ इमाम-ए-हिंद’ बता चुके हैं। मगर इसकी आड़ में यदि आप किसी को गरियाते हैं। किसी कौम को बुरा-भला कहनेे के लिए राजनीतिक मंच का इस्तेमाल करते हैं। इसका अर्थ है आपकी नियत में खोट है। ऐसे ही लोगों में शामिल हैं छत्तीसगढ़ नया पारा के मोहम्मद फैज खान। भारतीय जनता पार्टी के मंच से संशोधित नागरिकता कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी #सीएए_एनआरसी का विरोध करने वालों को देशद्रोही बताने वाले फैज इन दिनों देश में ‘सांप्रदायिक सौहार्द’ मजबूत करने को छत्तीसगढ़ के कौशलया मंदिर से मिट्टी लेकर अयोध्या की पद यात्रा पर हैं। उनकी मानें तो इस मिट्टी को #अयोध्या केराम मंदिर #भूमिपूजन पर भेंट करने से देश में भाईचारा बढ़ेगा। भूमिपूजन 5 अगस्त को प्रस्तावित है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक द्वारा पोषित शिशु मंदिर से स्कूली शिक्षा प्राप्त फैज खान का कहना है कि भगवान राम की माता कौशलया छत्तीसगढ़ की थीं। यह प्रदेश राम जी का ननिहाल है। छत्तीसगढ़ के लोग माता कौशलया को बहन मानते हैं। वह कहते हैं, ‘‘आप पूजा पद्धति से चाहे सनातनी हों, सिख, ईसाई या मुसलमान, पर हम पूर्वजों से सनातनी हैं। हम हिंदू हैं। भगवान रामचंद्र हम सबके पूर्वज हैं।’’ मगर अच्छी-अच्छी बात करने वाले फैज खान को जब मुसलमानों को गरियाने का मौका मिलता है, तो सारी हदें पार कर जाते हैं। वह यह भी नहीं देखते कि दो वर्षों तक छत्तीसगढ़ के सूरजपुर डिग्री कॉलेज के प्रवक्ता रहे हैं और छात्र आज भी उनका अनुशरण करते होंगे। भाजपा का मंच मिल जाए तो पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी, अभिनेता नसीरूद्दीन शाह, आमिर खान, ऐजाज खान को ‘रे-ते’ करने से भी नहीं चूकते। उनकी नजरों में देश की किसी समस्या को लेकर आवाज बुलंद करना झूठ है। वह यह भी नहीं मानते कि मुसलमानों के साथ मॉबलिंचिंग हुई या होती है। उनका कहना है कि इस देश के हिंदुओं को मुसलमानों से आपत्ति नहीं, सद्दाम की मानसिकता से नफरत है।
किसी भी मुददे पर आम सहमति नहीं बन सकती। मगर उनकी नजरों में सीएए और सीएए का विरोध करने वाले ‘शैतान और कमअक्ल हैं।’ वह कहते हैं कि मायावती, कन्हैया कुमार जैसे लोग संशोधित नागरिकता कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से आने वाले दलितों की राह का रोड़ा बने हुए हैं। सीएए और एनआरसी के समर्थन में रायपुर में आयोजित एक जनसभा में उन्होंने मुसलमानों को जी भर कर कोसा था। उनके भाषण का 8 मिनट 11 सेकंड का वीडियो सोशल मीडिया पर आज भी है, जिसमें वह कहते दिखाई दे रहे हैं कि शाहीनबाग में सीएए के विरोध में आयोजित धरना प्रदर्शन में पीएफआई और आईएस आई से फंडिंग हुई। वह आंदोलनकारियों से आज भी जानना चाहते हैं कि शाहीनबाग के आंदोलन में शामिल लोगों को बिरयानी परोसने के लिए पैसे कहां से आए ?
ऐसे में फैज खान की नियत पर सवाल उठना लाज़मी है। लोग उनके भाषणों के आधार पर यह जानना चाहते हैं कि किसी खास राजनीतिक मंच से इस तरह की बोली बोलने के लिए उन्हें कौन प्रेरित करता है ? उन्हें फंडिंग कौन कर रहा है ? फैज खान कहते हैं कि 2012 में गिरीश पंकज का उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथ’ पढ़कर इस कदर प्रेरित हुए कि गो सेवा में जीवन अर्पित कर दिया। गो रक्षा के लिए वह 20 जून 2017 को कन्याकुमारी से रायपुर तक 14 हजार किलोमीटर की पद यात्रा कर चुके हैं। नौकरी छोड़ने के बाद गेरूआ वस्त्र धारक और खुद को फकीर-संत कहने वाले फैज खान कहते हैं कि उन्होंने बुद्ध और गुरू नानक को पढ़ा है। अब उन्हें कौन समझाए कि जिन गुरूओं की वह बात कर रहे हैं। सियासी मंचों से भाषण नहीं दिया करते थे। न ही किसी धर्म को बुरा-भला कहते थे। ऐसे में क्या यह मान लिया जाए कि आपकी रूहानी शिक्षा अधूरी रह गई या सौहार्द का गेरूआ वस्त्र धारण कर कोई राजनीतिक खेल खेल रहे हैं ?
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संपादक