TOP STORIESUncategorized

कश्मीर के हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक 4 साल बाद रिहा

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, श्रीनगर

केंद्र सरकार ने चार साल से अधिक समय तक नजरबंदी के बाद शुक्रवार को कश्मीरी प्रमुख मौलवी और हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक को रिहा कर दिया. उन्होंनेे जामा मस्जिद में जुमे की नमाज में इमामत भी की.राॅयटर्स की एक खबर में कहा गया है, केंद्र सरकार ने 2019 में कश्मीर की संवैधानिक अर्ध-स्वायत्तता को रद्द कर दिया था और संघीय शासन लागू कर दिया था, उसी समय 50 वर्षीय हुर्रियत नेता को अन्य राजनीतिक नेताओं और हजारों लोगों के साथ हिरासत में लिया गया था.

विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए केंद्र ने इस क्षेत्र में अपने सशस्त्र बलों को बढ़ा दिया, जिसके बाद एक महीने तक इंटरनेट बंद रहा.अधिकांश बंदियों को बाद में रिहा कर दिया गया, लेकिन मीरवाइज श्रीनगर में अपनी जामिया मस्जिद वाली सड़क से नीचे अपने आवास को छोड़ने में असमर्थ रहे. उन्हें वहीं नजरबंद कर दिया गया.

218 सप्ताह में पहली बार उन्हें शुक्रवार की नमाज अदा करते देखने के लिए हजारों श्रद्धालु एकत्र हुए. महिलाओं ने उन पर मिठाइयां बरसाईं और 14वीं सदी की इमारत के चारों ओर धार्मिक नारे गूंज रहे.पिछले हफ्ते, एक अदालत ने अधिकारियों से उनकी निरंतर हिरासत के बारे में स्पष्टीकरण मांगा और उन्होंने भीड़ को बताया कि पुलिस ने उन्हें गुरुवार को सूचित किया कि अधिकारियों ने उन्हें रिहा करने का फैसला किया है.

उन्होंने रोते हुए कहा, मेरे पिता की मृत्यु के बाद से मेरी नजरबंदी और अपने लोगों से अलग होने की यह अवधि मेरे लिए सबसे दर्दनाक रही है.कहते हैं जामिया मस्जिद ऐतिहासिक रूप से अलगाववादी राजनीति और भारत विरोधी प्रदर्शनों का केंद्र रही है.

उन्हांेने कहा,अल्लाह ने चाहा, तो आप सोचेंगे कि हमारी आत्मा नीची है. नहीं, हमारी भावना ऊंची है. खबर में दावा किया गया है कि मीरवाइज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदू राष्ट्रवादी सरकार द्वारा संवैधानिक बदलावों को श्अस्वीकार्य बताया है.

उन्होंने कहा,विवादों और असहमतियों को शक्ति या एकतरफावाद के प्रयोग के बजाय बातचीत से हल किया जाना चाहिए. उन्होंने कई राजनीतिक कैदियों की रिहाई का आह्वान किया. न्यूज पोर्टल आवाज द वाॅयस ने अपनी एक खबर में दावा किया है कि मीरवाइज ने कश्मीरी पंडितों की वापसी के प्रति इच्छा जताई है.

कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित होकर रह गया है. दोनों देश हिमालयी क्षेत्र पर पूरा दावा करते हैं और इस पर दो युद्ध लड़ चुके हैं.1989 में शुरू हुए एक हिंसक विद्रोह में भारतीय सैनिकों, आतंकवादियों और नागरिकों सहित हजारों लोग मारे गए थे.

शुक्रवार को मस्जिद के आसपास आतंकवाद विरोधी पुलिस और कमांडो सहित भारी सुरक्षा तैनात की गई थी.नियमित नमाजी बशीर अहमद ने दुआ के बाद एएफपी को बताया, हमारे प्रिय और हमारी आशा के राजा इतने लंबे समय के बाद इस मस्जिद में लौट आए हैं.मैं खुशी से कैसे नहीं रो सकता? नए नियम लागू होने के बाद से, अधिकारियों ने मीडिया की स्वतंत्रता और सार्वजनिक विरोध प्रदर्शनों पर अंकुश लगा दिया है.

क्षेत्र में शांति और समृद्धि लाने के उद्देश्य से उठाए गए कदमों के चलते देश के अन्य हिस्से के लोग अब यहां भूमि खरीद सकते हैं. सरकारी नौकरियों पर दावा कर सकते हैं. दूसरी तरफ अभी भी कश्मीर में हिंसा का दौर थमा नहीं है. एक आंड़े के अनुसार हाल के महीनों में हिंसा में आठ सुरक्षाकर्मियों सहित कम से कम 14 लोगों की मौत हो चुकी है.