मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023: मुसलमानों को कांग्रेस का ठेंगा, पसमांदा की वकालत करने वाली बीजेपी ने भी मुंह मोड़ा
गुलाम कादिर,भोपाल
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने के बाद राजनीतिक दलों के बीच शतरंज का खेल जारी है. दो सौ तीस सदस्यीय विधानसभा के लिए बीजेपी ने अपनी तीन लिस्ट जारी किए , जिसमें एक सौ छत्तीस उम्मीदवारों के नामों की घोषणा हो चुकी है और बाकी बचे उम्मीदवारों के नामों पर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के बीच चर्चा चल रही है. वहीं, काफी विचार-विमर्श के बाद कांग्रेस ने आज अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी करते हुए एक सौ चवालीस उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी है. कांग्रेस की सूची में सामान्य वर्ग से सैंतालीस, ओबीसी से उनतालीस, एससी से बाईस, एसटी से तीस, पांच जैन, उन्नीस महिला और एक मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारा गया है.
बीजेपी की ओर से अब तक एक सौ छत्तीस उम्मीदवारों की घोषणा की जा चुकी है, लेकिन किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया गया है. कांग्रेस नेतृत्व ने कभी भोपाल मध्य से कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद पर भरोसा किया और उन्हें उसी भोपाल मध्य सीट से उम्मीदवार बनाया, जहां से उन्होंने 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी नेता सुरेंद्र सिंह मामा को हराया था. बीजेपी ने भोपाल सीट से ध्रोनारायण सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है.
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम नेतृत्व का पतन नब्बे के दशक से शुरू हो गया है. वरना अस्सी के दशक में इसी मध्य प्रदेश से विधानसभा के सोलह सदस्य हुआ करते थे. कहा जा सकता है कि बीजेपी और कांग्रेस दो अलग-अलग पार्टियां हैं और दोनों की अपनी-अपनी विचारधाराएं हैं, लेकिन मुस्लिम नेतृत्व के प्रतिनिधित्व के मामले में दोनों का एक जैसा विचार है.जिस कांग्रेस पार्टी के कभी मध्य प्रदेश में सोलह मुस्लिम विधायक थे, अब उसी मध्य प्रदेश में कांग्रेस एक मुस्लिम उम्मीदवार को छह टिकट भी देने को तैयार नहीं.
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने तीन मुस्लिम उम्मीदवारों आरिफ अकील, आरिफ मसूद और मुसरत शाहिद को टिकट दिया था, जबकि बीजेपी ने भोपाल से मुस्लिम उम्मीदवार फातिमा रसूल को मैदान में उतारा था, लेकिन आरिफ अकील और आरिफ मसूद ही विधानसभा में रह सके. बीजेपी प्रत्याशी फातिमा रसूल और कांग्रेस प्रत्याशी मुसरत शाहिद को हार का सामना करना पड़ा. लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में सूबे का माहौल देखकर ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस दो से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारेगी और बीजेपी से मुस्लिम समुदाय को निराशा हुई है.
यहां तक पसमांदा की वकालत करने वाले पीएम मोदी से लेकर भाजपा नेतृत्व तक ने टिकट बटवारे में इस समुदाय का कोई ख्याल नहीं रखा है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. अजीज कुरैशी ने कहा कि मैं कांग्रेस के साथ हूं लेकिन कांग्रेस अल्पसंख्यक वर्ग के साथ नहीं है. अब अल्पसंख्यक वर्ग को अपने अधिकारों के प्रति जागना होगा. कांग्रेस ने आज अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है. आप खुद देख सकते हैं कि एक सौ चैवालीस उम्मीदवारों में सैंतालीस सामान्य वर्ग, उनचास ओबीसी, बाईस एससी, तीस एसटी, पांच जैन समुदाय, उन्नीस महिलाएं और केवल एक मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारा गया है. कांग्रेस नेतृत्व को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना होगा. अगर अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया तो पार्टी को चुनाव में इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा.
वहीं, जब बीजेपी प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा से अल्पसंख्यक वर्ग के नेतृत्व को लेकर बात की तो उन्होंने कहा कि जाति और धर्म की राजनीति करना कांग्रेस का काम है. बीजेपी का नहीं. भाजपा जो भी नीति बनाती है वह सभी वर्गों के लिए बनाती है. भाजपा ने लाड़ली लक्ष्मी योजना बनाई, कन्यादान योजना से सभी को लाभ हुआ. अगर अल्पसंख्यक समुदाय का कोई उम्मीदवार जीत सकता है तो पार्टी उसके नाम पर जरूर विचार करेगी.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस हम पर भेद भाव का आरोप नहीं लगा सकती. बीजेपी ने पिछले पांच साल में दो मुस्लिम नेताओं एमजे अकबर और नजमा हेपतुल्ला को एमपी से राज्यसभा भेजा है. कांग्रेस और कमलनाथ बताएं कि उन्हें अल्पसंख्यक समुदाय का शत-प्रतिशत वोट चाहिए, कब तक अल्पसंख्यक समुदाय का शोषण करेंगे. अब तो अल्पसंख्यक समुदाय की आंखें खुल जानी चाहिए. हलांकि जहां तक किसी मुसलमान को राज्यसभा में भेजने की बात है तो कांग्रेस ने हाल में इमरान प्रतापगढ़ी को उच्च सदन में भेजा है.