इजरायल-हमास युद्ध: संयुक्त राष्ट्र में मतदान से क्यों दूर रही केंद्र सरकार ? ओवैसी और प्रियंका गांधी का पीएम मोदी पर सवाल
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
यूक्रेन-रूस युद्ध की तरह हमास-इजरायल संघर्ष में बीच की नीति अपनाने की कला इस बार नरेंद्र मोदी सरकार के काम नहीं आ रही है. जहां इजरायल को यकीन है कि मोदी उसके बराबर खड़े होंगे, वहीं फिलिस्तीनी भारत के पुराने रूख पर भरोसा करता है. हमास-इजरायल संघर्ष के दौरान ऐसा नजारा कई बार देखने को मिला है. मगर इस बार मोदी सरकार फंस गई है.
दोराहे में फंसे भारत पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस महासचिव प्रिंयंका गांधी सवाल उठा रहे हैं. शनिवार को ओवैसी ने कहा कि यह चैंकाने वाला है कि भारत ने इजरायल-हमास संघर्ष पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव से खुद को दूर रखा और परहेज को देश की असंगत विदेश नीति करार दिया.
एक्स पर पोस्ट किए गए एक संदेश में, हैदराबाद के सांसद ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमास हमले की निंदा की, लेकिन संघर्ष विराम की मांग करने वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर सहमत नहीं हो सके.उन्होंने कुछ दिन पहले जॉर्डन के राजा से बात की थी, लेकिन जॉर्डन द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव पर उन्होंने रोक लगा दी. उन्होंने संदेश में कहा, यह एक असंगत विदेश नीति है.
ओवैसी ने कहा, यह चैंकाने वाला है कि नरेंद्र मोदी सरकार मानवीय संघर्ष विराम और नागरिक जीवन की सुरक्षा के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव से दूर रही.भारत ने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी और मानवीय दायित्वों को कायम रखने के जॉर्डन-मसौदा प्रस्ताव पर भाग नहीं लिया, जिसमें इजराइल-हमास संघर्ष में तत्काल मानवीय संघर्ष और गाजा पट्टी में निर्बाध मानवीय पहुंच का आह्वान किया गया था.
ओवैसी के अनुसार, गाजा में इजराइल द्वारा 7,028 लोगों की हत्या कर दी गई है. उनमें से 3,000 से अधिक बच्चे और 1,700 महिलाएं हैं.उन्होंने आगे कहा कि गाजा में कम से कम 45 प्रतिशत आवास कथित तौर पर नष्ट हो गए हैं, जिससे 14 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो गए हैं. शांतिकाल में भी, गजावासियों को पूर्ण नाकाबंदी का सामना करना पड़ता है. उन्हें मानवीय सहायता पर निर्भर रहना पड़ता है. युद्ध शुरू होने के बाद से हालात और भी खराब हो गए हैं.
यह एक मानवतावादी मुद्दा है, राजनीतिक नहीं. प्रस्ताव पर रोक लगाकर, भारत वैश्विक दक्षिण, दक्षिण एशिया और ब्रिक्स में अकेला खड़ा है. नागरिक जीवन से जुड़े मुद्दे पर भारत ने परहेज क्यों किया? गाजा को सहायता भेजने के बाद परहेज क्यों? एक विश्व एक परिवार का क्या हुआ? और “विश्वगुरु”?, ”ओवैसी ने पीएम मोदी पर कई सवाल दागेे हैं.
गाजा युद्धविराम प्रस्ताव पर भारत कैसे चुप रह सकता है?: प्रियंका गांधी
उधर, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा कि गाजा में सात हजार लोगों की मौत के बाद भी हिंसा नहीं रुकी है. मरने वालों में तीन हजार मासूम बच्चे भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि ऐसा कोई अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं है जिसे इस युद्ध में कुचला न गया हो. संयुक्त राष्ट्र महासभा के विशेष सत्र में गाजा में मानवीय युद्धविराम के लिए पेश किए गए प्रस्ताव को भारी बहुमत से मंजूरी मिल गई. हालांकि, भारत, यूके, कनाडा, जर्मनी समेत 45 देशों ने वोटिंग से दूरी बनाई है. इस पर कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा भड़क गई हैं.
उन्होंने भारत के इस रुख पर काफी हैरानी जताई और भारत सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि वह भारत के इस रवैये से शर्मिंदा हैं.प्रियंका गांधी वाड्रा ने यह भी कहा कि ऐसे समय में जब मानवता का हर कानून ध्वस्त हो गया है, स्टैंड न लेना और चुपचाप देखते रहना गलत है. प्रियंका ने महात्मा गांधी के उस कथन का भी जिक्र किया कि आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा कर देती है.
उन्होंने कहा, मैं हैरान और शर्मिंदा हूं कि हमारा देश गाजा में संघर्ष विराम के लिए हुई वोटिंग में अनुपस्थित रहा. हमारे देश की स्थापना अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों पर हुई है. हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने इन सिद्धांतों के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया. ये सिद्धांत संविधान का आधार हैं, जो हमारी राष्ट्रीयता को परिभाषित करते हैं. वह भारत के नैतिक साहस का प्रतिनिधित्व करते हैं.
प्रियंका गांधी ने कहा कि जब मानवता के हर कानून को नष्ट कर दिया गया है, लाखों लोगों के लिए भोजन, पानी, चिकित्सा आपूर्ति, संचार और बिजली काट दी गई है और फिलिस्तीन में हजारों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, तो यह गलत है. स्टैंड लेना और वोट न देना दुखद है. प्रियंका ने कहा कि यह उन सभी चीजों के खिलाफ है जिसके लिए एक राष्ट्र के रूप में भारत हमेशा खड़ा रहा है.
दरअसल, इस मामले में मौजूदा केंद्र सरकार उलझ गया है. पीएम मीदी की इजरायल से कुछ ज्यादा घनिष्ठता है, जबकि फिलिस्तीन मामले में पूरानी नीतियांे पर अमल करने का दबाव भी उनपर भरपूर है. ऐसे सरकार को निर्णय लेने में लगता है दिक्कत महसूस हो रही है.