वक्फ बोर्ड के पास मुल्क की तीसरी सबसे बड़ी मिल्कियत, मुसलमान मोहताज क्यों ?
फरहान इसराईली , जयपुर
मुल्क की करीब 18 फीसदी मुस्लिम आबादी हर तरह की परेशानी झेल रही है. न इसके पास ढंग की नौकरी है, न ही तालीम, सेहत की सहूलियात. एक रिपोर्ट कहती है, मुल्क के ग्रामीण एवं शहरी इलाक़ों में रहने वाले मुसलमानों की औसत मासिक आय तीन से चार हज़ार रूपये है.
सरकारी नौकरी में इनके हालात भी ठीक नहीं. अल्पसंख्यक मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि दीगर मंत्रालयों, बैंकों, पारा मिलिट्री, रेलवे में इनका फीसदी सात से 13 है. इस हिसाब से देखा जाए तो तमाम वक्फ जायदादों से होने वाली आमदनी का अगर अलग बैंक बनाकर उन पैसों को मुस्लिम कौम पर खर्च किया जाए तो झटके में समस्याएं काफूर हो सकती हैं.
18 हजार से ज़्यादा वक्फ जायदादों पर कब्ज़ा
मगर हालत ऐसी है कि वक्फ जायदादों से होने वाली आदमनी से बैंक बनाने की सोच तो दूर, सरकारें वक्फ जायदादों को बचा तक नहीं पा रही हैं. यह मुददा जब भी उठता है, केंद्र एवं राज्य सरकारें कुछ वक़्त के लिए सक्रिय होती हैं. कुछ दिनों बाद दोबारा सब कुछ पुरान पुराने ढर्रे पर आ जाता है.
इस वक़्त मुल्क के अलग-अलग हिस्सों में 18 हजार से ज़्यादा वक्फ जायदादों पर कब्ज़ा है. उनमें से 1300 से ज्यादा जायदादें सिर्फ सरकारी विभागों, एजेंसियों ने हथियाए हुए हैं. राजनीतिक पार्टियों के नेता, मुस्लिम संगठनों के खास लोग भी इसके लिए अपने रसूख का बेजा फायदा उठा रहे हैं. जयपुर या राजस्थान ही नहीं पूरे मुल्क में ये हाल है कि कई जगह वक्फ बोर्ड की जमीन पर मुस्लिम नेता, मुतवल्ली और कौम के कथित रहनुमाओं ने कब्जा कर रखा है.
वक्फ लफ़्ज़ के मायने
वक्फ लफ़्ज़ के मायने है किसी भी मज़हबी काम के लिए किया गया कोई भी दान है. यह दान पैसे, जायदाद या काम हो सकता है. कानूनी ज़बान में बात करें तो इस्लाम को मानने वाले किसी इंसान का मज़हब के लिए किया गया किसी भी तरह का दान वक्फ कहलाता है.
इसे मज़हबी और पाक माना जाता है. अगर किसी जायदाद को लंबे वक़्त तक मज़हब के काम में इस्तेमाल किया जाए तो उसे भी वक्फ माना जा सकता है. वक्फ लफ़्ज़ का इस्तेमाल ज़्यादातर इस्लाम से जुड़ी हुए तालीमी इदारे, कब्रिस्तान, मस्जिद और के लिए किया जाता है.
वक्फ के पास 6 लाख एकड़ ज़मीन की मिलकियत
कोई एक बार किसी जायदाद को वक्फ कर दे तो वापस नहीं ले सकता. भारतीय वक्फ के पास 6 लाख एकड़ ज़मीन की मिलकियत है जिसकी आज की तारीख में मार्किट वैल्यू लगभग 1.20 लाख करोड़ की है . इतनी बड़ी सम्पत्ति की मिल्कियत होने के बावजूद मुस्लिम समाज अपनी छोटी छोटी ज़रुरियात के लिए मोहताज है . इतनी सम्पत्ति और इससे होने वाली आमदनी के बावजूद कोई नए अस्पताल या तालीमी इदारे वक्फ द्वारा नहीं बनाए गए .
इस पिछड़ेपन की एक अहम वजह जहालत है, आम मुसलमान को यह मालूम ही नहीं की इज़्तेमाई तौर पर उनके पास कितनी बड़ी जायदादें हैं. आम मुसलमान को यह भी नहीं मालूम की इन वक्फ में कितनी आमदनी है. वहां काबिज़ मुतवल्ली या कौम के कथित रहनुमा अपने खिलाफ उठी हर आवाज़ को गैर इस्लामिक कहने से नहीं झिझकते अतः सवाल उठाने या उठने को रोक दिया जाता है. ज़रूरी है की मुस्लिम युवा अपनी मिलकियत के बारे में जाने और उसकी हिफाज़त करने के लिए आगे बढ़ें .