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युवाओं के संघर्ष का अच्छा समय !

डॉ रहमान नसीरुद्दीन

1986 में कवि हेलाल हाफ़िज़ की कविता की पुस्तक ‘जे जले अगुन जबाए’ प्रकाशित हुई. उस कविता में कवि ने लिखा, ‘अभी युवाओं के लिए मार्च करने का सबसे अच्छा समय है/ युवाओं के लिए युद्ध में जाने का सबसे अच्छा समय है/ जुलूस के सभी हाथ/आवाज़/पैर एक जैसे नहीं हैं/ जीवित लोग हैं दुनिया में, दुनिया में रहने वाले लोग हैं/ कुछ सड़कों को सजाने के लिए आते हैं/ कुछ जलाने या दुनिया को जलाने के लिए आते हैं/ शाश्वत शांति के लिए वे युद्ध के लिए आते हैं/ बेशक उन्हें कभी-कभी आना चाहिए/ अस्तित्व की भीषण पुकार के लिए / …अभी जवानी है जिसके लिए मार्च करने का सबसे अच्छा समय है / अब जवानी है जिसके लिए युद्ध में जाने का सबसे अच्छा समय है.’

दुनिया के अलग-अलग देशों में हमने समय के अलग-अलग मोड़ों पर युवाओं का ज्वार देखा है. ट्यूनीशिया में 26 वर्षीय व्यक्ति की गोली मारकर हत्या ने पूरे अरब जगत को हिलाकर रख दिया; अरब वसंत की हवा पूरे बादल को ले आई. कितने ही शासक, प्रशासक, राजा-महाराजा यौवन के ज्वार में बह गए.

सद्दाम या गद्दाफ़ी जैसी कितनी अजेय शक्तियाँ युवावस्था की उज्ज्वल हवा में उड़ चुकी हैं. अरब स्प्रिंग की बदौलत तहरीर चौक प्रतिभाशाली युवाओं का चमकता मुहाना बन गया है. तहरीर चौक पूरी दुनिया के विद्रोही, देशभक्त, समाज सुधारकों, निडर और भेदभाव-विरोधी युवाओं के लिए एक तीर्थ स्थल बन गया.

यहां तक ​​कि दिल्ली के जंतर-मंत्र भी युवाओं के अनियंत्रित साहस के लिए अपरिहार्य गंतव्य बन गए. दिल्ली में चलती कार में मेडिकल कॉलेज की छात्रा से रेप की घटना गरमा गई है. लाखों युवाओं के जोशीले नारों से दिल्ली का दरबार थर्रा उठा। ऐसी है युवाओं की शक्ति.

इस प्रकार, युवा समय की पुकार, इतिहास के विभिन्न मोड़ों और जीवन की असीमित संभावनाओं के विजयी गीत के प्रति जाग उठता है. बंगबंधु ने कहा, ‘जब हमने मरना सीख लिया है तो हम पर नियंत्रण नहीं रखा जा सकता.’ युवाओं को नियंत्रण में नहीं रखा जा सकता.

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी कविता ‘गुड मॉर्निंग’ में लिखा है, ‘मैं सुबह किसके शब्द सुनता हूं,/’कोई डर नहीं, कोई भय नहीं-/अंत में वह जीवन जो देगा/कोई हानि नहीं, कोई हानि नहीं.’

ब्रिटिश विरोधी आंदोलन में गुरु सूर्य सेन, खुदीराम बोस, अग्निकन्या प्रीतिलता वादेदार के कारनामे आज भी मन को रोमांचित कर देते हैं. जब युवावस्था अंत तक अपना जीवन देने के लिए तैयार रहती है तो उसका कोई क्षय नहीं होता. हमारे राष्ट्रीय जीवन में भी इसके अनेक उदाहरण हैं.

1952 का भाषा आंदोलन हमारे युवाओं के लिए अपना जीवन समर्पित करने का एक गौरवशाली कैनवास है. अपने प्राणों, रक्त, मातृभाषा और मातृभाषा की गरिमा से मातृभाषा की रक्षा की गौरवशाली कथा विश्व इतिहास के पन्नों में दुर्लभ है.

इस प्रकार, युवा समय की पुकार, इतिहास के विभिन्न मोड़ों और जीवन की असीमित संभावनाओं के विजयी गीत के प्रति जाग उठता है. बंगबंधु ने कहा, ‘जब हमने मरना सीख लिया है तो हम पर नियंत्रण नहीं रखा जा सकता.’ युवाओं को नियंत्रण में नहीं रखा जा सकता.

सलाम, बरकत, जब्बार, रफीक, शफीउल, अवल हमारे राजनीतिक इतिहास के साहसिक पते हैं; शहीद हमारी देशभक्ति और हमारी अमर-वीर भाषा के चमकते सितारे हैं. उन्होंने सिखाया कि जीवन और रक्त से इतिहास कैसे लिखा जाता है.

1962 का पूर्वी पाकिस्तान शिक्षा आंदोलन शरीफ़ आयोग की रिपोर्ट के ख़िलाफ़ था. पूर्वी पाकिस्तान के छात्रों, विशेषकर ढाका कॉलेज के छात्रों ने, पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान द्वारा अनुशंसित शिक्षा नीति के विरुद्ध आंदोलन शुरू कर दिया. उस आंदोलन में बाबुल, गुलाम मुस्तफा और वज़ीउल्लाह मारे गये। ये भी जवानी के खून से लिखा इतिहास है.

इस तरह 1962 के छात्र आंदोलन ने हमें सिखाया कि समय पड़ने पर साहस के साथ कैसे खड़ा होना चाहिए. प्रतिकूल माहौल में अपनी जान जोखिम में डालकर इतिहास कैसे रचा जाए. इसी प्रकार, छात्र-भीड़ की विशाल लहर द्वारा 1969 का महान जन विद्रोह आज भी हमारे इतिहास में एक महान उपलब्धि के रूप में अंकित है.

1971 का मुक्ति संग्राम हमारे राजनीतिक इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय है जिसने बांग्लादेश को एक स्वतंत्र और संप्रभु राज्य के रूप में जन्म दिया. यह मुक्ति संग्राम छात्रों के निर्भय संघर्ष का भी उत्कृष्ट अभिलेख है.

1990 का तानाशाही विरोधी आंदोलन भी युवाओं के अप्रतिरोध्य ज्वार का एक और कीर्तिमान है. इसके विपरीत, सरबदलिया छात्र संगम परिषद, जिसने पूरे आंदोलन के केंद्र के रूप में कार्य किया, युवाओं के विजय-कीर्तन में एक और गौरवशाली अध्याय था.

शहीद नूर हुसैन की छाती और पीठ पर लिखा था – ‘निरंकुशता को मरने दो, लोकतंत्र को आज़ाद होने दो’ जो युवाओं की निडर और निडर मानसिकता का एक उज्ज्वल उत्सव बन गया है. इस तरह से युवा बार-बार इतिहास की पुकार के सामने खड़े हुए हैं.

1971 का मुक्ति संग्राम हमारे राजनीतिक इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय है जिसने बांग्लादेश को एक स्वतंत्र और संप्रभु राज्य के रूप में जन्म दिया. यह मुक्ति संग्राम छात्रों के निर्भय संघर्ष का भी उत्कृष्ट अभिलेख है.

2013 के गण जागरण मंच के माध्यम से हमने युवाओं की एक और गौरवशाली कहानी देखी है. इतिहास के शुद्धिकरण का उपाख्यान. इसीलिए राष्ट्रकवि नजरूल ने युवाओं का विजय गीत गाया.

कवि नजरूल नजरूल इस्लाम ने लिखा, ‘क्या यह युवा जल-तरंग रेत से अवरुद्ध है? बाढ़ में वासिल कुलाय / वह लहर प्रलय की नीली लहर में उछलती और डोलती है! (कविता: यौवन-जल-तरंग).

2024 का युवा ज्वार भी उसी बेचारी जवानी की अगली कड़ी है. अबू सईद, दीप्ता डे और मोचाद जैसे सैकड़ों युवाओं के जीवन का बलिदान देकर ‘अंत तक जीवन’ देने वाले युवाओं का एक और गौरवशाली इतिहास रचा गया है. भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन ने भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जो मुक्ति संग्राम का मूल दर्शन है – समानता, सामाजिक न्याय और मानव गरिमा.

संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है- ‘जहां सभी नागरिकों को कानून का शासन, मौलिक मानवाधिकार और राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक समानता, स्वतंत्रता और न्याय की गारंटी दी जाएगी.’

बहुत खून की कीमत पर हासिल की गई यह उपलब्धि वास्तव में एक गैर-भेदभावपूर्ण समाज की स्थापना की दिशा में काम करेगी जहां धर्म, जाति, जाति, लिंग और भाषा के बावजूद सभी लोग अधिकारों और सम्मान के साथ सह-अस्तित्व में रह सकते हैं। एक शिक्षक के रूप में, मुझे छात्रों की क्षमता, निष्ठा और ताकत पर पूरा भरोसा है.

मैं काजी नजरूल की ‘अग्निवेना’ काव्य पुस्तक ‘प्रलयोलस’ की कुछ पंक्तियों के साथ अपनी बात समाप्त करूंगा जहां कवि युवाओं से जीत के लिए चिल्लाने का आह्वान करता है. जो सभी पुरानी चीजों को नष्ट करके एक सुंदर समाज का निर्माण करना जानते हैं; एक रंगीन सुबह एक व्हेल की तरह अंधेरे को काट सकती है. कवि ने लिखा, ‘सारी खुशियाँ चिल्लाओ./ सारी खुशियाँ चिल्लाओ../ कल उड़ेगा उस नए का तूफ़ान./ सारी खुशियाँ चिल्लाओ./ सारी खुशियाँ चिल्लाओ..’

( प्रोफेसर डॉ. रहमान नसीरुद्दीन, मानवविज्ञान विभाग, चटगांव विश्वविद्यालय. यह लेखक के विचार हैं. साभार ढाका पोस्ट )