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शाही मस्जिद में आरती की अनुमति नहीं, जानिए, क्या है मथुरा विवाद

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,मथुरा

हिंदू संगठनों को झटका लगा है. अखिल भारतीय हिंदू महासभा को उत्तर प्रदेश के मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद में भगवान कृष्ण की ‘आरती‘ करने की अनुमति नहीं मिली है.

संगठन की राष्ट्रीय अध्यक्ष राज्यश्री चैधरी को भेजे पत्र में जिला प्रशासन ने कहा कि कानून-व्यवस्था और शहर के शांतिपूर्ण माहौल के हित में अनुमति नहीं दी गई है. शहर में सार्वजनिक समारोहों पर रोक लगाने वाली धारा 144, 24 नवंबर से लागू है. 21 जनवरी तक जारी रहेगी.

चैधरी ने कहा, ‘‘पहले प्रशासन ने शहर में सांप्रदायिक सद्भाव का हवाला देते हुए अनुमति देने से इनकार किया था. इस बार, उन्होंने कहा है कि यह कोविड के मानदंडों का उल्लंघन करेगा. ये लंगड़े बहाने हैं.‘‘महासभा ने अब घोषणा की है कि वह 26 जनवरी से कुरुक्षेत्र में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के लिए ‘जनमत संग्रह‘ शुरू करेगी. कुरूक्षेत्र में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को ‘गीता‘ का उपदेश दिया था.

दो सप्ताह से भी कम समय में यह दूसरा मौका है, जब मथुरा प्रशासन ने शाही ईदगाह में महासभा को अपना कार्यक्रम आगे बढ़ाने से रोका है.संगठन ने पहले घोषणा की थी कि वह 6 दिसंबर को शाही ईदगाह में कृष्ण की एक प्रतिमा स्थापित करेगा.

जानें मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि-मस्जिद विवाद के बारे में

राम जन्मभूमि-बाबहरी मस्जिद के बाद हिंदू संगठन देश की दो और बड़ी मस्जिदों पर दावा ठोकते रहे हैं.उनमें से एक मस्जिद वारणसी की ज्ञानवापी और दूसरी मथुरा की शाही मस्जिद है. हालांकि बहुत पहले ही यह निर्णय दिया जा चुका है कि रामजन्म भूमि के बाद अब और किसी मस्जिद की प्राचीणता को लेकर हिंदू संगठन दावा नहीं करेंगे. बावजूद इसके हिंदू संगठन माहौल को गरमाने के लिए समय≤ पर इस मुद्दे को उठाते रहते हैं. विशेषकर जब चुनाव. उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और ज्ञानवापी और मथुरा की शाही मस्जिद उत्तर प्रदेश में ही है.

मजे की बात है कि रामलला के बाद ‘श्रीकृष्ण विराजमान‘ को भी अदालत में घसीट लिया गया है. श्रीकृष्ण विराजमान‘ और ‘स्थान श्रीकृष्ण जन्मभूमि‘ के नाम से मथुरा के सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में याचिका दायर की गई है, जिसमें 1968 के श्रीकृष्ण जन्मभूमि व मस्जिद के बीच समझौते को अमान्य करार देने की मांग करते हुए 13.37 एकड़ की श्रीकृष्ण जन्मभूमि (मसजिद सहित) पर मालिकाना हक मांगा गया है. याचिकाकर्ता का कहना है कि जिस जगह आज श्रीकृष्ण जन्मस्थान है, वह पांच हजार साल पहले कंस कारागार था.

पहला मुकदमा 1832 में

श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह के बीच पहला मुकदमा 1832 में शुरू हुआ था. तब से लेकर विभिन्न मसलों को लेकर कई बार मुकदमेबाजी हुई, लेकिन जीत हर बार श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान की हुई. श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने बताया कि पहला मुकदमा 1832 में हुआ था. अताउल्ला खान ने 15 मार्च 1832 में कलैक्टर के यहां प्रार्थनापत्र दिया. जिसमें कहा कि 1815 में जो नीलामी हुई है उसको निरस्त किया जाए. ईदगाह की मरम्मत की अनुमति दी जाए. 29 अक्टूबर 1832 को आदेश कलैक्टर डब्ल्यूएच टेलर ने आदेश दिया जिसमें नीलामी को उचित बताया गया और कहा कि मालिकाना हक पटनीमल राज परिवार का है. गोपेश्वर चतुर्वेदी ने बताया कि इस नीलामी की जमीन में ईदगाह भी शामिल थी. श्री कृष्ण जन्म भूमि और शाही मस्जिद को लेकर 1897, 1921, 1923, 1929, 1932, 1935, 1955, 1956, 1958, 1959, 1960, 1961, 1964, 1966 में मुकदमे चल चुके हैं.

श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा ने कहा है कि ट्रस्ट में और विधिक परामर्श के बाद यह तय किया जाएगा कि क्या करना है. उन्होंने बताया कि ट्रस्ट और संस्थान के अध्यक्ष एक ही होते हैं. संस्थान ट्रस्ट की सहयोगी संस्था है. जिसका गठन सोसायटी एक्ट के तहत किया गया था. दोनों के सचिव और अध्यक्ष एक ही होते हैं.

श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के वरिष्ठ सदस्य गोपेश्वर चतुर्वेदी ने कहा है कि श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान अभी तक चले हरेक मुकदमे में जीता है. मुस्लिम पक्ष ने कई बार यह बात रखी कि नीलामी जो हुई वह ईदगाह छोड़कर हुई. जबकि कोर्ट के आदेश हुए हैं कि नीलामी में वह जगह भी शामिल थी, जहां ईदगाह बनी हुई है. गोपेश्वर चतुर्वेदी ने कहा कि इसका सुबूत यह है कि रेवेन्यु में स्वामित्व हमारा है, नगर निगम में स्वामित्व हमारा है, ईदगाह जिस खेबट में है उसका टैक्स भी हम दे रहे हैं. भारत के नामचीन इतिहासकार एवं राम जन्मभूमि विवाद में हिंदुओं का पक्ष लेने वाले केके मोहम्मद ने कहा है कि कृष्ण जन्मभूमि का विवाद खड़ा करना माहौल को बिगाड़ने जैसा है. इस मुद्दे पर पहले की कोर्ट के आदेश आ चुके हैं, इसके बावजदू बेवजह विवाद को खींचा जा रहा है.