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‘लव जिहाद’ के बाद अब ‘शरबत जिहाद’? बाबा रामदेव की मार्केटिंग पर उठे सवाल

🔥 ‘शरबत जिहाद’: बाबा रामदेव के बयान से मचा बवाल

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

योगगुरु से व्यापारी बने बाबा रामदेव एक बार फिर अपने विवादास्पद बयानों के चलते सुर्खियों में हैं। हाल ही में पतंजलि द्वारा लॉन्च किए गए गुलाब शरबत के विज्ञापन के दौरान रामदेव ने जो बातें कहीं, वे अब देशभर में बहस का मुद्दा बन गई हैं।

उन्होंने कहा—

“अगर एक कंपनी का शरबत पिएंगे तो मस्जिद और मदरसे बनेंगे, लेकिन अगर पतंजलि का गुलाब शरबत पिएंगे तो पतंजलि गुरुकुल, आचार्यकुलम, भारतीय शिक्षा बोर्ड बनेंगे।”

हालाँकि उन्होंने किसी कंपनी का नाम सीधे नहीं लिया, पर उनका इशारा स्पष्ट रूप से हमदर्द की ओर था, जो भारत में सबसे पुराने यूनानी उत्पाद ब्रांडों में से एक है और मुस्लिम समुदाय में विशेष रूप से लोकप्रिय है।

इसी के साथ रामदेव ने एक और विवादित टिप्पणी करते हुए कहा—

“जैसे लव जिहाद चलता है, वैसे ही अब शरबत जिहाद भी चल रहा है।”

इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया दी। देश की विविधता और धर्मनिरपेक्षता को चोट पहुंचाने वाला यह बयान कई लोगों को राजनीतिक एजेंडा प्रतीत हुआ।


🌐 सोशल मीडिया पर घिरी पतंजलि

रामदेव का यह बयान सोशल मीडिया पर जमकर ट्रोल हुआ। ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर कई लोगों ने इसे “मज़हब के नाम पर मार्केटिंग” करार दिया। कुछ यूज़र्स ने लिखा:

“जब देश में हिंदू-मुस्लिम तनाव से सत्ता मिलती हो, तो बाबा रामदेव जैसे व्यापारी भी उसी धारा में बहेंगे।”

यह भी आरोप लगे कि पतंजलि अपने ब्रांड को धार्मिक आधार पर ऊँचा दिखाकर एक खास मानसिकता को बाज़ार में भुना रही है। कई व्यापारिक विश्लेषकों ने इसे polarization marketing यानी धार्मिक ध्रुवीकरण पर आधारित व्यापार रणनीति बताया।


⚖️ पतंजलि को सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार

बाबा रामदेव का नाम विवादों से नया नहीं है। आयुर्वेदिक उत्पादों को लेकर भ्रामक दावों के कारण वे पहले भी सुप्रीम कोर्ट की नाराज़गी झेल चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:

📅 7 मई 2024:
सुप्रीम कोर्ट की पीठ – जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस ए. अमानुल्लाह – ने पतंजलि आयुर्वेद को भ्रामक विज्ञापनों के लिए फटकार लगाई। अदालत ने कहा:

“निलंबित उत्पादों को बाज़ार से हटाओ और उनके विज्ञापन तुरंत बंद करो।”

पतंजलि के कुल 14 उत्पादों के लाइसेंस औषधि एवं जादुई उपचार अधिनियम, 1954 के उल्लंघन के चलते निलंबित कर दिए गए थे। ये सभी उत्पाद रामदेव के विज्ञापनों में बीमारी ठीक करने के झूठे दावे कर रहे थे।


📜 विवाद की पृष्ठभूमि: IMA बनाम पतंजलि

इस कानूनी कार्रवाई की शुरुआत 2022 में हुई थी जब इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने पतंजलि के खिलाफ रिट याचिका दायर की। आरोप था कि पतंजलि एलोपैथी चिकित्सा को बदनाम कर रही है और अपने आयुर्वेदिक उत्पादों को COVID-19 और अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज के तौर पर बेच रही है – बिना किसी वैज्ञानिक प्रमाण के।

📅 21 नवंबर 2023:
सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के उस आश्वासन को दर्ज किया जिसमें कहा गया कि वे भ्रामक विज्ञापनों को रोक देंगे। लेकिन अगले ही दिन बाबा रामदेव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया:

“हमारे पास शोध और साक्ष्य आधारित उपचार हैं जो मधुमेह, अस्थमा, थायरॉयड और ब्लड प्रेशर को ठीक कर सकते हैं।”

इसके बाद दिसंबर 2023 और जनवरी 2024 में पतंजलि ने भ्रामक विज्ञापनों को दोबारा शुरू कर दिया, जिससे कोर्ट और अधिक सख्त हो गया।


😷 अवमानना और आधी-अधूरी माफ़ी

📅 27 फरवरी 2024 से:
सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की। कोर्ट ने पूछा कि बार-बार निर्देशों की अनदेखी करने पर उन पर मुकदमा क्यों न चलाया जाए।

📅 23 अप्रैल 2024:
रामदेव खुद कोर्ट में पेश हुए। पतंजलि ने अखबारों में माफ़ीनामा छपवाया, लेकिन उसमें न तो रामदेव का नाम था, न बालकृष्ण का।

📅 30 अप्रैल 2024:
अदालत ने संशोधित माफ़ीनामे को “सुधरा हुआ” बताते हुए सराहना की, क्योंकि इस बार दोनों प्रमुखों का नाम शामिल किया गया था।


📜 नियम 170 का विवाद और केंद्र सरकार की भूमिका

इस पूरे मामले में केंद्र सरकार भी कटघरे में है। दरअसल, आयुष मंत्रालय ने राज्यों को पत्र भेजा था जिसमें कहा गया कि औषधि एवं प्रसाधन नियम, 1945 के नियम 170 के तहत आयुर्वेदिक उत्पादों के विज्ञापनों पर कार्रवाई न की जाए।

जब इस पर आपत्ति हुई तो केंद्र ने कहा कि यह आयुष तकनीकी सलाहकार बोर्ड की सिफारिश पर हुआ। लेकिन यहीं पर विरोधाभास उजागर हुआ – क्योंकि नियम 170 को खुद केंद्र सरकार ने शामिल किया था जब संसद की स्वास्थ्य समिति ने भ्रामक विज्ञापनों की आलोचना की थी।

📅 1 मई 2023:
दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह कोई भी निर्णय याचिकाकर्ताओं को सूचित किए बिना लागू न करे।


🧾 निष्कर्ष: ज़ुबान की ज़िम्मेदारी, व्यापार की मर्यादा

बाबा रामदेव ने योग और आयुर्वेद के नाम पर एक बड़ा साम्राज्य खड़ा किया है, लेकिन हर बार उनकी जुबान उनके व्यापार से आगे निकल जाती है। “शरबत जिहाद” जैसे बयान न सिर्फ भारत की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल खड़े करते हैं, बल्कि एक कारोबारी के तौर पर उनकी साख पर भी चोट पहुँचाते हैं।

विवाद, कोर्ट की फटकार और सामाजिक विभाजन – इन सबके बीच सवाल वही है:

क्या रामदेव एक योगी हैं, व्यापारी हैं या सिर्फ एक बाज़ार के खिलाड़ी?