तीन कृषि कानूनों के बाद अब केंद्र से सीएए वापस लेने की अपील
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन कृषि कानून वापस लेने के ऐलान के साथ ही नागरिकता संशोधन बिल यानी सीएए का जिन्न बोतल से बाहर आ गया है. अब इसकी इसकी वापसी की मांग भी शुरू हो गई है. जमीयत-उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी ने तो यहां तक कहा कि यदि संघर्ष मजबूती से की जाए तो सरकार को मांग माननी ही पड़ती है.
उम्मीद की जा रही है कि कृषि कानून की वापसी के सरकार के फैसले को देखते हुए मुस्लिम संगठन की ओर से सीएए की वापसी के लिए भी दबाव डाला जा सकता है. जिस प्रकार बीजेपी और आरएसएस का हाल के दिनों में मुसलमानों के प्रति नरम रवैया रहा है. इससे भी उम्मीद बंधती दिख रही है.
बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा के बाद मुस्लिम नेताओं ने शुक्रवार को विवादास्पद नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को वापस लेने की मांग की है. सीएए का मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय के लोगों और समाज के कुछ अन्य वर्गों द्वारा विरोध किया जा रहा है.
जमात-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष सैयद सदातुल्ला हुसैनी ने कहा, ‘‘हम अब सरकार से सीएए-एनआरसी आदि जैसे अन्य जन-विरोधी और संविधान-विरोधी कानूनों की ओर ध्यान देने का आग्रह करते हैं. यह सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें भी जल्द से जल्द वापस ले लिया जाए. हमें खुशी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आखिरकार किसानों की मांगों को मान लिया है. अगर यह पहले किया गया होता, तो नुकसान को टाला जा सकता था.‘‘
जमीयत उलमा-ए-हिंद के प्रमुख अरशद मदनी ने तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के फैसले का स्वागत करते हुए एक बयान में कहा, ‘‘सीएए आंदोलन ने किसानों को कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध करने के लिए प्रोत्साहित किया. सरकार को अब सीएए को भी वापस लेना चाहिए. हमें अपने किसानों को बधाई देनी चाहिए क्योंकि उन्होंने महान बलिदान दिया है. देश में अन्य सभी आंदोलनों की तरह किसान आंदोलन को दबाने के लिए हर संभव प्रयास किया गया था और किसानों को विभाजित करने की साजिश रची गई थी, लेकिन वे हर तरह से बलिदान देते रहे और अपने स्टैंड पर अडिग रहे.‘‘
उन्होंने कहा,‘‘एक बार फिर सच्चाई सामने आई है कि अगर किसी जायज मकसद के लिए ईमानदारी और धैर्य के साथ आंदोलन चलाया जाए, तो एक दिन सफलता जरूर मिलती है.‘‘उन्होंने किसानों के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि यह आंदोलन सफल हो गया है, क्योंकि महिलाएं और यहां तक कि बुजुर्ग भी रात-दिन सड़कों पर बैठकर न्याय की गुहार लगाई.
सीएए को वापस लेने के लिए केंद्र से आग्रह करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं कि हमारे देश की संरचना लोकतांत्रिक है, इसलिए अब उन्हें उन कानूनों पर ध्यान देना चाहिए जो मुसलमानों के संबंध में लाए गए हैं. कृषि कानूनों की तरह, सीएए को भी वापस ले लिया जाना चाहिए.‘‘
मजलिस-ए-मुशावरत के अध्यक्ष नावेद हामिद ने कहा, ‘‘सीएए और यूएपीए सहित सभी कठोर कानूनों को वापस लेने की जरूरत है. जिस मंत्री का बेटा लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्या में शामिल था, उसे तुरंत बर्खास्त किया जाना चाहिए और किसान आंदोलन के दौरान मारे गए सभी किसानों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाना चाहिए.‘‘