Politics

All India Muslim Personal Law Board इस्लामिक लीडरों को उखाड़ फैंकने पर बहस तेज


राम मंदिर भूमिपूजन के साथ भारतीय मुसलमानों में बहस छिड़ी हुई है कि मौजूदा इस्लामिक व मुस्लिम नेतृत्व उनके हक-हकूक की लड़ाई लड़ने में सक्षम है ? यह मौका ना कारा नेतृत्व को उखाड़ फेंकने का तो नहीं ? इस वक्त ऐसे तमाम सवालों को हवा दे रहे हैं कुवैत के अंतरराष्ट्रीय मामलों के वकील अल हामी मजिस शरिका। उन्होंने बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामला अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में ले जाने के प्रति दिलचस्पी दिखाई है। अलग बात है कि देश के मुसलमानों ने ऐसा करने से मना कर दिया।

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   कुवैत के वकील अल हामी मजिस शरिका भूमिपूजन के बाद से लगातार ट्वीट कर बाबरी मस्जिद को इस अंजाम तक पहुंचाने के लिए आल इंडिया मुस्मिल पर्सनल लॉ बोर्ड ( All India Muslim Personal Law Board ) एवं इसके वकील जफरयाब जिलानी को दोषी ठहरा रहे हैं। अपने एक ट्वीट में कहा कि मस्जिद विध्वंस में बोर्ड और जिलानी का हाथ लगता है। उनके मुताबिक, ‘‘ उनके चाचा ने अकेले 2200 मस्जिदें बनवाईं और सभी सुरक्षित हैं, लेकिन जिलानी एक बाबरी मस्जिद नहीं बचा पाए। आपने वकीलों की शाख पर बट्टा लगाया है।’’ जिलानी के इस मामले को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में ले जाने से मना करने के बाद से उनपर चौतरफा हमला शुरू हो गया है। प्रॉउड गोरखी ट्वीट हैंडल से कहा गया कि मुसलमानों को अपने भ्रष्ट धार्मिक, राजनीतिक नेतृत्व को बाहर फेंक देना चाहिए, क्यों कि बाबरी मस्जिद मुद्दे पर असफल रहे। मुहम्मद इमरान ने ट्वीट किया-‘‘ बाबरी मस्जिद मामले से जुड़े अरशद मदनी, महमूद मदनी, जिलानी और इकबाल अंसारी का बैंक एकाउंट कोर्ट में याचिका दायर कर चेक करना चाहिए।’’ यूट्यूब पर एक मुस्लिम महिला ने वीडियो जारी कर सवाल उठाए कि बाबरी मस्जिद पर फैसला आने से पहले अरशद मदनी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मिलने क्यों गए थे ? वह कहती हैं कि यह सवाल जब उन्होंने उठाया तो लोग उनका मुंह बंद कराने के लिए पीछे पड़ गए। अब वे कुवैत के वकील द्वारा मामले को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में ले जाने की मुखालफत में खड़े हैं।

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 हालांकि जिलानी और बाबरी मस्जिद के लिए संघर्ष करने वालों के बचाव में भी कुछ लोग आगे आए हैं। उनमें से एक शहबाज खान कहते हैं कि जफरयाब जिलानी भी क्या करें जब कोर्ट ही सांप्रदायिक…….। रफीक अहमद ने सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर जारी बहस में हिस्सा लेते हुए कहा कि पूरी कानूनी टीम ने लड़ाई लड़ी बाबरी मस्जिद बचाने के लिए। अपना श्रेष्ठ दिया। राम के पक्ष में फैसला जाने का कोई सबूत नहीं था। हम अल्पसंख्यक हैं। अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं। हालांकि इस बहस से पैदा होने वाले हालात की गंभीरता को भांपते हुए इबनुल हैदर कुवैत के वकील के जज्बे को सराहते हुए कहते हैं,‘‘ आपके प्रयासों का धन्यवाद। भारतीय मुसलमान एक तरह से बंधन में है। वे भारत के बाहर से मदद लेते हैं तो उन्हें देशद्रोही व भारत दुश्मन कहा जाएगा।’’ ऐसे ही एक मामले में अभी दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व चेयरमैन जफरूल इस्लाम खान को कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।

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संपादक