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AMU: हिंदू छात्रा के बहाने यूनिवर्सिटी को बदनाम करने की कोशिश, दिया जा रहा सांप्रदायिक रंग…न्यूज चैनल्स की भूमिका संदेहास्पद

ब्यूरो रिपोर्ट।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का जिक्र  छेड़ते ही समाज में नफरत फैलाने वाले गिरोह तुंरत सक्रिय हो जाते हैं। ताजा मामले में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है। यूनिवर्सिटी की एक हिंदू छात्रा एवं उसके मुस्लिम साहपाठियों के बीच सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणियों को इतना तूल दे दिया गया कि बात थाना पुलिस तक पहुंच गई। इस मुददे पर उत्तर प्रदेश का महिला आयोग भी सक्रिय हो गया है। इसकी अध्यक्ष विमला बाथम ने अलीगढ़ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को पत्र लिख कर आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। दूसरी तरफ नफरती गिरोह  मामूली सी घटना को और ही रंग दे रहे हैं ।
   अलीगढ़ भारतीय जनता पार्टी की फायर ब्रांड नेता एवं पूर्व मेयर शकुंतला भारती ने मुस्लिम लड़कों के खिलाफ फरमान सुनाया है कि यह सब करना है तो पाकिस्तान चले जाओ। इसके अलावा कुछ लोग मामूली सी घटना को सोशल मीडिया पर ‘हाईप’ देने में लगे हैं। आशीष ने#AMU पर ट्वीट कर एक समुदाय को भड़काने की कोशिश की है कि ‘‘उन्हें बचपन से सिखाया गया है कि हिंदुओं को मार ना है। नहीं जागे तो आगे यही होगा।’’ राष्ट्रीय न्यूज चैनल्स का रवैया भी  कुछ ठीक नहीं। घटना पर सात-सात मिनट की ख़बरें दिखाई जा रही हैं। मानों अभी देश का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यही है। भारत में इस समय कोरोना के साढ़े नौ लाख से अधिक मामले हो गए हैं। 25 हजार लोगों की मौत हो चुकी है, पर खबर में इसे प्रमुखता नहीं दी जा रही। बहरहाल,  हिंदू लड़की ने अपने सहपाठी रहबर दानिश के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए अलीगढ़ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को एक पत्र लिखा है।


इस घटना को लेकर कितना शातिराना दिमाग काम कर रहा है, इसका अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि सोशल मीडिया पर मुस्लिम लड़कों के नाम तो खूब उछाले जा रहे हैं, पर लड़की के नाम के स्थान पर स्याही पोत कर उसे छुपा दिया गया है। आखिर इसकी क्या वजह है ? यदि मुस्लिम लड़कों ने वास्तव में बड़ा अपराध किया है तो ऐसे लोगों को एक्सपोज करने वाली लड़की को आगे लाना चाहिए, ताकि उससे औरों को भी प्रेरणा मिले। चंद पंक्तियों की ट्वीट पर लड़की ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से अपने साथ अप्रिय घटना की आशंका जताई है। उसे अभी दो वर्ष और यूनिवर्सिटी में बिताने हैं। मजे की बात है कि इस विवाद की शुरूआत उसने ही की है। घटना पर लंबी चौड़ी खबर दिखाने वाले न्यूज चैनल्स को लड़की से पूछना चाहिए कि जब यूनिवर्सिटी बंद है तो उसने बे वक्त की तान क्यों छेड़ी ? उससे यह भी पूछा जाए कि अलीगढ़ एसएसपी को लिखी उसकी गोपनीय चिट्ठी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कैसे आई ? यदि उसकी कारस्तानी है तो उसका उद्देश्य लड़के को सजा दिलाना है या मात्र हंगामा खड़ा करना ? देश अभी वैसे ही संकट से गुजर रहा है।


  बहरहाल, पूरा मामला कुछ यूं है कि अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली हिंदू छात्रा ने ट्वीट किया कि ‘‘हिंदू लड़कियों को एएमयू होस्टल में खुद को कवर करने के लिए मजबूर किया जाता है। भारतीय शिक्षा हमें कवर रहने के लिए सिखा रही है। अन्यथा हमारे पहनावे किसी आदमी को उत्तेजित कर सकते हैं।’’ हालाकि, कायदे से इस बिन सिर-पैर के ट्वीट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं बनती। छात्रा ने इसके साथ कोई सबूत भी नहीं दिए जिससे साबित हो कि उसे इसके लिए मजबूर किया गया। बावजूद इसके दो-तीन मुस्लिम लड़कों ने प्रतिक्रिया में ट्वीट कर दिया। एक ने लिखा कि आपको होस्टल में नंगा घूमने से कौन मना कर रहा है, जबकि रहबर दानिश की ओर से कमेंट किया गया कि ‘‘लाकडाउन के बाद इंशाअल्लाह आपको हिजाब पहना या जाएगा, वह भी पीतल का।’’

हिंदू लड़की के ट्वीट की प्रतिक्रिया में मुस्लिम लड़कों के ट्वीट भी उतने ही अनर्गल हैं। बावजूद विवाद को निपटाने के अब इसे हिंदू-मुस्लिम रंग दिया जा रहा है। नफरती गिरोह ने बहस छेड़ दी है कि एएमयू में इसी तरह हिंदू छात्रों को परेशान किया जाता है। लड़कियां हिजाब पहनने को मजबूर  हैं। हालांकि यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से कभी ऐसे कोई आदेश-निर्देश नहीं दिए गए हैं। न ही व्यापक स्तर पर ऐसी शिकायतें देखने-सुनने को मिली हैं। अपवादस्वरूप कभी कोई घटना हुई तो उसे प्रमुखता नहीं दी जा सकती। एक बात और बाबिल-ए-गौर है। अलीगढ़ की मीडिया में विशेष मानसिकता रखने वालों की भरमार है। अक्सर ऐसे ही लोग अलीगढ़ की मामूली घटना को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश में रहते हैं। इस संवाददाता ने अलीगढ़ में डेढ़ वर्ष पत्रकारिता की है। इस दौरान उनकी मानसिकता को समझने-परखने का करीब से मौका मिला। स्थानीय  पत्रकारों ने ताजा मामले को इतना तूल दे दिया कि भय के कारण आरोपी छात्रों ने ट्वीटर से अपने एकाउंट हटा दिए हैं। pics s.media

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संपादक