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क्या वास्तव में मुसलमान राम मंदिर के लिए दान दे रहे हैं ?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, वाराणसी

चूंकि भारत के अधिकांश मुसलमानों की यह समझ है कि अयोध्या में जिस जगह राम मंदिर बन रहा है, वह आज भी बाबरी मस्जिद की जगह है. जमीयत उलेमा ए हिंद के सदर अरशद मदनी हों या एआईएमआईएम के सदर ओवैसी, सभी बड़े मुस्लिम नेता और मुस्लिम रहनुमा मानते हैं, ‘‘ सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह आरोप गलत साबित हुआ कि बाबर ने रामजन्म भूमि पर बाबरी मस्जिद बनाई है. इसलिए बाबर पर लगने वाला आरोप निराधार है, बल्कि यह आरोप अब मंदिर बनाने वालों पर लग गया है.’’

ऐसे में हिंदुवादी संगठन और सत्तारूढ़ दल बीजेपी निरंतर इस प्रयास में है कि कैसे इस बड़े आरोप को दबाकर राम मंदिर निर्माण को सर्वमान्य ठहराया जाए. ऐसा नहीं हुआ तो दुनिया भर में यह संदेश बना रहेगा कि भारत में एक प्राचीन मस्जिद को तोड़कर भगवान राम का मंदिर निर्माण किया गया है.

इस आरोप को धूमिल करने के लिए ही बीजेपी के एक नेता ने अफवाह उड़ाई कि बाबरी मस्जिद की ‘क्षतिपूर्ति’ के रूप में अध्योध्या से 22 किलोमीटर दूर धन्नीपुर गांव में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यूपी सरकार द्वारा दी गई जमीन पर प्रस्तावित मस्जिद की आधारशिला रखने काबा के इमाम आ रहे हैं. जबकि अभी तक यह स्पष्ट भी नहीं है कि मस्जिद निर्माण कब से शुरू होगा. यहां तक कि अभी तक इसका नकशा तक पास नहीं हुआ है.

किस मुसलमान ने दिया राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा ?

अब जब कि 22 जनवरी की तारीख नजदी आ रही है. इस दिन राम मंदिर में भगवान राम की प्रतिमा स्थापित होनी है. अचानक इन खबरांे की बाढ़ आ गई है कि राम मंदिर के निर्माण में मसलमानों ने भरपूर आर्थिक सहयोग दिया है. यानी मुसलमान बाबरी मस्जिद की जगह पर मंदिर निर्माण के पक्ष में हैं. दूसरी तरह से यूं कहा जा सकता है कि अरशद मदनी और ओवैसे जैसे लोगों के बयान को ऐसी खबरों से झूठा साबित करने का प्रयास किया जा रहा है.

हकीकत यह है कि किसी दो-चार मुसलमानों ने यदि मंदिर निर्माण के लिए चंदा दिया हो तो इसका कतई मतलब नहीं कि देश की 22 करोड़ मुस्लिम आबादी की वे नुमाइंदगी करते हैं. यानी दो-चार लोगों के चंदा देने से मुसलमानों की दावेदारी कमजोर नहीं होती ? दूसरे जो लोग राम मंदिर के निर्माण में चंदा देने की बात करते हैं.उनका भी पूरा खुलासा होना चाहिए. मसलन, उनका बीजेपी, आरएसएस से किस हद तक ताल्लुक है ? ऐसे सवालों का उत्तर जानना इसलिए भी जरूरी है कि आरएसएस का मुस्लिम मंच हमेशा यह प्रभाव छोड़ने का प्रयास करता है कि भारतीय मुसलमानों की सोच, उसकी सोच से मेल खाने लगी है.

इसमें कोई बुराई नहीं कि किसी मजहब के लोग किसी अन्य मजहब के लागांे के धर्मस्थल के निर्माण में मदद करें. मस्जिदांे के निर्माण में अन्य धर्मों के लोग आर्थिक मदद करते रहे हैं. बावजूद इसके कभी ऐसे कर्मों का पोलिटिकल माइलेज लेने का प्रयास नहीं किया गया और न ही ऐसे कर्मों से किसी ने अपनी गलती सुधारने की कोशिश की है. अच्छे जज्बे के साथ लोग एक दूसरे का सहयोग कर रहे हैं और करते रहेंगे. मगर अयोध्या जैसे मामले में इसे इतना आसानी से नहीं लिया जा सकता.

राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा देने वाले मुसलमानों का आरएसएस से क्या है रिश्ता ?

एक अखबर उत्तर प्रदेश जौनपुर से आई है. पीजी काॅलेज में पढ़ाने वाले डॉ. अब्दुल कादिर खान ने राम मंदिर के निर्माण के लिए चंदा दिया है. मगर यह नहीं बताया जा रहा है कि उनका बीजेपी या आरएसएस अथवा इसके अन्य संगठनों से क्या रिश्ता है ? इसके लिए यह भी जानना जरूरी है कि क्या उन्हांेने धन्नीपुर मस्जिद के लिए कोई चंदा दिया है. क्योंकि इसके निर्माण में मुसलमान तक सहयोग करने के लिए तैयार नहीं. बाबरी मस्जिद के बदले मिली इस जमीन पर मस्जिद निर्माण को आम मुसलमान सही ढंग से नहीं ले रहा है. मस्जिद निर्माण के लिए चंदा नहीं मिल पान के कारण ही इसके लिए देश के विभिन्न शहरों में दफ्तर खोलने का प्रस्ताव है.

इसी बीच खबर आई कि जौनपुर के खान साहब अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए मुसलमानों के बीच सबसे अधिक दानदाताओं में से एक होने के कारण सुर्खियां बटोर रहे हैं. उन्होंने मंदिर ट्रस्ट के लिए 1.11 लाख रूपये का दान दिया है. सवाल उठता है कि अरबांें रूपये मंदिर निर्माण के नाम पर खर्च किए जा रहे हैं. उसमें एक लाख रूपये बड़ी रकम है ?

डॉ. खान ने एक वेबसाइट आवाज द वाॅयस से कहा, मौजूदा स्थिति अलग है. बच्चों के रूप में हमने संघर्ष और नफरत नहीं देखी. कोई भी हिंदू और मुसलमान के बीच अंतर नहीं जानता था, लेकिन आज दोनों के बीच की खाई बढ़ती जा रही है और खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है. मुझे लगता है कि इसे बदलने के लिए मुसलमानों को बड़ी पहल करनी होगी. हमें ऐसे मौकों पर आगे आना होगा और उदाहरण पेश करना होगा.’’

राम मंदिर की आर्थिक मदद करने वाले मुसलमान धन्नपुर मस्जिद का नहीं दे रहे चंदा !

हालांकि वेबाइट के रिपोर्टर ने उनसे यह पूछना जरूरी नहीं समझा कि क्या उन्हांेने धन्नीपुर मस्जिद के लिए दान दिया है ? इससे पहले उन्हांेने सांप्रदायिक सौहार्द के लिए और क्या-क्या किया है ? क्या वो मानते हैं कि बाबरी मस्जिद की जमीन पर मंदिर का निर्माण हुआ है ?

इन जरूरी सवालों को पूछने की जगह संवाददाता ने कुछ और ही संदेश देने का प्रयास किया. वेबसाइट के अनुसार, ‘डॉ. अब्दुल कादिर खान ने कहा कि जब स्थानीय स्वयंसेवकों ने राम मंदिर के लिए दान एकत्र किया, तो उन्होंने उन्हें छोटे मूल्यवर्ग के दान स्वीकार करते हुए देखा जो प्रतीकात्मक राशि थी. “मुझे यह पसंद नहीं आया और मुझे लगा कि एक बड़ा संदेश देना जरूरी है. मेरे इस कदम को देश की गंगा-जमुनी तहजीब को जिंदा रखने की कोशिश कहा जा सकता है, हमें दूसरों की खुशी में शामिल होना चाहिए, यही कदम और सोच हमें आगे ले जाएगी.”

इस रिपोर्ट में आगे कहा गया, ‘भारतीयों की एकता के बारे में बात करते हुए डॉ. अब्दुल कादिर खान कहते हैं, एक समय था जब हम होली या दिवाली पर एक-दूसरे के साथ होते थे. हमने राम लीला में भाग लिया. हमें इस संस्कृति को पुनर्जीवित करना होगा. हमें एक दूसरे के धर्म का सम्मान करना होगा, अच्छे और बुरे समय में एक साथ खड़े रहना होगा.”

इसी तरह इस रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया, काशी (बनारस) के 24 जिलों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीब 4000 मुसलमानों ने राम मंदिर निर्माण के लिए जुटाए गए फंड में दो करोड़ रुपये से ज्यादा का दान दिया है.’’ आयोजन समिति मंदिर के लिए दान देने वाले मुस्लिमों को भगवान श्रीराम की पाठी यानी रसीद भेज रहे हंै. क्या दान देने वाले खान साहब को प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन अनुष्ठान के समय अग्रिम पंक्ति मंे जगह मिलेगी ? संवाददाता ने मंदिर प्रधन से यह सवाल नहीं पूछा.

डॉ. अब्दुल कादिर खान का कहना है कि भगवान श्री राम को एक समूह के लोगों तक सीमित रखना बेमानी होगा. “भगवान श्री राम सर्वव्यापी हैं. सनातन ही नहीं सभी धर्मों में सर्वव्यापी है. भगवान श्री राम सभी की आत्मा और स्वरूप में विद्यमान हैं. उनके बिना इस दुनिया की कल्पना करना बेमानी है.”

काशी की इकरा अनवर ने मस्जिद निर्माण के लिए दिया चंदा ?

खान की तरह इस रिपोर्ट में किसी इकरा अनवर का जिक्र है. वह कौन हैं ? रिपोर्ट में यह बताना जरूरी नहीं समझा गया. ऐसे में इस नाम को किस हद तक मुसलमान माना जाए ? बहरहाल, रिपोर्ट में इकरा अनवर के हवाले से कहा गया है, काशी इकरा कहती हैं कि राम-रावण युद्ध के समय जिस तरह एक गिलहरी ने राम सेतु के निर्माण में अपनी भागीदारी सुनिश्चित की थी, जिससे राम की सेना लंका तक पहुंच सकी थी, उसी तरह काशी के मुसलमानों ने भी राम मंदिर निर्माण में अपना योगदान दिया है.

वह कहती हैं कि मंदिर के लिए दान करके उन्हें धन्य महसूस हुआ. राम मंदिर के दर्शन से पहले, काशी की रहने वाली इकरा अनवर ने एक संत के माध्यम से मंदिर ट्रस्ट को 11,000 रुपये दिए. आपसी प्रेम और सौहार्द का प्रतीक बनने के लिए इकरा ने अपने दाहिने हाथ पर जय श्री राम का टैटू बनवाया है. हालांकि, इकरा को यह पता नहीं कि इसलाम में टैटू बनाना गुनाह है.

इकरा का कहना है कि पीढ़ियों से उनके परिवार ने कभी भी हिंदू और मुस्लिम के बीच भेदभाव नहीं किया. इकरा ने कहा, गांव में लोग अक्सर अंतिम संस्कार के लिए हमारे बगीचे से लकड़ी चुनते हैं, इसलिए हम सिर्फ अपने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं.

इकरा का कहना है कि यह गर्व की बात है कि हम उस देश में रहते हैं जहां भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है – और हमें उस गिलहरी से तुलना करने पर गर्व है जिसने राम सेतु के निर्माण में मदद की थी.इसमें दो राय नहीं कि भारत वासी होने के नाते मुसलमानों को भी भगवान राम के अस्तित्व को स्वीकारने में कोई हिचक नहीं होना चाहिए. इसके बावजूद इसपर तो विचार किया ही जा सकता है कि पुरूषोत्तम राम के नाम पर होने वाला न्याय और अन्याय उन्हें कितना मंजूर होता ?

कितने मुलमानों ने राम मंदिर के लिए दिया दान

ऐसे गंभीर विचारों से इतर, आवाज द वाॅयस की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती का कहना है कि इकरा अनवर, हिंदू और मुसलमानों के बीच प्रेम का पुल हैं जबकि नफरत फैलाने का काम जारी है. इकरा जैसी प्रबुद्ध महिला ने भी अपने समुदाय के कई लोगों को सहयोग के लिए प्रेरित किया है. उनका मकसद सौहार्द को मजबूत करना है. हालांकि, स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती को यह बयान देने से पहले इकरा से यह जन लेना जरूरी होता कि उसने इससे पहले और कितने मंदिर-मस्जिद निर्माण में आर्थिक सहयोग दिया है ? धन्नीपुर के लिए उसने अपने खजाने का मुंह खोला या नहीं ?

इस बीच काशी प्रांत के प्रचारक रमेश का कहना है कि धन संग्रह अभियान में काशी प्रांत के 27 जिलों के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लिया. मुस्लिम समुदाय के लोगों ने सार्वजनिक मंचों पर बिना किसी हिचकिचाहट के धन दान किया. मुस्लिम समुदाय के 4,000 से ज्यादा लोगों ने राम मंदिर के लिए दान दिया है.

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