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अरशद मदनी वक्फ संशोधन बिल विवाद को ‘किसान आंदोलन’ न बना दें ? जमीयत ने धर्मनिरपेक्ष दलों को दूर रहने की दी चेतावनी

मुस्लिम नाउ ब्यूंरो, नई दिल्ली

लगता है वक्फ बिल संशोधन विधेयक केंद्र सरकार के गले की फांस बनने वाली है. जमीयत उलेमा ए हिंद के अरशद मदनी का इसे लेकर जैसा रूख है, उसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह विवाद आगे बढ़ कर ‘किसान आंदोलन’ जैसा रूप ले सकता है. मदनी ने दिल्ली के एक स्टेडियन में भारी जमावड़ा कर आगे और बड़े जलसे-जुलूस के आयोजन का ऐलान किया है. साथ ही इस मामले से दूर रहने के लिए धर्मनिरपेक्ष दलों को खुली चेतावनी दी है.

वक्फ (संशोधन) विधेयक के खिलाफ अपने अभियान को तेज करते हुए जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने रविवार को टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू और जेडी(यू) के नीतीश कुमार से इस मामले में मुसलमानों की भावनाओं पर ध्यान देने का आग्रह किया और कहा कि एनडीए के भीतर जो दल धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करते हैं, उन्हें इस “खतरनाक” कानून का समर्थन करने से खुद को दूर रखना चाहिए.

यह भी चेतावनी दी कि अगर यह विधेयक पारित हो जाता है, तो केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार जिन “दो बैसाखियों” पर चल रही है, वे जिम्मेदारी से बच नहीं पाएंगी.

जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने यहां इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में आयोजित प्रमुख मुस्लिम निकाय के ‘संविधान बचाओ सम्मेलन’ में यह बात कही.

मदनी ने जमीयत के पदाधिकारियों और समर्थकों की बड़ी भीड़ की ओर इशारा करते हुए कहा,“देश के लोगों ने भाजपा को हरा दिया. उन्होंने उनकी नीतियों को स्वीकार नहीं किया. यह सरकार दो बैसाखियों पर निर्भर है – एक मजबूत चंद्रबाबू और दूसरी बिहार के नीतीश कुमार. मैंने उन्हें (नायडू को) आमंत्रित किया. उन्होंने खुद को माफ़ कर दिया लेकिन अपनी पार्टी के उपाध्यक्ष नवाब जान को भेज दिया. मैं इसे सकारात्मक रूप से देखता हूँ . वह यहाँ एकत्रित लोगों की भावनाओं को व्यक्त करेंगे.”

मदनी ने जोर देकर कहा,”अगर मुसलमानों की भावनाओं को नज़रअंदाज़ करके वक्फ बिल पारित किया जाता है – तो यह केंद्र में अन्य शक्तियों की तरह ही बैसाखी की भी ज़िम्मेदारी होगी.”

सम्मेलन में जमीयत द्वारा पारित एक प्रस्ताव में मांग की गई कि वक्फ बोर्ड में किसी अन्य धर्म के व्यक्ति को शामिल न किया जाए और संसद की संयुक्त समिति केवल मुसलमानों, मुस्लिम संगठनों और मुस्लिम नेताओं से परामर्श करने के लिए बाध्य हो.

प्रस्ताव में कहा गया है,”जमीयत उलमा-ए-हिंद प्रस्तावित वक्फ संशोधन विधेयक के बारे में विपक्षी दलों के रुख का समर्थन करती है और एनडीए के भीतर उन दलों से अपील करती है जो धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करते हैं कि वे इस खतरनाक प्रस्तावित विधेयक का समर्थन करने से खुद को दूर रखें और अपनी धर्मनिरपेक्ष साख साबित करें.”

अपनी टिप्पणी में मदनी ने कहा कि जमीयत ने तय किया है कि इस महीने के अंत तक या दिसंबर में वह चंद्रबाबू नायडू के “क्षेत्र” में करीब पांच लाख मुसलमानों की एक सभा आयोजित करेगी और मुसलमानों की भावनाओं को उनके सामने रखेगी.

उन्होंने दोहराया कि “अगर यह विधेयक पारित हो जाता है, तो सरकार जिस बैसाखी पर निर्भर है, वह इसकी जिम्मेदारी से बच नहीं पाएगी.”मदनी ने कहा कि वक्फ “हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित किया गया है और यह अल्लाह के स्वामित्व का हिस्सा है, जिस पर मस्जिदें बनी हैं.”

जमीयत प्रमुख ने कहा, “आपको (सरकार को) उनकी रक्षा करनी चाहिए क्योंकि हम इस देश में रहते हैं और हम कहीं बाहर से नहीं आए हैं. अगर हिंदू गुज्जर है, तो मुस्लिम भी गुज्जर है… हिंदू जाट हैं, मुस्लिम भी जाट हैं. वे नारे लगाते हैं कि हिंदू, मुस्लिम और सिख अलग हैं, लेकिन हम कहते हैं कि ‘हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सब हैं भाई भाई.”

मदनी ने कहा, “दिल्ली में बहुत सारी मस्जिदें हैं, जिनमें से कुछ 400-500 साल पुरानी हैं…भारत में एक वर्ग है जो इन मस्जिदों पर कब्ज़ा करना चाहता है…500 साल पुराने दस्तावेज़ कौन पेश कर सकता है? कानून कहता है कि वक्फ की ज़मीन पर बनी कोई भी मस्जिद वास्तव में वक्फ है.” उन्होंने यह भी कहा कि इंडिया ब्लॉक और राहुल गांधी ने लोकसभा चुनावों से पहले कहा था कि अगर वे सत्ता में आए तो सभी अल्पसंख्यक अपने धर्म का पालन करने के लिए स्वतंत्र होंगे, एक ऐसा कथन जिसकी उन्होंने सराहना की.

मदनी ने कहा, “इसलिए मैंने मुसलमानों से उस गठबंधन का समर्थन करने का आग्रह किया जो उन्हें अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता देता है और मुझे खुशी है कि मुसलमानों ने पूरे देश में गठबंधन का समर्थन किया. गठबंधन आगे बढ़ा और भाजपा हार गई.” “

मैं कहता हूं कि अगर उनके पास चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार की बैसाखी नहीं होती, तो भाजपा सरकार नहीं बना पाती. जमीयत प्रमुख ने कहा, “विभाजनकारी नीति और धर्मनिरपेक्षता के विचार को जलाने की कोशिश ने उन्हें पिछले दो चुनावों में भारी जीत के बाद इस स्थिति में पहुंचा दिया है.” संसद की एक संयुक्त समिति विवादास्पद वक्फ संशोधन विधेयक 2024 की जांच कर रही है.

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