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अस्मा अल होसानीः यूएई की जिउ-जित्सु चैंपियन,अमीराती महिला सशक्तिकरण का प्रतीक

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, दुबई

ठीक पांच महीने पहले, 21 वर्षीय अस्मा अल होसानी ने एशियाई खेलों में मार्शल आर्ट में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली अमीराती महिला बनकर इतिहास रच दिया था. एक साक्षात्कार में, जिउ-जित्सु चैंपियन ने बताया कि कैसे वह अमीराती महिला सशक्तिकरण की प्रतीक बन गई हैं.खलीफा विश्वविद्यालय, अबू धाबी में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष की छात्र और युवा मार्शल आर्ट अल होसानी अपनी यात्रा को याद करते हुए कहती हैं, एक बार इस बंद दरवाजे की प्रतियोगिताओं में भाग लिया था, जिसके बाद संयुक्त अरब अमीरात को वैश्विक खेल मानचित्र पर पहुंचा दिया. वह युवा पीढ़ियों को भी प्रेरित करती हैं. उन्हांेने रूढ़िवादिता को तोड़ें हैं.

अल होसानी की मार्शल आर्ट में रुचि उनके स्कूल के दिनों के दौरान जगी, जब उन्होंने राष्ट्रपति महामहिम शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान द्वारा शुरू किए गए जिउ-जित्सु कार्यक्रम में भाग लिया. तब वह अबू धाबी के क्राउन प्रिंस थे.

उन्होंने याद करते हुए कहा, शेख मोहम्मद ने सभी पब्लिक स्कूलों में यह कार्यक्रम शुरू कराया था. इसके बाद उनकी उम्र के कई अमीराती बच्चे कार्यक्रम में शामिल हुए. अल होसानी को यह दिलचस्प खेल लगा.

वह कहती हैं,“मैं छठी कक्षा में थी. पहले मैं बस इसे आजमाना चाहती थी. मुझे खेल पसंद हैं. लेकिन दिन-ब-दिन मुझे यह अधिक पसंद आने लगा. मैंने स्कूल के बाहर इसे सीखने के लिए क्लब ज्वाइन किया.

धीरे-धीरे, वह पूरी तरह से जिउ-जित्सु अभ्यास में रम गईं. कई स्थानीय प्रतियोगिताएं में जीतीं.

अल होसानी ने कहा, शुरुआत में इस बात को लेकर आशंकाएं थी कि एक लड़की लड़कों और पुरुषों के सामने कैसे लड़ पाएगी. उन्होंने निजी तौर पर और मीडिया कवरेज के बिना आयोजित प्रतियोगिताओं के साथ महिला सेनानियों पर लगाई गई सीमाओं को याद किया.

वह पुराने दिनों की याद करते हुए कहती हैं वह तब मदर ऑफ द नेशन जिउ-जित्सु चैंपियनशिप थी. उस समय यह एक बंद दरवाजे में हुआ करता था. यह सख्त खेल है. तब .आसपास कहीं सीसीटीवी कैमरे भी नहीं होते थे. अब, चैंपियनशिप लाइव देखा जाता हैं. अल होसानी ने कहा, इस बदलाव से वह खुश हैं और हिजाब पहनकर अपने देश के लिए खेलने पर गर्व महसूस करती हैं.

पुरुष-प्रधान खेल में एक लड़की के प्रतिस्पर्धा करने के बारे में शुरुआती आपत्तियों के बावजूद, अल होसानी कायम इसपर कायम रहीं. धीरे-धीरे खेल में पहचान हासिल किया.अबू धाबी के पश्चिमी क्षेत्र में अल मारफा में अल शुमुख स्कूल से, वह मार्शल आर्ट में अपने कौशल को निखारने के लिए अल धफरा जिउ-जित्सु क्लब में शामिल हुईं. ग्रे बेल्ट होल्डर बनने के बाद, उन्होंने 2016 में यूएई नेशनल टीम में अपना स्थान पक्का किया.

अल होसानी अपने माता-पिता की आभारी है. उनका कहना है कि वे उनके समर्थन के स्तंभ हैं. उन्होंने अपनी मानसिकता बदलने, उन्हें तकनीकी कौशल सिखाने और बड़े सपने देखने और कभी हार न मानने के लिए प्रेरित किया. खेल का श्रेय वह अपनी कोच मरीना को भी देती हैं.

उन्होंने कहा,“मेरे माता-पिता ने यह सुनिश्चित करने के लिए बहुत संघर्ष किया है कि मैं देश के लिए खेल सकूं. वे मुझे राष्ट्रीय टीम के साथ प्रशिक्षण के लिए हर दिन पश्चिमी क्षेत्र से अबू धाबी ले जाते थे. यह मेरे लिए बहुत मायने रखता है.”

उन्होंने कठोर प्रशिक्षण व्यवस्था के बारे में बताया, जिसमें दैनिक अभ्यास और महत्वपूर्ण प्रतियोगिताओं में भागीदारी शामिल है. इसकी परिणति है कि उनका चयन प्रतिष्ठित एशियाई खेलों के लिए हुआ है.

अल होसानी भी देश के लिए स्वर्ण पदक जीतने और अपने सपने को पूरा करने के लिए पूरा जी-जान लगाई हुई हैं. वह कहती हैं, “मैंने एक सेमेस्टर के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी है. मैंने कई घंटों के अभ्यास पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर रखा है .देश के बाहर एक प्रशिक्षण शिविर में भी भाग लिया.

उन्होंने याद किया, कैसे वह अपने प्रतिद्वंद्वी के प्रति प्रबल समर्थन के बीच भी गर्व के साथ अपने देश का प्रतिनिधित्व करने पर केंद्रित रहीं. “ज्यादातर भीड़ उनका हौसला बढ़ाने के लिए चीन से आई थी. लेकिन मैं जानती थी कि पूरा यूएई मेरे साथ है. मैंने बस आस-पास की सभी आवाजों को बंद करने और उससे लड़ने पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया. सभी की शुभकामनाओं और प्रार्थनाओं से मैं सफल हुई.

जीत के क्षण के अलावा, अल होसानी को राष्ट्रपति से मिली सराहना सबसे अधिक प्रिय है. “यह एक अविस्मरणीय क्षण है.” गर्वित अल होसानी ने कहा, जिन्होंने शेख मोहम्मद के साथ अपनी तस्वीर को अपने व्हाट्सएप प्रोफाइल चित्र के रूप में रखा है.शारीरिक फिटनेस, मानसिक चपलता और व्यक्तिगत विकास सहित मार्शल आर्ट के बहुमुखी लाभों पर प्रकाश डालते हुए, अल होसानी ने महत्वाकांक्षी एथलीटों और युवा महिलाओं के लिए दृढ़ता, निरंतरता और समर्पण की वकालत की.

आठ भाई-बहनों में चैथी, उसने अपनी छोटी बहन मीरा को जिउ-जित्सु अपनाने के लिए प्रेरित किया है. वह खुश हैं कि उनके कई सह-एथलीट भी उनके साथ प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित हुए हैं.

“मुझे लगता है कि अब मुझ पर अधिक जिम्मेदारी है. मुझे महिलाओं को खेलों में प्रयास करने के लिए प्रेरित करना और नई पीढ़ी को इस क्षेत्र में और अधिक हासिल करने के लिए प्रेरित करना वास्तव में बहुत अच्छा लगता है. जिउ-जित्सु ने मेरे जीवन में कई चीजें बदल दी हैं. इससे मुझे मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत होने में मदद मिली है. यह मेरे लिए स्ट्रेस बस्टर भी है. इसलिए मुझे लगता है कि हर महिला को एक खेल आजमाना चाहिए. मेरा मानना है कि जो कोई भी कुछ हासिल करना चाहता है उसे निरंतर और हमेशा प्रेरित रहना चाहिए. भले ही आप थके हुए हों, आपको अपना 100 प्रतिशत नहीं, बल्कि 130 प्रतिशत देना चाहिए.

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