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असम: आतंकवाद के नाम पर मदरसों और मुसलमानों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर भड़के बुद्धिजीवी: रिपोर्ट

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

असम सरकार द्वारा आतंकवादी संगठन अलकायद और बांग्लादेश के अल-संसार से सांठगांठ करने के आरोप में हाल में मदरसों एवं कुछ मुसलमानों के खिलाफ की गई कार्रवाई के खिलाफ अब प्रदेश का बुद्धिजीवी समाज खड़ा हो गया है. इसकी मुखालफत करते हुए कहा कि इस आरोप के तरहत अब तक गिरफ्तार लोगों का अपराध कोर्ट में सिद्ध नहीं हुआ है. इसलिए उन्हें देश के खिलाफसाजिशकर्ता बताना गलत है. अमस के बुद्धिजीवियों ने आतंकवाद के खिलाफ असम सरकार द्वारा मदरसांे को गिराए जाने के प्रति भी विरोध जताया है. सरकार से पूछा है कि एक दिन के नोटिस पर जिन मदरसों को गिरा दिया गया, वहां पढ़ने वाले बच्चों की शिक्षा की क्या वैकल्पिक व्यवस्था की गई है. बता दें कि एक महीने के दौरान असम सरकार ने अलकायदा एवं अल-अंसार से संबंध रखने के आरोप में एक मदरसा संचालक, दो मस्जिदो के इमाम सहित 37 लोगों को गिरफ्तार किया है. इसके अलावा तीन मदरसे भी ध्वस्त कर दिए गए.

असम की इस कार्रवाई को लेकर आवाज द वॉयस डॉट इन एक विस्तृत रिपोर्ट छापी है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, असम सरकार की कार्रवाई के खिलाफ इस प्रदेश के मुसलमान बेहद नाराज हैं. रिपोर्ट में कहा गया है, एआईयूडीएफ सुप्रीमो मौलाना बदरुद्दीन अजमल की असम सरकार से मदरसों को बुलडोजर से अलग करने की अपील के एक दिन बाद, राज्य में नागरिक समाज राज्य सरकार के नवीनतम मदरसा को छात्रों के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए विरोध में शामिल हो गया है. इसे इस्लामी शिक्षा के खिलाफ साजिश बताया जा रहा है.

अजमल ने जहां गुरुवार को पश्चिमी असम के बोंगाईगांव जिले के कबायतारी में ध्वस्त मदरसे का दौरा करने के दौरान कानूनी सहारा लेने की चेतावनी दी, वहीं नागरिक समाज ने सरकार से क्षतिग्रस्त मदरसों के छात्रों की निर्बाध शिक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने का आह्वान किया. साथ ही कहा गया कि उन मदरसों से जुड़े शिक्षक और अन्य कर्मचारियों का विध्वंस की होड़ का समर्थन बिल्कुल नहीं किया जा सकता. इस बारे में प्रसिद्ध शिक्षाविद आयशा अशरफ अहमद ने कहा, इसका कोई औचित्य नहीं है कि सरकार एक के बाद एक मदरसों को केवल इसलिए गिरा दे कि वे संस्थाएं भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं. जिहाद या जिहादी जैसे शब्दों का प्रयोग अपने आप में अनुचित है, क्योंकि सरकार अभी तक उस समाज के सामने यह साबित नहीं कर पाई है कि गिरफ्तार लोग राज्य के खिलाफ किस तरह के धार्मिक युद्ध में शामिल थे. अगर सरकार इसे साबित करने में सक्षम होती, तो एक मुस्लिम के रूप में इसकी सराहना करती.
उन्होंने कहा, सरकार को जिहाद या जिहादी के स्थान पर राष्ट्र-विरोधी या असामाजिक गतिविधियों जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए.

आयशा अशरफ ने कहा कि सरकार छात्रों को एक दिन के नोटिस पर एक शैक्षणिक संस्थान को गिराने के बजाय छोटे बच्चों से चर्चा करके छात्रों को दी जा रही शिक्षा की गुणवत्ता की जांच कर सकती थी.सरकार को सरकार की तरह काम करना चाहिए. यह छोटे बच्चों के शिक्षा के अधिकार का घोर उल्लंघन है. वे छोटे मासूम बच्चे हैं जिन्हें यह धारणा दी जाती है कि उन्हें गलत तरीके से शिक्षित किया जा रहा है. यह उन्हें गलत दिशा में धकेल देगा. इस धारणा के तहत कि उन्हें देशद्रोहियों द्वारा शिक्षित किया गया था. इसलिए, अब सरकार का यह कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि ध्वस्त मदरसों के बच्चों को अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश दिलाए, क्योंकि उनके शिक्षा के अधिकार से समझौता नहीं किया जा सकता. एक या दो बेईमान तत्वों की गलती है, बशर्ते उन्हें दोषी ठहराया जाए.

जाने-माने वकील सरफराज नवाज ने कहा कि काबुतारी में 37 साल पुराने मदरसा भवन को गिराने में कार्यकारिणी द्वारा की गई मनमानी और ज्यादती दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है. आश्रय का अधिकार अनुच्छेद 21 का एक पहलू है और उचित प्रक्रिया के बिना इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा,इस मामले में यह घृणित रूप से गायब है. बुलडोजर राज की हालिया प्रवृत्ति और अपराधों में शामिल लोगों के घरों को ध्वस्त करना मनमाना और दुर्भावनापूर्ण है. किसी भी लोकतांत्रिक सरकार के लिए अशोभनीय है.

नवाज ने कहा, यहां तक कि मदरसा विध्वंस के मामले में भी, आपदा प्रबंधन अधिनियम के प्रावधानों के तहत यह आरोप लगाया गया है कि किसी भी संभावित आपदा को कम करने के लिए इमारतों को ध्वस्त करने की जरूरत है. यह ढांचा काफी समय से बना हुआ था. पूरे समय कोई खतरा नहीं था. कथित तौर पर एक्यूआईएस स्लीपर सेल मॉड्यूल से जुड़े एक शिक्षक की गिरफ्तारी के बाद ही इमारत को गिराया गया. मंशा बिल्कुल स्पष्ट है कि शिक्षक की गिरफ्तारी के बाद ही यह विध्वंस हुआ है. ”

इस साल की शुरुआत में न्यायाधीश के प्रतिष्ठित पद से इस्तीफा देने वाले नवाज ने कहा, कानून अपराधों में शामिल लोगों के घरों ध् कार्यालयों को गिराने की अनुमति नहीं देता. यह मामलों का एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण तरीका है और बोंगाईगांव प्रशासन की कार्रवाई को उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती देने की आवश्यकता है.

असम पुलिस के पूर्व डीजीपी (विशेष शाखा) पल्लव भट्टाचार्य ने कहा संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत संरक्षित मदरसे को आपदा प्रबंधन अधिनियम का उल्लंघन करने के बहाने बुलडोजर चलाना उचित नहीं है. एक जिहादी को दंडित करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता, भारतीय दंड संहिता और साक्ष्य अधिनियम हैं. उनका विचार था कि एक मदरसे को नष्ट करना, इस बहाने कि इसका इस्तेमाल एक जिहादी तत्व द्वारा किया गया, जो अभी तक अदालत में साबित नहीं हुआ है, कानूनी जटिलताओं से भरा है. उन्होंने कहा कि न्याय न केवल होना चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए. इंग्लैंड के तत्कालीन लॉर्ड चीफ जस्टिस लॉर्ड हेवर्ट द्वारा रेक्स बनाम रेक्स के मामले में यह कहावत रखी गई थी.

भट्टाचार्य ने कहा,ससेक्स जस्टिस की प्रासंगिकता आज भी है, जब भारत में बुलडोजर की राजनीति जोर पकड़ रही है. कानून का शासन, जो भारतीय कानूनी प्रणाली की आधारशिला है, कानून के समक्ष सभी नागरिकों की समानता का समर्थन करता है. सरकार के एक गैर-मनमाने रूप को सुरक्षित करता है और अधिक सामान्यतः सत्ता के मनमाने उपयोग को रोकता है.

प्रख्यात शिक्षाविद् और लेखक दिनेश वैश्य ने कहा कि मदरसों में जिहादी और आतंकवादी गतिविधियां इन संस्थानों को ध्वस्त करने का कारण हैं. बैश्य ने कहा, अगर हम इस तर्क पर चलते हैं, तो सरकार को उन सभी घरों, स्कूलों और कॉलेजों को ध्वस्त करना होगा, जहां कई उल्फा, एनडीएफबी और अन्य आतंकवादी रुके थे और पढ़ते थ.

वरिष्ठ अधिवक्ता शहनाज रहमान ने कहा कि पूरे मदरसे को इस आधार पर तोड़ना या बुलडोज करना कि तथाकथित जिहादी गतिविधियों में ऐसे कुछ संस्थान शामिल थे, उन्हें समर्थन या उचित नहीं ठहराया जा सकता. इस तरह के विध्वंस को देश के कानून के अनुसार किया जाना चाहिए अन्यथा अराजकता हो सकती है.
मदरसा स्थापित करना कोई अपराध नहीं है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 30 ने शिक्षा के लिए मुस्लिम समुदाय को ऐसा अधिकार प्रदान किया है. इसलिए, पूरे मदरसे को ध्वस्त करना संविधान के खिलाफ है. विध्वंस के बजाय, सरकार को पहचान करनी चाहिए और मदरसों में बुरे तत्वों को खत्म करना चाहिए.

रहमान ने तर्क दिया कि अगर कोई आतंकवादी किसी कॉलेज या स्कूल में पढ़ता या पढ़ाता हुआ पाया जाता है, तो क्या अधिकारी पूरी संस्था को ध्वस्त कर देंगे? रहमान ने कहा, तोड़ दिए गए मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों का क्या होगा.

अखिल असम गोरिया-मोरिया-देशी जातीय परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष नूरुल हक ने एक शिक्षक की गलती के लिए रात भर के नोटिस पर काबैतारी में मदरसे को गिराए जाने को अमानवीय और मनमाना बताया. उन्होंने कहा कि मदरसे के बच्चों को नियमित शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने के लिए सरकार को वैकल्पिक उपाय करने चाहिए.
हालांकि, हक का मानना था कि यह असम के मुस्लिम समाज में एक संगठित मदरसा नीति की अनुपस्थिति के कारण है. “मदरसों के पंजीकरण की कोई व्यवस्था नहीं है. असम में अधिकांश मदरसे बिना किसी प्रबंध निकाय के चल रहे हैं. कुछ लोग एक साथ आते हैं, आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों का लाभ उठाते हैं जो अपने बच्चों को स्कूलों में भेजने का जोखिम नहीं उठाते हैं और मदरसा स्थापित कर चंदा इकट्ठा करते हैं. उन मदरसों में बांग्लादेश समेत कहीं से भी शिक्षकों की भर्ती की जाती है. उनमें से कुछ शिक्षक और मौलवी सांप्रदायिक नफरत का प्रचार करते हैं और हमारे राज्य के सद्भाव को बिगाड़ रहे हैं. इसलिए, मैं व्यक्तिगत रूप से इस प्रणाली के खिलाफ हूं.

ऑल असम माइनॉरिटीज स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष रेजौल करीम ने कहा कि बुलडोजर मदरसों को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ दिसपुर में वर्तमान सरकार द्वारा रची गई साजिश लगती है. करीम ने कहा, क्या सरकार उन निर्दोष छात्रों और शिक्षकों की देखभाल करेगी जो ध्वस्त मदरसों से जुड़े थे.

पूर्व आईएएस अधिकारी सैयद इफ्तिखार हुसैन ने कहा कि देश भक्ति इस्लाम का एक अविभाज्य हिस्सा है. एक व्यक्ति को सच्चा मुसलमान नहीं कहा जा सकता है अगर वह अपने देश से प्यार नहीं करता. मुझे उम्मीद है कि कुछ बुरे तत्वों को छोड़कर, मदरसों से जुड़े अन्य लोग मुसलमान हैं. इसलिए, केवल जिहादी गतिविधियों को अनुमान या सामान्यीकरण पर एक मदरसे को ध्वस्त करना, अनुचित है.

मनमाने ढंग से विध्वंस के लिए आलोचनाओं का सामना करते हुए, मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है, सरकार का राज्य में मदरसों को ध्वस्त करने का कोई इरादा नहीं है. हमारा एकमात्र इरादा यह देखना है कि उनका उपयोग किसी भी जिहादी तत्वों द्वारा नहीं किया जाता है. इसलिए अगर किसी मदरसे का इस्तेमाल जिहादी गतिविधियों या जिहादी विचारधारा के विस्तार के मकसद से नहीं किया जा रहा है तो ऐसे मदरसों को गिराने का सवाल ही नहीं उठता.

उन्होंने कहा, अगर हमारे पास जिहादी या भारत विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किए जा रहे मदरसे की आड़ में किसी संरचना के बारे में विशिष्ट जानकारी है, तो हम ऐसे हर मामले में सबसे मजबूत संभव कार्रवाई करेंगे.

अजमल की कानूनी धमकी पर गुरुवार को प्रतिक्रिया देते हुए सरमा ने कहा, मैं किसी को भी कानूनी सहारा लेने से नहीं रोक सकता. कोर्ट सबके लिए खुला है.
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मुस्लिम नागरिक समाज ने आश्वासन दिया है कि कथित जिहादियों के खिलाफ लड़ाई में समुदाय सरकार के साथ है, बशर्ते मुख्यमंत्री गारंटी दें कि एक या दो बुरे तत्वों के बहाने कोई और मदरसा नहीं तोड़ा जाएगा.मुस्लिम नागरिक समाज ने आश्वासन दिया है कि कथित जिहादियों के खिलाफ लड़ाई में समुदाय सरकार के साथ है, बशर्ते मुख्यमंत्री गारंटी दें कि एक या दो बुरे तत्वों के बहाने कोई और मदरसा नहीं तोड़ा जाएगा.