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बीदर के महमूद गवां मदरसा मस्जिद पर हिंदू वादी कट्टरपंथियों का ‘हमला’, भारत की विदेश में पिट रही भद

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, हैदराबाद / नई दिल्ली

कट्टरवादियों की वजह से एक बार फिर भारत को विदेश में शर्म होना पड़ रहा है.गुरुवार तड़के ताला तोड़कर कर्नाटक के बीदर में महमूद गवां मदरसा मस्जिद में घुसने, पूजा करने और मुस्लिम विरोधी नारे लगाने से दूसरे मुल्क में भारत की खूब भद पिट रही है. इससे संबंधित वीडियो वायरल किए जा रहे हैं.

ऐसा ही एक स्वीडेन के उपासला यूनिवर्सिटी के पीस एंड कन्फिलिक्ट के प्रोफेसर अशोक स्वैन ने अपने ट्विटर हैंडल से वायरल किया है. उन्हांेने वीडियो के साथ टिप्पणी की है-हिंदू दक्षिणपंथी भीड़ भारत के कर्नाटक में 500़ साल पुराने मदरसे और मस्जिद में जबरदस्ती घुसती है, उसमें तोड़फोड़ करती है, जय श्री राम युद्ध के नारे लगाते हुए हिंदू पूजा करती है! इस वीडियो पर कई लोगों ने भारत विरोधी कमेंट किए हैं. 2004 में स्थापित ब्रिटेन के टीएचजी मीडिया ग्रुप ने भी इस वीडियो को जारी किया है.

भारत में द हिंदुस्तान गजट से प्राप्त वीडियो में एक हिंदू समूह को दिखाया गया है, जो दशहरा उत्सव के अवसर पर देवी दुर्गा की मूर्ति के साथ जुलूस निकाले हुए जबरन ताला तोड़ कर मस्जिद में घुसते, नारे लगाते दिखाए गए हैं. इस वीडियो को एआईएमआई के प्रमुख ओवैसी ने भी अपने ट्विटर हैंडल से जारी किया है.

उच्च न्यायालय के वकील सैयद तल्हा हाशमी से बात करने पर उन्होंने कहा कि घटना रात के करीब 1 बजे हुई. “हिंदू भीड़ जय श्री राम, जय हिंदू धर्म, वंदे मातरम के नारे लगा रही थी. उन्होंने मस्जिद परिसर में पूजा की.

हाशमी ने कहा कि महमूद गवां मदरसा मस्जिद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अंतर्गत आता है. वीडियो वायरल हो गया है. दोपहर में मुस्लिम समुदाय के सदस्य के साथ एएसआई ने भी जाकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है. एक प्राथमिकी दर्ज की गई है.

हाशमी के मुताबिक, एक व्यक्ति को पुलिस हिरासत में लिया गया है. हैदराबाद के सियासत डॉट कॉम के मुताबिक, इस संदर्भ में बीदर टाउन पुलिस स्टेशन और वहां के पुलिस अधीक्षक से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

महमूद गवानी के पीछे का इतिहास

बीदर में महमूद गवां मदरसा एवं मस्जिद बहमनी साम्राज्य (1347-1518) के गौरवशाली दिनों का अवशेष है, जब बीदर दक्कन राजवंश की राजधानी थी (1424 से 1427 के बीच जब इसे गुलबर्गा से स्थानांतरित किया गया था). अपनी वर्तमान स्थिति के बावजूद, इसके अलग हिस्से में लगे शेष फारसी टाइल इसके अतीत की झलक देता है.

महमूद गवां बहमनी

वह एक शक्तिशाली राजा थे.उन्हांेने शम्सुद्दीन मुहम्मद के शासनकाल के दौरान पद संभाला था. वह 9-10 वर्ष की उम्र में ही राजा बन गए थे.उनके प्रमुख योगदानों में से एक मदरसा (तब एक कॉलेज संस्थान) है, जिसमें 100 फीट की एक मीनार है, जबकि भवन की लंबाई 205 फीट उंची है. 1695-96 में एक बारूद विस्फोट के कारण स्मारक का आधा भाग नष्ट हो गया था.

स्मारक दक्कन का एक उत्कृष्ट स्थापत्य उदाहरण है. प्रसिद्ध रूसी यात्री अथानासियस निकितिन ने लिखा है कि बीदर पूरे मुस्लिम हिंदुस्तान का प्रमुख शहर (शेरवानी) था.

महमूद गवान अपनी सैन्य क्षमताओं के लिए जाने जाते हैं. यहां तक कि उनके सफल अभियानों के लिए उन्हें लश्करी (योद्धा) की उपाधि दी गई थी. उनका निधन किसी राजनीतिक नाटक से कम नहीं. षड्यंत्रकारियों ने नकली मुहर के साथ एक पत्र तैयार किया (धोखाधड़ी से इसे अपने सचिव से प्राप्त करके) और ओडिशा के पुरुषोत्तम को राज्य पर आक्रमण करने के लिए कहा गया.

उसे बताया गया कि बहमनी सुल्तान से लोग क्रोधित हैं और उसका जीवन समाप्त करना चाहते हैं. इसका खंडन करने के बावजूद, राजा ने नहीं सुना और 1481 में इसका सिर काट दिया.हालाकि, जब शम्सुद्दीन ने बाद में गवान की संपत्ति की एक सूची मांगी, तो वह यह जानकर हैरान रह गए कि पहले वाले के पास बहुत कुछ भी नहीं था. उन्हंे अपनी गलती का एहसास हुआ.

सुल्तान पछतावे में फंस गए और उन्हांेने एक महान समारोह के साथ मृत व्यक्ति के ताबूत को बीदर भेज दिया. संयोग से, एक साल बाद राजा की मृत्यु हो गई.