अयोध्या की मस्जिद को विवाद में घसीटने की कोशिश
उत्तर प्रदेश के अयोध्या केे धन्नीपुर में प्रस्तावित मस्जिद को लेकर एक नया विवाद खड़ा करने का प्रयास चल रही है. पहले मस्जिद के नक्शे पर तरह-तरह के सवाल उठाए गए. अब उसके औचित्य पर ही प्रशन चिन्ह खड़ा करने की कोशिश चल रही है.
अयोध्या की बाबरी मस्जिद-रामजन्म भूमि पर फैसले के दौरान जब सुप्रीम कोर्ट के तत्तकालीन प्रधान न्यायाधीश ने मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन देने की उत्तर प्रदेश सरकार को हिदायत दी तो उसी वक्त एक खास वर्ग इसके विरूद्ध सक्रिय हो गया.
यह वही वर्ग है जो हमेशा सत्ता के करीब रहता है. प्रारंभ में उसकी कोशिश रही कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आयोध्या में दी जाने वाली जमीन पर मस्जिद न बने. यदि बने तो उसका नाम बाबर के नाम पर न रखा जाए.
जब यह तय हो गया कि अयोध्या के धन्नीपुर गांव में उपलब्ध कराई गई जमीन पर मस्जिद ही बनेगी और उसका नाम बाबर के नापर नहीं होगा तो वार खाली जाता देख इसके नक्शे पर बखेड़ा करने का प्रयास किया गया.
कहा गया कि प्रस्तावित मस्जिद में मीनार नहीं होगा. बीना मीनार के मस्जिद नहीं होती. मगर जब मस्जिद का नक्शा तैयार करने वाले दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रोफेसर ने दलील दी कि अब दुनिया मंे मस्जिदें ऐसे ही बनती हंै, तब एक और शोशा छोड़ दिया गया.
अब कहा जा रहा है कि अयोध्या में पहले से कई मस्जिदें हैं. उन मस्जिदों में नामाजियों का टोटा है. इसलिए वहां मस्जिद की जगह आला दर्जे का स्कूल, काॅलेज बनवाना बेहतर होगा. सरकार के करीबी माने जाने वाले एक शख्स ने तो यहां तक कहा है‘‘-वह समुदाय जो अपनी प्राथमिकताओं को क्रम में निर्धारित नहीं करता, वह बर्बाद है.’’
हालाकि ऐसे लोग विवाद को खड़ा करने से पहले भूल गए या जान-बूझकर लोगों को बतना नहीं चाहते कि धन्नीपुर में प्रस्तावित मस्जिद तो मात्र जमीन के टुकड़े के एक कोने में होगी. बाकी हिस्से में इस्लामिक सेंटर और भूखों के लिए मुफ्त भोजन सहित अन्य सहूलियतें उपलब्ध कराई जाएंगी. विवाद खड़ा करने वालों को यह बताना जरूरी है कि पढ़ाई से पहले भूख का मसला आता है. इसका इंतजाम नहीं होने पर ही सारी बुराईयां शुरू होती हैं. मजहब कोई भी हो सभी सबसे पहले भूखों की भूख मिटाने को प्राथमिकता देती हंै.