Politics

महाकुंभ 2025 में भगदड़, याद किए जा रहे आजम खान

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

महाकुंभ 2025 के मौनी अमावस्या के दिन प्रयागराज में मची भगदड़ ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश और देश भर के लोगों को स्तब्ध कर दिया. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस घटना में 30 लोगों की जान गई और 60 से अधिक श्रद्धालु घायल हो गए. यह घटना महाकुंभ के आयोजन की चुनौतियों को उजागर करती है, जिसमें इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को संभालने की जटिलताएं सामने आईं. हालांकि, इस दुर्घटना के बाद एक नाम लगातार चर्चा में रहा है, और वह नाम है – समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता आजम खान. सवाल यह उठता है कि इस भगदड़ के संदर्भ में आजम खान का नाम क्यों लिया जा रहा है, जबकि उनका इस घटना से कोई सीधा संबंध नहीं है.

2013 का महाकुंभ और आजम खान की भूमिका

असल में, महाकुंभ के आयोजन से जुड़े आजम खान की यादें 2013 के महाकुंभ से जुड़ी हुई हैं. उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी, और आजम खान राज्य सरकार में मंत्री थे. 2013 में महाकुंभ के आयोजन के दौरान उन्हें मेला प्रभारी बनाया गया था. उस समय महाकुंभ में करीब दो करोड़ श्रद्धालु आए थे, और न केवल आयोजन शांतिपूर्वक हुआ, बल्कि प्रशासन ने भी किसी प्रकार की कोई गड़बड़ी या अव्यवस्था नहीं होने दी. यह एक ऐसा उदाहरण था, जब प्रशासन और सरकार ने अच्छे तरीके से व्यवस्था बनाई थी, और इसका श्रेय आजम खान को जाता है, जो खुद मौके पर जाकर व्यवस्था का निरीक्षण करते थे.

महामंडलेश्वर स्वामी प्रबोधननंद गिरी, जो 2013 के महाकुंभ के आयोजन से जुड़ी यादों को ताजा कर रहे हैं, आजम खान की भूमिका का जिक्र करते हुए कहते हैं, “वह खुद संतों के पास जाकर पूछते थे कि कहीं कोई परेशानी तो नहीं हो रही. एक बार जब मेले में कोई गड़बड़ी हुई, तो सभी महात्मा इकट्ठा हो गए. यह बात आजम खान को पता चली, और वह तुरंत उनके पास पहुंचे. उन्होंने अपनी टोपी उतार कर कहा, ‘आपके कदमों में रखता हूं और आपकी समस्या का समाधान तुरंत करता हूं.'”

स्वामी प्रबोधननंद गिरी ने महाकुंभ 2025 में फैली अव्यवस्था की ओर इशारा करते हुए कहा, “मैं पिछले छह दिनों से लगातार बोल रहा हूं, लेकिन सब गूंगे बहरे हैं. कोई भी नहीं सुन रहा है. अभी तक यह भी पता नहीं चल पाया कि मेला प्रभारी कौन है.” यह बात उनके विचार में, 2013 के महाकुंभ के मुकाबले मौजूदा प्रशासन की लापरवाही को उजागर करती है, जब आयोजकों की ओर से जिम्मेदारी और सतर्कता दिखाई देती थी.

सोशल मीडिया पर आजम खान की चर्चा

महाकुंभ 2025 में भगदड़ के बाद सोशल मीडिया पर भी आजम खान की यादें ताजा की जा रही हैं. एक वीडियो, जो 2013 के महाकुंभ के दौरान का है, बिस्वाजीत यादव ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर साझा किया. इस वीडियो में आजम खान महाकुंभ के दौरान अधिकारियों के साथ मौके का निरीक्षण करते हुए नजर आ रहे हैं. इस वीडियो के साथ यादव ने लिखा, “इलाहाबाद महाकुंभ 2013! योगी आदित्यनाथ को आजम साहब से सीखना चाहिए कि महाकुंभ में व्यवस्था कैसे की जाती है! वीडियो 2013 का है. आजम साहब खुद अधिकारियों के साथ जाकर व्यवस्थाओं का जायजा लेते थे. मीडिया ने उनका मजाक बनाया क्योंकि वह मुस्लिम थे, लेकिन अब वही मीडिया चुप है.”

यह वीडियो और इस पर की गई टिप्पणियाँ इस बात को रेखांकित करती हैं कि आजम खान का कार्यकाल, जब वह महाकुंभ के प्रभारी थे, में किस प्रकार के उत्कृष्ट प्रशासन और तन्मयता का प्रदर्शन किया गया था. उनके कार्यों ने यह साबित किया था कि जब प्रशासन और जिम्मेदार लोग सही तरीके से अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं, तो किसी भी बड़े आयोजन को सफलतापूर्वक चलाया जा सकता है.

योगी सरकार की दलील: बड़ी चुनौती है भगदड़ को नियंत्रित करना

महाकुंभ 2025 की घटनाओं के बाद, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस भगदड़ को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी. उनका कहना था कि 45 करोड़ की भीड़ को संभालना एक बड़ी चुनौती है, और इसमें कोई संदेह नहीं कि यह किसी भी सरकार के लिए एक कठिन काम है.

हालांकि, यह भी सच है कि 2013 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार के पास सीमित संसाधन थे, लेकिन फिर भी महाकुंभ के आयोजन में कोई अव्यवस्था नहीं देखने को मिली थी. आजम खान के नेतृत्व में प्रशासन ने जिस तरह से व्यवस्थाएं बनाई थीं, वह एक बेहतरीन उदाहरण था, जिसे आज के समय में भी याद किया जा रहा है.

सभी व्यवस्थाओं की चुनौती: क्या महाकुंभ 2025 की व्यवस्थाएं सही थीं?

महाकुंभ 2025 में हालिया भगदड़ और अन्य घटनाएं यह सवाल उठाती हैं कि क्या इस आयोजन में व्यवस्थाएं सही थीं? 45 करोड़ की भीड़ को नियंत्रित करना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन अगर आयोजकों और अधिकारियों द्वारा प्रशासनिक दक्षता और सतर्कता दिखायी जाती, तो शायद इस प्रकार की दुर्घटनाएं बचाई जा सकती थीं. इस सब के बीच, आजम खान के कार्यकाल की यादें एक बार फिर यह संदेश देती हैं कि किसी भी बड़े आयोजन को सफल बनाने के लिए केवल संसाधनों की नहीं, बल्कि जिम्मेदारी और इंसानियत की भी जरूरत होती है.

आजम खान की यादें न केवल 2013 के महाकुंभ के समय की हैं, बल्कि उन्होंने यह भी साबित किया था कि सरकार की नीतियों और प्रशासन की सक्रियता से ही बड़े आयोजनों को कुशलतापूर्वक चलाया जा सकता है. 2025 के महाकुंभ से जुड़ी घटनाओं को देखते हुए, यह जरूरी है कि आयोजक और अधिकारी उन व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने पर ध्यान दें, जो श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *